देश के प्रतिष्ठिति वैज्ञानिक और भारत रत्न के लिए चुने जाने के एक दिन बाद ही जिस तरह से सी.एन.आर राव ने देश में वैज्ञानिक सुविधाओं में कमी की बात पर इशारा करते हुए देश के नेताओं को मूर्ख तक कहा उससे देश में विज्ञान की सही स्थिति का ही पता चलता है. यह सही है कि आज देश से बाहर विदेशों में भारतीय मेधा और प्रतिभा अपने दम पर वैज्ञानिक खोजों और अन्य प्रयासों में बहुत बड़े स्तर पर लगी हुई है और आने वाले समय में सम्भवतः इसके और भी तेज़ी पलायन होने की सम्भावना भी नज़र आ रही है क्योंकि आज भी देश में वैज्ञानिकों को वह सम्मान और सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं जो उनकी मूलभूत आवश्यकता में सम्मिलित हैं. जब हमारे देश में विज्ञान के साथ भी इस तरह से दोहरे मानदंड अपनाये जायेंगें और युवा वैज्ञानिकों को किसी भी तरह से प्रोत्साहन ही नहीं दिया जायेगा तो आने वाले समय में देश में विज्ञान की उपलब्धियां शून्य ही हो जाने वाली हैं जबकि तेज़ी से आगे बढ़ते इस वैज्ञानिक युग में अब देश को इस दिशा में अधिक खर्च करने की बहुत आवश्यकता है.
यह बात सदैव ही नेताओं की तरफ से कही जाती है कि हमारे देश के वैज्ञानिकों में बहुत प्रतिभा है पर जब इस प्रतिभा को निखारने का अवसर आता है तो अन्य फालतू के कामों में धन खर्च करने में कभी भी कोताही न बरतने वाले नेता अचानक से ही कंजूस से दिखायी देने लगते हैं. देश के मंगल अभियान को जिस तेज़ी के साथ वैज्ञानिकों ने कम समय में अंजाम तक पहुँचाया है और उसके बाद से ही जितने बड़े स्तर पर उनकी तारीफ हुई वहीं कुछ लोग देश की गरीबी का रोना लेकर भी बैठ गए और यह भी कहने लगे कि इससे गरीबो को क्या लाभ होगा ? जिन गरीबी मिटाने की उल्टी पुल्टी राजनैतिक योजनाओं के चलते खरबों रूपये बर्बाद हो जाते हैं यदि उनका दसवां हिस्सा भी वैज्ञानिक अनुसंधानों में खर्च कर दिया जाये तो सम्भवतः वैज्ञानिक देश के लिए और भी बहुत कुछ करके दिखा सकते हैं पर राजनेताओं को केवल अपने काम से मतलब होता है और देश के वैज्ञानिक उनको किसी भी सीट पर हरा पाने में कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं. इसलिए सम्भवतः उनकी कुर्सी इन वैज्ञानिकों की तरफ से पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाती है और उनकी उपेक्षा का नया दौर भी शुरू हो जाता है.
अब देश की आवश्यकता है क्योंकि वैज्ञानिक अनुसंधानों में रूचि बढ़ाने और बेहतर विकल्प के रूप में उसे युवा विद्यार्थियों के सामने लाने से ही आने वाले समय में बड़ी वैज्ञानिक सोच के साथ पूरे वैज्ञानिक माहौल को बदलने में सहायता मिल सकती है पर जिस तरह से इन केन्द्रों को केवल वार्षिक खर्चे चलाने के लिए ही बजट का आवंटन किया जाता है उस परिस्थिति में आखिर देश में वैज्ञानिकों का भविष्य कैसे उज्जवल दिखायी दे सकता है. प्रोफेसर राव ने एक और महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि देश में उतना राष्ट्रवाद भी नहीं है जितना चीन में है क्योंकि हमारे वैज्ञानिक भी थोड़े से धन के लालच में देश छोड़कर बाहर जाने के लिए राज़ी हो जाते हैं और देश के लिए उनके द्वारा जो कुछ भी किया जा सकता था उसका लाभ देश को नहीं मिल पाता है. अब इस परिस्थिति से निपटने के लिए किसी में राष्ट्रवाद को ज़बरदस्ती तो ठूंसा नहीं जा सकता है और केवल क्रिकेट, आतंकी हमले और युद्ध के समय दिखायी देने वाले खोखले राष्ट्रवाद से निपटने के लिए अब हर क्षेत्र के व्यक्ति को देश के लिए सोचने की तरफ बढ़ने की बहुत आवश्यकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह बात सदैव ही नेताओं की तरफ से कही जाती है कि हमारे देश के वैज्ञानिकों में बहुत प्रतिभा है पर जब इस प्रतिभा को निखारने का अवसर आता है तो अन्य फालतू के कामों में धन खर्च करने में कभी भी कोताही न बरतने वाले नेता अचानक से ही कंजूस से दिखायी देने लगते हैं. देश के मंगल अभियान को जिस तेज़ी के साथ वैज्ञानिकों ने कम समय में अंजाम तक पहुँचाया है और उसके बाद से ही जितने बड़े स्तर पर उनकी तारीफ हुई वहीं कुछ लोग देश की गरीबी का रोना लेकर भी बैठ गए और यह भी कहने लगे कि इससे गरीबो को क्या लाभ होगा ? जिन गरीबी मिटाने की उल्टी पुल्टी राजनैतिक योजनाओं के चलते खरबों रूपये बर्बाद हो जाते हैं यदि उनका दसवां हिस्सा भी वैज्ञानिक अनुसंधानों में खर्च कर दिया जाये तो सम्भवतः वैज्ञानिक देश के लिए और भी बहुत कुछ करके दिखा सकते हैं पर राजनेताओं को केवल अपने काम से मतलब होता है और देश के वैज्ञानिक उनको किसी भी सीट पर हरा पाने में कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं. इसलिए सम्भवतः उनकी कुर्सी इन वैज्ञानिकों की तरफ से पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाती है और उनकी उपेक्षा का नया दौर भी शुरू हो जाता है.
अब देश की आवश्यकता है क्योंकि वैज्ञानिक अनुसंधानों में रूचि बढ़ाने और बेहतर विकल्प के रूप में उसे युवा विद्यार्थियों के सामने लाने से ही आने वाले समय में बड़ी वैज्ञानिक सोच के साथ पूरे वैज्ञानिक माहौल को बदलने में सहायता मिल सकती है पर जिस तरह से इन केन्द्रों को केवल वार्षिक खर्चे चलाने के लिए ही बजट का आवंटन किया जाता है उस परिस्थिति में आखिर देश में वैज्ञानिकों का भविष्य कैसे उज्जवल दिखायी दे सकता है. प्रोफेसर राव ने एक और महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि देश में उतना राष्ट्रवाद भी नहीं है जितना चीन में है क्योंकि हमारे वैज्ञानिक भी थोड़े से धन के लालच में देश छोड़कर बाहर जाने के लिए राज़ी हो जाते हैं और देश के लिए उनके द्वारा जो कुछ भी किया जा सकता था उसका लाभ देश को नहीं मिल पाता है. अब इस परिस्थिति से निपटने के लिए किसी में राष्ट्रवाद को ज़बरदस्ती तो ठूंसा नहीं जा सकता है और केवल क्रिकेट, आतंकी हमले और युद्ध के समय दिखायी देने वाले खोखले राष्ट्रवाद से निपटने के लिए अब हर क्षेत्र के व्यक्ति को देश के लिए सोचने की तरफ बढ़ने की बहुत आवश्यकता है.
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