देश की राजनीति में शुरू से ही अपनी पहुँच और रुतबे को दिखाने के लिए जिस तरह से सुरक्षा के बड़े तामझाम को लेकर चलने को नेता लोग प्राथमिकता देते रहे हैं उसमें अब एक नयी कड़ी इस बात से भी जुड़ती जा रही है कि क्या आने वाले समय में नेताओं को सुरक्षा केवल राजनैतिक कारणों से ही दी जायेगी या उनको होने वाले सम्भावित खतरे पर भी विचार किया जायेगा ? पटना में नरेंद्र मोदी की रैली में जिस आसानी के साथ समाज विरोधी आतंकियों ने कम तीव्रता के बम विस्फोट किये उससे यही पता चलता है कि सुरक्षा सम्बन्धी कारणों और उपायों पर हम बोलते बहुत अधिक हैं पर जब काम करने का समय आता है तो उस समय हमारा विवेक शून्य हो जाता है. गोधरा कांड के बाद से ही नरेंद्र मोदी बहुतों की आँखों की किरकिरी बने हुए हैं पर जब उन पर सुरक्षा का इतना खतरा है तो आखिर पटना में उनकी सुरक्षा के नाम पर केवल मज़ाक ही क्यों किया गया ? मोदी देश के एक राज्य के चुने हुए नेता हैं और जब तक वे पद पर हैं तब तक उनको सीएम के रूप में मिलने वाली सुरक्षा के साथ अन्य खतरों के अनुरूप सुरक्षा देने पर विचार करना भी बहुत आवश्यक है.
आज भाजपा मोदी की सुरक्षा को लेकर इतनी चिंतित नज़र आने लगी है जबकि पटना रैली से पहले उनके पास ऐसा कोई खतरा क्या नहीं था क्योंकि बिहार में भले ही नितीश की सरकार हो पर उसके द्वारा की जाने वाली इस सुरक्षा सम्बन्धी खामी या उपेक्षा की शिकायत भाजपा ने केंद्र सरकार से क्या कभी पहले भी की थी ? यदि भाजपा हज़ारों की भीड़ इकठ्ठा कर रही है तो क्या सभी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसकी नहीं बनती है और क्या वह केवल मोदी की सुरक्षा को ही पुख्ता करके अपने काम को पूरा मान सकती है ? गांधी मैदान में जिस तरह से लोगों को बिना किसी सुरक्षा जांच के अंदर जाने दिया जा रहा था तो क्या किसी नेता को यह दिखायी नहीं दे रहा था कि इससे कितनी बड़ी समस्या सामने आ सकती है किसी भी परिस्थिति में सुरक्षा सम्बन्धी इस चूक को केवल नितीश सरकार की लापरवाही ही नहीं माना जा सकता है और जिस तरह से मोदी की हर रैली से पहले यह भी प्रचारित किया जाता है कि गुजरात पुलिस भी सुरक्षा को देखती है जैसे कोई अन्य राज्य उनको सुरक्षा दे ही नहीं रहा है तो पटना में उससे चूक कैसे हुई ?
आज जब भाजपा ने मोदी को पीएम पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है तो केंद्र और सभी राज्य सरकारों को उनकी सुरक्षा के बारे में बिना राजनीति के सोचना ही होगा क्योंकि उन पर किया गया कोई भी सीधा या परोक्ष हमला उनके उग्र समर्थकों को भड़का कर समाज में समस्या खड़ी कर सकता है. वैसे भी चुनाव के समय अति उत्साह में नेता लोग सुरक्षा घेरे को तोड़कर जनता से मिलने की हर सम्भव कोशिशें किया करते हैं और उस स्थिति में उनकी सुरक्षा खतरे में आ जाती है. इस चुनावी समय में नेताओं को भी सुरक्षा सम्बन्धी खतरों को समझते हुए जनता के साथ मिलने जुलने में सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशों का पालन करना चाहिए क्योंकि उनकी कोई एक चूक भी पूरी सुरक्षा पर भारी पड़ सकती है. चुनाव आते जाते रहेंगें पर आज हम सभी को उस खतरे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जो चुनाव के समय दबे पाँव आ खड़ी होती है. इस मामले में किसी भी तरह की राजनीति से पूरी तरह बचते हुए देश के हर दल के नेता की पूरी और उचित सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे देश विरोधी तत्व कहीं से भी अपने मंसूबों में कामयाब न होने पाएं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज भाजपा मोदी की सुरक्षा को लेकर इतनी चिंतित नज़र आने लगी है जबकि पटना रैली से पहले उनके पास ऐसा कोई खतरा क्या नहीं था क्योंकि बिहार में भले ही नितीश की सरकार हो पर उसके द्वारा की जाने वाली इस सुरक्षा सम्बन्धी खामी या उपेक्षा की शिकायत भाजपा ने केंद्र सरकार से क्या कभी पहले भी की थी ? यदि भाजपा हज़ारों की भीड़ इकठ्ठा कर रही है तो क्या सभी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसकी नहीं बनती है और क्या वह केवल मोदी की सुरक्षा को ही पुख्ता करके अपने काम को पूरा मान सकती है ? गांधी मैदान में जिस तरह से लोगों को बिना किसी सुरक्षा जांच के अंदर जाने दिया जा रहा था तो क्या किसी नेता को यह दिखायी नहीं दे रहा था कि इससे कितनी बड़ी समस्या सामने आ सकती है किसी भी परिस्थिति में सुरक्षा सम्बन्धी इस चूक को केवल नितीश सरकार की लापरवाही ही नहीं माना जा सकता है और जिस तरह से मोदी की हर रैली से पहले यह भी प्रचारित किया जाता है कि गुजरात पुलिस भी सुरक्षा को देखती है जैसे कोई अन्य राज्य उनको सुरक्षा दे ही नहीं रहा है तो पटना में उससे चूक कैसे हुई ?
आज जब भाजपा ने मोदी को पीएम पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है तो केंद्र और सभी राज्य सरकारों को उनकी सुरक्षा के बारे में बिना राजनीति के सोचना ही होगा क्योंकि उन पर किया गया कोई भी सीधा या परोक्ष हमला उनके उग्र समर्थकों को भड़का कर समाज में समस्या खड़ी कर सकता है. वैसे भी चुनाव के समय अति उत्साह में नेता लोग सुरक्षा घेरे को तोड़कर जनता से मिलने की हर सम्भव कोशिशें किया करते हैं और उस स्थिति में उनकी सुरक्षा खतरे में आ जाती है. इस चुनावी समय में नेताओं को भी सुरक्षा सम्बन्धी खतरों को समझते हुए जनता के साथ मिलने जुलने में सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशों का पालन करना चाहिए क्योंकि उनकी कोई एक चूक भी पूरी सुरक्षा पर भारी पड़ सकती है. चुनाव आते जाते रहेंगें पर आज हम सभी को उस खतरे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जो चुनाव के समय दबे पाँव आ खड़ी होती है. इस मामले में किसी भी तरह की राजनीति से पूरी तरह बचते हुए देश के हर दल के नेता की पूरी और उचित सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे देश विरोधी तत्व कहीं से भी अपने मंसूबों में कामयाब न होने पाएं.
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