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रविवार, 10 नवंबर 2013

आयोग, चुनाव सर्वेक्षण और जनता

                                        देश में अब जैसे जैसे पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की तारीखें निकट आती जा रही हैं तो इस समय एक नए तरह का द्वन्द भी दिखायी दे रहा है क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में जिस तरह से निजी टीवी चैनेलों का प्रसार बढ़ा है और आजकल जिस तरह से चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किये जाने लगे हैं उनसे यही लगता है कि इस मामले में कहीं न कहीं से वोटरों को प्रभावित करने की पूरी कोशिशें भी अप्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक दलों द्वारा की जाने लगी हैं जिससे चुनाव की शुचिता पर पूरा असर पड़ने लगा है. वैसे देखा जाये तो कई बार इस तरह के सर्वेक्षण अपने आप में बहुत सटीक होते हैं और कई बार इनके बारे में कुछ भी का पाना बहुत मुश्किल हो जाता है राजनैतिक दलों द्वारा जिस तरह से हर मौके पर अपने काम को निकाल लेने की जो भी प्रक्रिया चल रही है उसमें वह सब चुनाव आयोग की नज़रों में आचार संहिता का खुला उल्लंघन ही दिखायी देता है क्योंकि जब तक मतदान नहीं हो जाये तो इस तरह से ढुलमुल मतदाताओं को प्रबावित करने की कोई भी कोशिश आदर्श नहीं कही जा सकती है.
                                        चुनाव आयोग का एक सुझाव यह भी था कि मतदान से ४८ घंटे पूर्व प्रचार स्थगित होने के बाद हर तरह की गतिविधि पर रोक लगायी जानी चाहिए क्योंकि इस अंतिम समय में ही वोटरों क लुभाने के लिए हर तरह के हथकंडे प्रत्याशियों द्वारा अपनाये जाते हैं और उनको विभिन्न तरह के प्रलोभन भी दिए जाते हैं जिससे मतदान तो हर स्थिति में प्रभावित होता ही रहता है. यदि ४८ घंटे पहले से हर तरह के प्रचार पर रोक लगायी जा सके और आम लोगों को अपना मन बनाने के लिए छोड़ दिया जाये तो सम्भवतः डराने धमकाने के साथ लुभाने की हर प्रक्रिया पर भी अंकुश लगाया जा सकता है पर अभी तक हर प्रत्याशी और दल इस अंतिम समय में किसी भी अनैतिक कार्य के माध्यम से अपने लिए वोट पाने के प्रयास करते रहते हैं उनको किसी भी स्तर पर उचित नहीं कहा जा सकता है और हर तरह से यदि इसे प्रतिबंधित भी कर दिया जाए तो आने वाले समय में इसे भी एक क्रांतिकारी कदम के रूप में याद किया जाता रहेगा.
                                      चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से आखिर आम मतदाता को क्या लाभ मिलता है यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं है इसलिए चुनाव आयोग ने पहले हर चरण के बाद होने वाले एग्जिट पोल के प्रसारण पर चुनाव समाप्त होने तक पूरी तरह से रोक लगा रखी है और अब समय आ गया है कि राजनैतिक दलों की मंशा को समझते हुए आयोग को हर तरह के सर्वेक्षण पर रोक लगनी ही चाहिए. देश में एग्जिट पोल कई बार मुंह की खा चुके हैं और जब भी किसी दल का एग्जिट पोल के अनुरूप परिणाम नहीं आता है तो वह इस पूरी प्रक्रिया पर और भी ज़ोरदार तरीके से हमला करने से नहीं चूकता है. वैसे हर बार चुनाव से पूर्व जो भी सत्ता में होता है इस तरह के सर्वेक्षणों पर रोक लगाने की बातें करता है पर विपक्ष में होने पर उसे अपने अनुरूप सर्वेक्षण दिखायी देने पर ये लोकतंत्र के प्रहरी नज़र आने लगते हैं. वैसे भी देश के नेताओं और राजनैतिक दलों की यह सोच ही अपने आप में हास्यास्पद है कि देश की जनता पर इन सर्वेक्षणों का कोई प्रभाव पड़ता है क्योंकि हर बार जनता ने अपने विवेक का इस्तेमाल करके सर्वेक्षणों को धता बताकर देश को बेहतर शासक देने की कोशिशें लगातार जारी ही रखी हैं.            
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