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रविवार, 17 नवंबर 2013

राजनैतिक बयान- सुधार और माफ़ी

                                      मुज़फ्फरनगर के मुस्लिम युवाओं के बारे में आईएसआई सम्बन्धी बयान देकर सुर्ख़ियों में आये राहुल गांधी को जिस तरह से विपक्ष की आलोचना का शिकार होना पड़ा था और उसके बाद कहीं न कहीं से कांग्रेस में भी कुछ अंदरूनी परन्तु कम तीव्रता के स्वर सुनायी दे रहे थे उससे यही लगता था कि अब यह मामला पूरी तरह से शांत हो चुका है और आने वाले समय में अब इसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाने वाला है. इस बयान की शिकायत भाजपा द्वारा चुनाव आयोग से भी की गयी थी जिसके बाद आयोग ने राहुल से जवाब भी माँगा और उस जवाब से संतुष्ट न होने पर उन्हें आगे से संभल कर बोलने की नसीहत भी दी पर उर्दू मीडिया से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री और गांधी परिवार के निकट माने जाने वाले जयराम रमेश ने जिस तरह से यह कहा कि उस बयान के लिए राहुल को माफ़ी मांगनी चाहिए वह एक बार फिर से उस विवाद को हवा दे सकता है क्योंकि जयराम रमेश एक ऐसे नेता हैं जो किसी भी मसले पर सहमत न होने पर अप विरोध कराने से कभी भी नहीं चूकते हैं.
                                      देश में चुनावी माहौल के समय बहुत बार ऐसी बातें भी हो जाया करती हैं जिनसे न चाहते हुए भी कुछ नेताओं और दलों को चुनावी लाभ मिल जाया करते हैं और यह भी देखा गया है कि कई बार नेता जानबूझकर अपने वोटों को पक्का करने के लिए भी बहुत ही विवादित बयान भी दे दिया करते हैं जिससे स्थितियां बिगड़ जाया करती हैं. ऐसा केवल राहुल के साथ ही हुआ हो यह भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि चुनावी सभा में भारी भीड़ देखकर अक्सर ही नेता कुछ भी बोल जाते हैं पर अब उसके लिए क्या नेताओं को कुछ सोचने और करने की आवश्यकता नहीं है ? नेता भी मनुष्य ही होते हैं पर यदि किसी नेता द्वारा दिया गया कोई भी बयान इस तरह से विवादों में घिर जाये तो उस स्थिति में नेताओं का क्या उत्तरदायित्व बनता है आज तक देश में यह ही स्पष्ट नहीं हो पाया है क्योंकि चुनाव आयोग या किसी अन्य संवैधानिक संस्था द्वारा फटकारे जाने से ही यदि अपने बयानों को वापस लेने या खेद जताने की प्रक्रिया चलती रहती है तो उससे नेताओं की संवेदन हीनता का ही पता चलता है ?
                                     राहुल के बयान को जिस तरह से भाजपा ने पूरे मुस्लिम समुदाय पर ही प्रश्नचिन्ह के रूप में लिया वहीं अन्य मध्यमार्गी दलों द्वारा भी इस मसले पर कोई सधी हुई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी जबकि जब देश के अगली पीढ़ी के नेताओं की तरफ से यदि इस तरह का कोई भी बयान सामने आये तो सभी दलों को राजनीति से आगे बढ़कर संवैधानिक स्वरुप को बचाये रखने वाले स्वरुप के अनुरूप बात करनी चाहिए. राहुल या कोई भी आया नेता देश के संविधान से किसी भी परिस्थिति में कभी भी बड़ा नहीं हो सकता है इसलिए देश की वर्त्तमान पीढ़ी के साथ आने वाली पीढ़ी को भी उस तरह से ही तैयार किया जाना चाहिए. यदि इस मसले पर राहुल की तरफ से कोई स्पष्टीकरण सामने आता है या फिर माफ़ी मांगी जाती है तो उससे देश में लोकतंत्र ही मंजबूत होने की दिशा में आगे बढ़ेगा और नेताओं के हर तरह से विरोध करने की आदत पर भी लगाम लग सकती है. देश को गलतियों से सीखने वाले नेताओं की सदैव आवश्यकता रहेगी जबकि आज के समय में नेता अपने हर बयान को अकाट्य ही मानने लगे हैं तो आने वाले समय में यह देखना और भी दिलचस्प होगा कि कौन सीखने के लिए तैयार है और कोई पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर राजनीति करने में लगा है.   
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