पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों के कार्यक्रमों के साथ ही चुनाव सुधारों और नयी ईवीएम मशीनों के बारे में आयोग ने जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में आयोग द्वारा मतदाताओं को मतदान के सबूत वाली पर्ची देने पर पूरी तरह से अमल किया जा सकेगा. अभी तक जिस तरह से सुब्रह्मनियम स्वामी द्वारा यह आशंका ज़ाहिर करते हुए कोर्ट में याचिका डाली गयी थी कि इन मशीनों का दुरूपयोग संभव है कोर्ट उसी सम्बन्ध में सुनवाई कर रही है. इसके साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग की उस दलील को भी मान लिया है जिसमें उसने आने वाले समय में पूरे देश में होने वाले चुनावों में इन मशीनों का प्रयोग चरण बद्ध तरीके से करने की बात कही है क्योंकि पूरे देश के चुनावों के लिए जितनी बड़ी संख्या में मशीनों की आवश्यकता है तो उसे इन मशीनों के निर्माण में लगी हुई केवल दो कम्पनियों द्वारा इतने कम समय में पूरा किया जाना संभव नहीं है. पांच राज्यों के चुनावों में आयोग ने इन नयी मशीनों को पूरी तरह से तो नहीं पर बड़े स्तर पर प्रयोग करने के लिए उपयोग में लाने की सहमति भी दिखाई है.
यह सही है कि अभी तक इन मशीनों का रिकॉर्ड बहु शानदार रहा है और पूरे देश में होने वाले चुनावों में जिस तरह से इनका सफलता पूर्वक उपयोग किया जा रहा है वैसी मिसाल दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती है. १९९१ में टी एन शेषन द्वारा शुरू किये गए चुनाव सुधारों के बाद से ही जिस तरह से चुनाव आयोग का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है उस स्थिति में किसी भी सरकार या अधिकारी के लिए यह बहुत ही मुश्किल काम है कि वह इन सामान्य मशीनों में भी किसी तरह की गड़बड़ी कर सकें फिर भी एक संभावित खामी को यदि स्वामी की याचिका से दूर करने में सफलता मिल रही है तो यह देश के कानून के सबके लिए समान और लचीला होने का ही सबूत है क्योंकि इतने बड़े देश में किसी भी तरह के बदलाव को कर पाना उतना आसान नहीं होता है जितना अन्य जगहों पर होता है और संभवतः भारत एकमात्र ऐसा देश है जो इतने लम्बे समय से चुनावों को इस तरह से संचालित करा रहा है. विदेशों से आने वाले प्रक्षकों ने भी सदैव पूरी चुनावी प्रक्रिया की तारीफ ही की है.
देश में निष्पक्ष और शांति के साथ चुनाव संपन्न कराना चुनाव आयोग का काम है और उसने पिछले दो दशकों में जिस तरह से चुनावों में पारदर्शिता और शुचिता को बनाये रखने में सफलता हासिल की है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में चुनाव और भी सही तरीके से कराये जाने में सफलता मिलने वाली है क्योंकि अभी हाल में कोर्ट द्वारा जिस तरह से इनमें से कोई नहीं विकल्प को मशीन में उपलब्ध कराने की दिशा में निर्देश आयोग को मिल गए हैं और अपराधियों के चुनाव लड़ने पर पाबन्दी भी लग गयी है तो चुनाव और भी सही तरह से होने ही लगेंगे पर उनके लिए लगातार प्रयासरत रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि किसी भी स्तर पर ठहराव होने का लाभ वे लोग उठाना शुरू कर देते हैं जिनको किसी नियम से कोई बड़ी कठिनाई होती है ? अब जब आयोग अपनी तरफ से पूरी निष्ठा के साथ काम करने में लगा हुआ है तो विधायिका की यह ज़िम्मेदारी भी बनती है कि वह हर तरह की शुचिता बनाये रखने के लिए आयोग की पूरी तरह से आर्थिक सहायता भी करे.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि अभी तक इन मशीनों का रिकॉर्ड बहु शानदार रहा है और पूरे देश में होने वाले चुनावों में जिस तरह से इनका सफलता पूर्वक उपयोग किया जा रहा है वैसी मिसाल दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती है. १९९१ में टी एन शेषन द्वारा शुरू किये गए चुनाव सुधारों के बाद से ही जिस तरह से चुनाव आयोग का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है उस स्थिति में किसी भी सरकार या अधिकारी के लिए यह बहुत ही मुश्किल काम है कि वह इन सामान्य मशीनों में भी किसी तरह की गड़बड़ी कर सकें फिर भी एक संभावित खामी को यदि स्वामी की याचिका से दूर करने में सफलता मिल रही है तो यह देश के कानून के सबके लिए समान और लचीला होने का ही सबूत है क्योंकि इतने बड़े देश में किसी भी तरह के बदलाव को कर पाना उतना आसान नहीं होता है जितना अन्य जगहों पर होता है और संभवतः भारत एकमात्र ऐसा देश है जो इतने लम्बे समय से चुनावों को इस तरह से संचालित करा रहा है. विदेशों से आने वाले प्रक्षकों ने भी सदैव पूरी चुनावी प्रक्रिया की तारीफ ही की है.
देश में निष्पक्ष और शांति के साथ चुनाव संपन्न कराना चुनाव आयोग का काम है और उसने पिछले दो दशकों में जिस तरह से चुनावों में पारदर्शिता और शुचिता को बनाये रखने में सफलता हासिल की है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में चुनाव और भी सही तरीके से कराये जाने में सफलता मिलने वाली है क्योंकि अभी हाल में कोर्ट द्वारा जिस तरह से इनमें से कोई नहीं विकल्प को मशीन में उपलब्ध कराने की दिशा में निर्देश आयोग को मिल गए हैं और अपराधियों के चुनाव लड़ने पर पाबन्दी भी लग गयी है तो चुनाव और भी सही तरह से होने ही लगेंगे पर उनके लिए लगातार प्रयासरत रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि किसी भी स्तर पर ठहराव होने का लाभ वे लोग उठाना शुरू कर देते हैं जिनको किसी नियम से कोई बड़ी कठिनाई होती है ? अब जब आयोग अपनी तरफ से पूरी निष्ठा के साथ काम करने में लगा हुआ है तो विधायिका की यह ज़िम्मेदारी भी बनती है कि वह हर तरह की शुचिता बनाये रखने के लिए आयोग की पूरी तरह से आर्थिक सहायता भी करे.
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