देश में किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर किस तरह से उसकी तह तक जाया जाता है यह गुवाहाटी हाई कोर्ट के एक निर्णय से ही स्पष्ट हो गया है जिसमें कोर्ट ने सीबीआई के गठन को ही असंवैधानिक कहकर उसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. आज के समय जिस तरह से बहुत सारे महत्वपूर्ण मामलों की जांच इस जांच एजेंसी द्वारा की जा रही है यदि उस स्थिति में इसे कोर्ट द्वारा काम करने से रोक दिया गया है तो इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि सुप्रीम कोर्ट से किसी तरह का राहत आदेश मिलने तक अब सीबीआई देश में एक असंवैधानिक संगठन है और यह किसी भी मामले में किसी भी व्यक्ति से किसी भी तरह की पूछ ताछ नहीं कर सकती है ? ज़ाहिर है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट के इस आदेश में सरकार को एकदम से नयी समस्या की तरफ धकेल दिया है और जब तक आदेश की पूरी प्रति नहीं मिल जाती है तब तक सरकार इस मसले पर कुछ ठोस कर भी नहीं सकती है. कोर्ट के माध्यम से जिस तरह से कानूनी कमी को निकाल कर यह आदेश आया है उससे देश के सभी संवैधानिक संगठनों के स्वरुप पर फिर से विचार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है.
देश में सीबीआई का गठन एक विभागीय आदेश के माध्यम से किया गया था और जब तक इस तरह के आदेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी नहीं मिले या फिर राष्ट्रपति इन कार्यकारी आदेशों को अपनी सहमति न दें तब तक इसे कानून नहीं माना जा सकता है और यह केवल एक सामान्य सा आदेश ही होता है. इस या किसी भी अन्य आदेश के तहत देश में किसी को भी संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार के अनुच्छेद २१ के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है और इस कारण से सीबीआई को कोई भी कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं हैं. देखने में यह बहुत ही मामूली सी चूक दिखायी देती है पर इस तरह की बात सामने आने पर राजा और अन्य मामलों में फंसे हुए नेताओं से इस मुद्दे पर अपने खिलाफ इस एजेंसी द्वारा चलाये जा रहे मुक़दमों को रद्द करने की मांग की है जिससे देश में अभियोजन का एक पूरा परिदृश्य ही बदल सकता है. यहाँ पर महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर उस समय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में इस तरह की लापरवाही कैसे हुई और यह सब इतने वर्षों तक कैसे चलता रहा ?
हाई कोर्ट के इस फैसले ने जहाँ एक तरफ पूरी व्यवस्था को ही चौपट करने की स्थिति पैदा कर दी है वहीं दूसरी तरफ भारत में सरकारी अधिकारियों के काम करने के तरीक़ों पर भी सवालिया निशान लगा दिए हैं क्योंकि यह चूक राजनैतिक स्तर पर तो नहीं कही जा सकती है और आज यदि इस तरह के किसी भी आदेश को सरकार सुप्रीम कोर्ट में पलटवाने में नाकामयाब रही तो इससे भ्रष्ट नौकरशाहों और नेताओं समेत अन्य बड़े आपराधिक मामलों के बंद होने का खतरा सामने आ सकता है. अच्छा ही हुआ कि कोर्ट ने इस बड़ी कमी को भले ही साठ सालों बाद ही सही पकड़ तो लिया है और अब जब सीबीआई की स्वायत्ता जैसे अन्य मुद्दे भी देश के सामने चल ही रहे हैं तो उस स्थिति में अब इसे कानूनी दर्ज़ा भी देने की तरफ सरकार को अपने कदम बढ़ा ही देने चाहिए क्योंकि अब इस तरह की गलतियों पर किसी भी तरह की राजनीति करने स्थान पर सभी दलों को इस जांच एजेंसी को मज़बूत करने की तरफ सोचना चाहिए जिससे देश में अभी तक काम कर रही यह एजेंसी अपने काम को और भी बेहतर ढंग से कर पाने में सक्षम हो सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में सीबीआई का गठन एक विभागीय आदेश के माध्यम से किया गया था और जब तक इस तरह के आदेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी नहीं मिले या फिर राष्ट्रपति इन कार्यकारी आदेशों को अपनी सहमति न दें तब तक इसे कानून नहीं माना जा सकता है और यह केवल एक सामान्य सा आदेश ही होता है. इस या किसी भी अन्य आदेश के तहत देश में किसी को भी संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार के अनुच्छेद २१ के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है और इस कारण से सीबीआई को कोई भी कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं हैं. देखने में यह बहुत ही मामूली सी चूक दिखायी देती है पर इस तरह की बात सामने आने पर राजा और अन्य मामलों में फंसे हुए नेताओं से इस मुद्दे पर अपने खिलाफ इस एजेंसी द्वारा चलाये जा रहे मुक़दमों को रद्द करने की मांग की है जिससे देश में अभियोजन का एक पूरा परिदृश्य ही बदल सकता है. यहाँ पर महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर उस समय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में इस तरह की लापरवाही कैसे हुई और यह सब इतने वर्षों तक कैसे चलता रहा ?
हाई कोर्ट के इस फैसले ने जहाँ एक तरफ पूरी व्यवस्था को ही चौपट करने की स्थिति पैदा कर दी है वहीं दूसरी तरफ भारत में सरकारी अधिकारियों के काम करने के तरीक़ों पर भी सवालिया निशान लगा दिए हैं क्योंकि यह चूक राजनैतिक स्तर पर तो नहीं कही जा सकती है और आज यदि इस तरह के किसी भी आदेश को सरकार सुप्रीम कोर्ट में पलटवाने में नाकामयाब रही तो इससे भ्रष्ट नौकरशाहों और नेताओं समेत अन्य बड़े आपराधिक मामलों के बंद होने का खतरा सामने आ सकता है. अच्छा ही हुआ कि कोर्ट ने इस बड़ी कमी को भले ही साठ सालों बाद ही सही पकड़ तो लिया है और अब जब सीबीआई की स्वायत्ता जैसे अन्य मुद्दे भी देश के सामने चल ही रहे हैं तो उस स्थिति में अब इसे कानूनी दर्ज़ा भी देने की तरफ सरकार को अपने कदम बढ़ा ही देने चाहिए क्योंकि अब इस तरह की गलतियों पर किसी भी तरह की राजनीति करने स्थान पर सभी दलों को इस जांच एजेंसी को मज़बूत करने की तरफ सोचना चाहिए जिससे देश में अभी तक काम कर रही यह एजेंसी अपने काम को और भी बेहतर ढंग से कर पाने में सक्षम हो सके.
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