मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

चीन-भारत सीमा समझौता

                            प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सफल रूस यात्रा के बाद अब जब वे चीन के दौरे पर हैं तो उनसे देश को यही आशा है कि आने वाले समय में चीन से लगती हुई वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समय समय पर होने वाले सीमा उल्लंघन पर कोई ठोस समिति बनाई जा सकेगी जिससे देश में चीन को लेकर थोड़े थोड़े दिनों में जिस तरह की शंकाएं आम भारतीयों के मन में उठती रहती हैं उनसे काफी हद तक निजात मिल सके. चीन ने जिस तरह से हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाकर भारत को युद्धों में घसीटा उसके बाद से आम भारतीय के मन में उसके लिए सदैव ही संदेह बना रहता है और वहां के महत्वाकांक्षी साम्यवादी नेतृत्व द्वारा जिस तरह से अपनी विस्तार वादी नीतियों को आगे बढ़ाया जा रहा है उसके बाद से यही लगता है कि चीन की तरफ से आने वाले समय में भारत को पूरी निश्चिंतता कभी भी नहीं हो सकती है भले ही उसके साथ कितने भी शांति समझौते हो जाएँ ?
                                      चीन के साथ भारत का जिस तरह से व्यापार बढ़ता ही जा रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में भारत की तरफ से उस पर केवल आर्थिक दबाव ही बनाया जा सकता है और उसके बिना किसी भी स्तर पर भारत के पास करने के लिए कुछ भी नहीं है. आज दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ार भारत में जिस तरह से चीनी सामान की बहुतायत होती चली गयी है और भारत के साथ चीन का व्यपारिक रिश्ता बहुत आगे बढ़ चूका है तो उस परिस्थिति में चीन भी अनावश्यक रूप से भारत के साथ कोई नया विवाद खड़ा नहीं करना चाहेगा क्योंकि आज के समय में भारत साठ के दशक का भारत नहीं है और पूरे वैश्विक परिदृश्य में उसके बहुत सारे सहयोगी भी आज चीन पर दबाव डालने की हसियत में हैं. भारत द्वारा पिछले दशक में जिस तरह से चीन की सीमा तक अभी तक दुरूह रही चौकियों तक अपनी पहुँच को सुगम बनाने की जिस योजना पर अमल किया जा रहा है अब उसके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं.
                                       दौलत ओल्डी बेग में जिस तरह से भारत ने दुनिया के सबसे बड़े सैन्य परिवहन विमान को चीनी घुसपैठ के समय वहां उतारा उससे चीन समेत पूरी दुनिया में यह संदेश भी चला गया कि भले ही आज भारत इस तरह की सीमा घुसपैठ पर कोई कड़ी और उग्र प्रतिक्रिया न देता हो पर ऐसा भी नहीं है कि उसकी सामरिक तैयारियों में अब कोई कमी उस स्तर पर है जैसी ६२/६५ के युद्ध के समय थी ? वैसे भी चीन के साथ लगती हुई सीमा भारत की विवादित सीमा में तो ज़रूर है पर आज भी वह देश की सबसे शांत सीमा ही है क्योंकि वहां से किसी भी तरह का प्रभुत्व ज़माने का अतिक्रमण केवल चीनी सैनिकों द्वारा ही किया जाता है जबकि पाक बांग्लादेश और समुद्री सीमा से उन देशों की सेनाओं और प्रायोजित आतंकियों की घुसपैठ से भी निपटना एक बड़ी चुनौती होती है. अब जब भारत चीन में एक दीर्घकालीन सीमा रक्षा सहयोग समिति बनने के करीब है तो इस तरह की किसी भी घटना से निपटने और उससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत के पास अवसर बढ़ जायेंगें और अनावश्यक तनाव से भी बचा जा सकेगा.
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