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मंगलवार, 12 नवंबर 2013

देश की सरकारी सीबीआई

                                 सीबीआई के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्बोधित करते हुए जिस तरह से पीएम मनमोहन सिंह ने यह स्पष्ट किया कि जांच एजेंसी को सरकार की नीतिगत और प्रशासनिक कार्यों पर ऊँगली नहीं उठानी चाहिए क्योंकि वे बहुत ही जटिल प्रक्रियाओं के बाद लिए जाते हैं अपने आप में बिलकुल सही है.क्योंकि यदि इस तरह के हर एक निर्णय पर इसी तरह से संदेह व्यक्त किया जाना लगा तो सम्भवतः आने वाले समय में नीतियों के निर्धारण में और भी अधिक समय लगने लगेगा और किसी भी सामान्य प्रशासनिक कार्य को निपटाने में भी सरकार पूरी तरह से अपंग सी हो जायेगी. साथ ही सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने भी अपनी बात बेबाकी के साथ रखी कि इन प्रशासनिक कार्यों को इतना पारदर्शी भी रखा जाना चाहिए जिससे किसी भी तरह से संदेह कि गुंजाईश ही न बनने पाये पर आज जिस तरह से देश में सभी कदम उठाए जाते हैं उस स्थिति में सरकार किस हद तक पारदर्शी हो पायेगी यह समय ही बतायेगा.
                                 पिछले कुछ समय से सीबीआई ने जिस तरह से सरकार के सामान्य प्रशासनिक और नीतिगत मुद्दों पर भी मामले दर्ज़ करने शुरू कर दिए हैं उसके बाद सरकार की तरफ से इस बात का स्पष्टीकरण बहुत ही आवश्यक था क्योंकि देश की शीर्ष जांच एजेंसी और सरकार के बीच इस तरह की खींचतान का सीधा असर देश पर ही पड़ता है और जिस तरह से इन मसलों को मुद्दा बनाकर विपक्षी दलों ने सरकार पर हमले करने शुरू कर दिए उसके बाद तो अधिकारियों में भी बेचैनी ही थी कि पता नहीं किस मामले को किस तरह से कब प्रस्तुत किया जाने लगे ? यह सही है कि १० वर्ष पूर्व किये गए निर्णयों की समीक्षा करने के लिए आज के परिदृश्य को सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि बहुत सारे मामलों में सरकारी निर्णय सिर्फ इसलिए ही लिए गए थे कि देश में सभी तरह का विकास तेज़ी से हो सके. प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े होने वाले इस तरह के मामलों में भ्रष्टाचार को देखते हुए एक विशेष सत्र इसके लिए ही सम्मलेन में आयोजित किया गया जिससे देश की दिशा का अंदाजा भी होता है.
                                  सम्मलेन में जिस स्पष्ट तरीके से पीएम ने दो बातों को स्पष्ट किया वे भी महत्वपूर्ण हैं पहली कि सरकार जांच एजेंसी के अस्तित्व से जुड़े और कोर्ट में उठे हर मसले को दृढ़ता के साथ कोर्ट के सामने रखते हुए इसको बचाने का पूरा प्रयास करेगी और दूसरी कि आने वाले समय में इसे एक सरकार एजेंसी के रूप में ही काम करना होगा इसे पूर्ण रूप से स्वायत्ता देकर इसके सम्भावित दुरूपयोग को भी समझा जाना चाहिए. इन मसलों पर जहाँ एक एजेंसी के हक़ में है तो दूसरा उसके खिलाफ जाता है क्योंकि जब एजेंसी बचेगी तभी वह सरकारी या स्वायत्त होने की बात कर सकती है. कुछ लोग इसे भी चुनाव आयोग की तरह मुक्त करना चाहते हैं जिससे बहुत सारी अन्य तरह की समस्याएं भी सामने आ सकती हैं क्योंकि चुनाव आयोग के पास केवल अपने कार्य को करने का अवसर केवल चुनावों के समय ही होता है और उसे अब वह निष्पक्ष रूप से संपन्न भी कराता है पर इस एजेंसी की जांचें तो पूरे वर्ष ही चलती रहेंगी जिससे सामान्य सरकारी काम काज भी प्रभावित हो सकता है. ऐसी स्थिति में अभी देश के नेताओं को यह तय करना है कि आने वाले वर्षों में उन्हें किस हद तक स्वतंत्र सीबीआई मंज़ूर है ? 
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