तेलंगाना के गठन को कैबिनेट ने मंज़ूरी मिलने के साथ ही इसके गठन की तरफ के कदम और बढ़ गया है पर इसके साथ ही जिस तरह से सीमान्ध्र क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन तेज़ होने की संभावनाएं भी बलवती होती जा रही हैं वह आन्ध्र के दोनों क्षेत्रों के लिए किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है. यह सही है कि आज़ादी के समय जिस तरह से राज्यों का पुनर्गठन किया गया उससे कई राज्यों में कई हिस्सों तक उन राज्यों की राजधानियों से पहुँच भी बहुत दुरूह हुआ करती थी जिससे सामान्य प्रशासन से जुड़े हुए लोगों को या किसी आपदा के समय स्वयं सरकार के लिए ही वहां तक पहुंचना बहुत कठिन हो जाया करता था जिसके फलस्वरूप समय समय पर राज्यों में से नए राज्य बनाने की मांगें सामने आती गयीं और उनमें से बहुत जगहों पर आन्दोलनकारियों को इसमें सफलता भी मिली जिस कारण से भी नए राज्यों की मांग कई बार जोर पकडती नज़र आई. इस पूरी आवश्यकता और राजनीति में नेताओं ने यह देखने की कभी भी कोशिश नहीं की जिससे धरातल पर वास्तविक परिवर्तन भी दिखाई देता और लोगों की समस्याएं कुछ कम हो सकती ?
ऐसा भी नहीं है कि तेलंगाना की मांग आज के समय में देश में अंतिम मांग ही हो पर इसके गठन के साथ ही अब देश में अन्य जगहों पर चल रहे आंदोलनों में और अधिक तेज़ी आने की संभावनाएं बढती जा रही हैं क्योंकि लम्बे समय तक इस तरह से मांग करने के बाद यदि नए राज्य को पाना एक मिसाल बन सकती है तो यह उसका एक गलत उदाहरण ही होगा. आज भी सरकार या देश के सभी राजनैतिक दल अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में यह देखना ही नहीं चाहते हैं कि उनके द्वारा चलायी जा रही राजनीति से आम लोगों को वास्तव में कितना लाभ पहुँच रहा है क्योंकि जिस तरह से केवल संघर्षरत लोगों को इस तरह से राज्य दिए जा रहे हैं उनसे राज्यों की वास्तविक आवश्यकतों को कभी भी नहीं समझा जा सकता है. छोटे राज्य विकास का पैमाना हो सकते हैं पर छोटे राज्यों के नाम पर होने वाली राजनीति किसी भी स्तर पर देश को आगे बढ़ाने वाली साबित नहीं हो सकती है और आज भी नेताओं की समझ में यह बात नहीं आ रही है.
अब देश में एक बार फिर से राज्य पुनर्गठन आयोग की आवश्यकता महसूस की जा रही पर पता नहीं किन कारणों से केंद्र और राज्यों की सरकारें वास्तविक स्थिति से आँखें बंद ही रखने में अपनी भलाई समझती रहती हैं ? देश के वर्तमान राज्यों के स्वरुप और उनकी उपयोगिता के साथ राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए अब एक पूर्ण अधिकार प्राप्त राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया जाना चाहिए और उस पर केवल राज्यों की भौगोलिक स्थिति का अंदाज़ा लगाने और समस्याओं पर ही विचार करने के स्थान पर जिले स्तर तक के पुनर्गठन की बात पर भी विचार करने को कहा जाये क्योंकि आज भी देश में बहुत सारे जिला मुख्यालयों से उनके दूरस्थ क्षेत्र १०० किमी तक की दूरी पर स्थित हैं और इन्हें भी बेहतर प्रशासनिक क्षमता के साथ काम करने के लिए तैयार करने के लिए पुनर्गठित किया जाना बहुत ही आवश्यक है. जब पूरे देश में इस तरह की प्रशासनिक अडचने सबके सामने हैं तो फिर केवल मांग पर राजनैतिक कारणों से राज्यों का गठन किया जाना कहाँ तक उचित ठहराया जा सकता है और अब देश के पूरी तरह से निचले स्तर तक वास्तविक पुनर्गठन की तरफ ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ऐसा भी नहीं है कि तेलंगाना की मांग आज के समय में देश में अंतिम मांग ही हो पर इसके गठन के साथ ही अब देश में अन्य जगहों पर चल रहे आंदोलनों में और अधिक तेज़ी आने की संभावनाएं बढती जा रही हैं क्योंकि लम्बे समय तक इस तरह से मांग करने के बाद यदि नए राज्य को पाना एक मिसाल बन सकती है तो यह उसका एक गलत उदाहरण ही होगा. आज भी सरकार या देश के सभी राजनैतिक दल अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में यह देखना ही नहीं चाहते हैं कि उनके द्वारा चलायी जा रही राजनीति से आम लोगों को वास्तव में कितना लाभ पहुँच रहा है क्योंकि जिस तरह से केवल संघर्षरत लोगों को इस तरह से राज्य दिए जा रहे हैं उनसे राज्यों की वास्तविक आवश्यकतों को कभी भी नहीं समझा जा सकता है. छोटे राज्य विकास का पैमाना हो सकते हैं पर छोटे राज्यों के नाम पर होने वाली राजनीति किसी भी स्तर पर देश को आगे बढ़ाने वाली साबित नहीं हो सकती है और आज भी नेताओं की समझ में यह बात नहीं आ रही है.
अब देश में एक बार फिर से राज्य पुनर्गठन आयोग की आवश्यकता महसूस की जा रही पर पता नहीं किन कारणों से केंद्र और राज्यों की सरकारें वास्तविक स्थिति से आँखें बंद ही रखने में अपनी भलाई समझती रहती हैं ? देश के वर्तमान राज्यों के स्वरुप और उनकी उपयोगिता के साथ राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए अब एक पूर्ण अधिकार प्राप्त राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया जाना चाहिए और उस पर केवल राज्यों की भौगोलिक स्थिति का अंदाज़ा लगाने और समस्याओं पर ही विचार करने के स्थान पर जिले स्तर तक के पुनर्गठन की बात पर भी विचार करने को कहा जाये क्योंकि आज भी देश में बहुत सारे जिला मुख्यालयों से उनके दूरस्थ क्षेत्र १०० किमी तक की दूरी पर स्थित हैं और इन्हें भी बेहतर प्रशासनिक क्षमता के साथ काम करने के लिए तैयार करने के लिए पुनर्गठित किया जाना बहुत ही आवश्यक है. जब पूरे देश में इस तरह की प्रशासनिक अडचने सबके सामने हैं तो फिर केवल मांग पर राजनैतिक कारणों से राज्यों का गठन किया जाना कहाँ तक उचित ठहराया जा सकता है और अब देश के पूरी तरह से निचले स्तर तक वास्तविक पुनर्गठन की तरफ ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है.
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