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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

सुरक्षा और राजनीति

                                    देश की राजनीति में शुरू से ही अपनी पहुँच और रुतबे को दिखाने के लिए जिस तरह से सुरक्षा के बड़े तामझाम को लेकर चलने को नेता लोग प्राथमिकता देते रहे हैं उसमें अब एक नयी कड़ी इस बात से भी जुड़ती जा रही है कि क्या आने वाले समय में नेताओं को सुरक्षा केवल राजनैतिक कारणों से ही दी जायेगी या उनको होने वाले सम्भावित खतरे पर भी विचार किया जायेगा ? पटना में नरेंद्र मोदी की रैली में जिस आसानी के साथ समाज विरोधी आतंकियों ने कम तीव्रता के बम विस्फोट किये उससे यही पता चलता है कि सुरक्षा सम्बन्धी कारणों और उपायों पर हम बोलते बहुत अधिक हैं पर जब काम करने का समय आता है तो उस समय हमारा विवेक शून्य हो जाता है. गोधरा कांड के बाद से ही नरेंद्र मोदी बहुतों की आँखों की किरकिरी बने हुए हैं पर जब उन पर सुरक्षा का इतना खतरा है तो आखिर पटना में उनकी सुरक्षा के नाम पर केवल मज़ाक ही क्यों किया गया ? मोदी देश के एक राज्य के चुने हुए नेता हैं और जब तक वे पद पर हैं तब तक उनको सीएम के रूप में मिलने वाली सुरक्षा के साथ अन्य खतरों के अनुरूप सुरक्षा देने पर विचार करना भी बहुत आवश्यक है.
                                     आज भाजपा मोदी की सुरक्षा को लेकर इतनी चिंतित नज़र आने लगी है जबकि पटना रैली से पहले उनके पास ऐसा कोई खतरा क्या नहीं था क्योंकि बिहार में भले ही नितीश की सरकार हो पर उसके द्वारा की जाने वाली इस सुरक्षा सम्बन्धी खामी या उपेक्षा की शिकायत भाजपा ने केंद्र सरकार से क्या कभी पहले भी की थी ? यदि भाजपा हज़ारों की भीड़ इकठ्ठा कर रही है तो क्या सभी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसकी नहीं बनती है और क्या वह केवल मोदी की सुरक्षा को ही पुख्ता करके अपने काम को पूरा मान सकती है ? गांधी मैदान में जिस तरह से लोगों को बिना किसी सुरक्षा जांच के अंदर जाने दिया जा रहा था तो क्या किसी नेता को यह दिखायी नहीं दे रहा था कि इससे कितनी बड़ी समस्या सामने आ सकती है किसी भी परिस्थिति में सुरक्षा सम्बन्धी इस चूक को केवल नितीश सरकार की लापरवाही ही नहीं माना जा सकता है और जिस तरह से मोदी की हर रैली से पहले यह भी प्रचारित किया जाता है कि गुजरात पुलिस भी सुरक्षा को देखती है जैसे कोई अन्य राज्य उनको सुरक्षा दे ही नहीं रहा है तो पटना में उससे चूक कैसे हुई ?
                                     आज जब भाजपा ने मोदी को पीएम पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है तो केंद्र और सभी राज्य सरकारों को उनकी सुरक्षा के बारे में बिना राजनीति के सोचना ही होगा क्योंकि उन पर किया गया कोई भी सीधा या परोक्ष हमला उनके उग्र समर्थकों को भड़का कर समाज में समस्या खड़ी कर सकता है. वैसे भी चुनाव के समय अति उत्साह में नेता लोग सुरक्षा घेरे को तोड़कर जनता से मिलने की हर सम्भव कोशिशें किया करते हैं और उस स्थिति में उनकी सुरक्षा खतरे में आ जाती है. इस चुनावी समय में नेताओं को भी सुरक्षा सम्बन्धी खतरों को समझते हुए जनता के साथ मिलने जुलने में सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशों का पालन करना चाहिए क्योंकि उनकी कोई एक चूक भी पूरी सुरक्षा पर भारी पड़ सकती है. चुनाव आते जाते रहेंगें पर आज हम सभी को उस खतरे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जो चुनाव के समय दबे पाँव आ खड़ी होती है. इस मामले में किसी भी तरह की राजनीति से पूरी तरह बचते हुए देश के हर दल के नेता की पूरी और उचित सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे देश विरोधी तत्व कहीं से भी अपने मंसूबों में कामयाब न होने पाएं.        
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