मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

कश्मीर-सेना और नेता

                             कश्मीर घाटी के करण सेक्टर में घुसे हुए आतंकियों को निकालने की जिस रणनीति पर सेना काम कर रही है उस पर देश के नेताओं को बहुत भरोसा नहीं लगता है क्योंकि जिस तरह से कुछ क्षेत्रों में इस तरह की घुसपैठ को सरकार की कमजोरी ही बताया जा रहा है उसके बाद यही लगता है कि देश हित में लिए जाने वाले निर्णयों में हमेशा ही अलग अलग मत रखने वाले नेता और राजनैतिक दल विदेश नीति और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने से बाज़ नहीं आते हैं. जिस तरह से सेना ने इस क्षेत्र में मीडिया के प्रवेश पर भी पाबन्दी लगा रखी है उससे कुछ मीडिया के लोगों के साथ नेताओं को लगने लगा है कि जैसे वहां पर स्थिति बहुत ख़राब है और इसी कारण सेना किसी को वहां आने जाने नहीं दे रही है. जबकि सेना के अनुसार वास्तविकता यह है कि जिन क्षेत्रों में घुसपैठ हुई है वह गाँव १९९१ से ही खाली पड़ा हुआ है और पाकिस्तानी सीमा के साथ लगता हुआ है जहाँ पर नदी पार कर पाक सेना के कुछ सैनिकों और आतंकियों द्वारा कब्ज़ा किया हुआ है.
                               इस क्षेत्र में इतने अन्दर तक पाक के ये घुसपैठिये किस तरह से आ गए यह तो सेना के स्तर पर जांच का विषय ही होगा पर उस स्थान पर रहने वाले जब ९१ में रातों रात इतनी आसानी से पाक जा सकते थे तो उस स्थान के आवागमन के लिए सुलभ होने का अंदाज़ा लगाया ही जा सकता है ? आज भी भारत पाक के बीच की सीमा कई स्थानों की भौगोलिक स्थिति इतनी दुर्गम है कहीं भारत की तरफ से वहां पहुंचना कठिन है तो कहीं पाक की तरफ से यही स्थिति है. पाक जिन स्थानों से अपनी अच्छी पहुँच के कारण आसानी से घुसपैठ करा सकता है वह उसी कोशिश में लगा रहता है साथ ही वह यह भी जानता है कि उन स्थानों पर भारत की पहुँच मुश्किल तो नहीं पर कठिन अवश्य है. जैसा कि कारगिल में टाइगर हिल के मामले में हुआ था कि कई स्थानों पर श्रीनगर-लेह राजमार्ग भी घुसपैठियों की सीधी नज़र में आ गया था जिससे भारतीय सेना की हर गतिविधि पर उनकी नज़र रहा करती थी और सेना को नुकसान कम करने के लिए बहुत संभल कर काम करना पड़ा था.
                            इस समय यदि इस स्थान को घुसपैठियों से मुक्त कराने की दिशा में सेना कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है तो यह उसकी एक रणनीति ही है क्योंकि तेज़ी से काम करने के चक्कर में सेना को बड़ा नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है जिसकी कोई आवश्यकता भी नहीं है जब सेना ने इन लोगों को तीन तरफ से घेर ही लिया है तो जल्दी ही इन पर काबू भी पाया जा सकेगा ऐसी आशा की जानी चाहिए. हो सकता है कि सेना को इनके घेरे रखने से कुछ और सबूत आदि भी मिल रहे हों जिनके कारण भी वह इस समूह के कार्य करने के तरीके या अन्य गतिविधियों पर भविष्य के लिए ध्यान रख रही हो ? हमारी सेना इस तरह के कार्यों में पूरी तरह से दक्ष है और उसकी क्षमता पर संदेह करने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं है. आज इस तरह के दुर्गम इलाकों में अपने अभियान को जिस सफलता से भारतीय सेना कम से कम नुक्सान के साथ चलाती है अमेरिका, इसराइल समेत पूरा विश्व उसका कायल है तभी वह अपनी इस तरह की ट्रेनिग के लिए अपने सैनिकों का संयुक्त अभ्यास भी आयोजित करते रहते हैं. देश को सेना की कार्यवाही पूरी होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए और उसके बाद ही अपनी राय भी देनी चाहिए.       
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