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सोमवार, 11 नवंबर 2013

दागी नेता और चुनाव

                                         केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने दागी नेताओं के मामले में अपनी निजी राय में यह कहकर एक नया ही खाका पेश कर दिया है कि अपहरण, रेप और हत्या के जिन आरोपों में सात साल की सजा होती है उसके आरोपी मात्र बन जाने से नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग जानी चाहिए भले ही कोर्ट में मामला लंबित ही क्यों न हो ? सुनने में देश की राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को रोकने के लिए यह बहुत ही अच्छा प्रस्ताव लगता है पर यह अभी केवल सिब्बल का व्यक्तिगत विचार ही है और इस पर अभी उनकी पार्टी कांग्रेस या सरकारी स्तर पर कोई चर्चा नहीं हुई है. अच्छा हो कि यदि देश के नेता इस दिशा में आगे बढ़कर कुछ ठोस करने के बारे में सोचना शुरू कर दें क्योंकि अभी तक जिस तरह से राजनीति में अपराधियों का बोलबाला धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा है उस परिस्थिति में देश की राजनीति को सुधारने के लिए केवल कोर्ट पर निर्भर रहने से काम नहीं चलने वाला है.
                                         देखा जाये तो सिब्बल का यह प्रस्ताव वास्तव में पूरे देश की राजनीति को साफ़ करने की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण कदम हो सकता है क्योंकि पहले से ही सुप्रीम कोर्ट ने सजा पाये हुए नेताओं को अयोग्य घोषित करने और चुनाव लड़ने पर अपने एक आदेश के माध्यम से रोक लगायी हुई है और जिसके तहत कई नेताओं की सदसयता जा भी चुकी है और वे अब जेल में हैं. किसी भी परिस्थिति में अब देश को अपने इन नेताओं के लिए बहुत ही कडे कानूनों की आवश्यकता है क्योंकि जिस तरह से नेताओं के सामने कुछ भी करके बच निकलने का विकल्प केवल जन प्रतिनिधि होने के नाते खुला रहता था उसको बंद करने की बहुत आवश्यकता है. आज राजनीति में उतनी शुचिता नहीं बची है जिसके माध्यम से नेता अपने को शुद्ध रख सकें पर कोर्ट ने अब उनको किसी भी हाल में शुद्ध करने का जो बीड़ा उठाया है अब उसके अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं और इनको पूरी तरह से कानूनी जाम पहनाया जाना भी ज़रूरी है जिससे हर बार कोर्ट में मामले न चलते रहें.
                                       देखने में सिब्बल का यह प्रस्ताव आज की राजनीति में बहुत कुछ गलत भी करवा सकता है क्योंकि विपक्षी नेता अपने क्षेत्र के वास्तविक नेताओं पर इस तरह से झूठे केस भी दर्ज़ करवाकर उनको अयोग्य घोषित करवाने के प्रयास कर सकते हैं इसलिए इस तरह के किसी भी आरोप की जांच के लिए राज्य स्तरीय एजेंसी बनायी जानी चाहिए जो आरोप की सत्यता की जांच कर आवश्यक रूप से दो महीने में अपनी रिपोर्ट सम्बंधित सदस्य के सदन के सभापति को दे और जो भी नेता कभी किसी भी तरह की चुनावी प्रक्रिया में शामिल रह चुके हैं या सम्भावित प्रत्याशी हैं तो उनकी जांच भी समयबद्ध रूप से की जानी चाहिए जिससे किसी भी स्तर पर किसी भी नेता को अनावश्यक रूप से इस कानून का सहारा लेकर राजनीति से बाहर करने की कोशिशें भी न शुरू कर दी जाएँ ? देश में राजनीति के शुद्धिकरण के लिए अब इस नयी तरह की सोच पर चलने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरी प्रक्रिया ही कड़ी और सुरक्षित नहीं की जायेगी तब तक इसके दुरूपयोग की सम्भावनाएं भी बनती ही रहेंगीं और राजनीति को शुद्ध करने के नाम पर केवल अधकचरे कानूनों से अब देश का भला नहीं हो सकता है इस पर भी विचार किया जाना बहुत आवश्यक है.    
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