मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

बुद्धिजीवी और बौद्धिक बंटवारा

                         पिछले दिनों सचिन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद जिस तरह से क्रिकेट प्रेमियों ने पूरे मनोयोग से सरकार के इस फैसले का समर्थन किया उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में वर्तमान नायकों को चाहने वाले और पुराने नायकों को भुला देने में माहिर हमारा समाज अभी भी बदलना नहीं चाहता है ? इस घोषणा के साथ ही यह भी पता चला कि देश के मिसाइल मैन और भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम को बेहोश होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है पर देश की अपने को धन्य समझने वाली जनता और मीडिया ने जहाँ पूरी तरह से सचिन का गुणगान ही करने में पूरा दिन खपा दिया वहीं डॉ कलाम से जुड़ी ख़बरों को प्राथमिकता भी नहीं मिल पायी ? सोशल मीडिया में भी कुछ थोड़े स्तर पर ही सचिन को इस तरह से भारत रत्न दिए जाने के कुछ स्वर सुनायी दिए पर पूरे प्रकरण में खेल भावना पूरी तरह से हारती नज़र आयी और आर्थिक स्वरुप उस भावना को बुरी तरह कुचलता हुआ भी दिखायी दिया.
                         पूरे समाचार जगत में सचिन और क्रिकेट को महत्त्व सिर्फ इसलिए दिया गया क्योंकि आज के समय में वे बिकाऊ माल हैं और डॉ कलाम से किसी का क्या भला हो सकता है तो बेकार में ख़बरें चलाकर या अपने पन्नों को ख़राब करने की क्या आवश्यकता है ? इस पूरे प्रकरण में जहाँ कथित बुद्धिजीवियों ने भी अपनी सुविधा के अनुरूप पाले चुने और दूसरे पाले के लोगों को हर तरह से नीचा दिखाने का प्रयास किया उससे यही लगता है कि आने वाले समय में कुछ भी सम्भव है और बुद्धिजीवियों के लिए भी केवल वही कुछ महत्वपूर्ण है जो बिक सकता है. देश को आज पूरी तरह से निष्पक्ष होने की आवश्यकता है पर जिस तरह से खेलों के मामले में क्रिकेट ने पूरे भारतीय खेल परिदृश्य को धुंधला कर दिया है तो उसके लिए क्या अन्य खेलों के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है ? एक समय मीडिया को डॉ कलाम में भी सचिन जैसा जादुई और आकर्षक व्यक्तित्व दिखता था पर उनकी बीमारी के समय उनके लिए कुछ समय का जुगाड़ करना भी उसी मीडिया के लिए भारी पड़ रहा था ?
                          एक और स्पष्ट बात होनी चाहिए कि कुछ लोग आज के समय में कुछ लोगों की किसी भी स्तर पर आलोचना स्वीकार नहीं कर पाते हैं तो उनको अपने अंदर झाँक कर देखने की आवश्यकता है क्योंकि केवल वोटों के जुगाड़ और मराठी भावना को भुनाने के लिए सरकार ने अचानक ही यह घोषणा कर दी उससे क्या साबित होता है ? अच्छा होता कि खेल के सम्बन्ध में यदि भारत रत्न दिए जाने का निर्णय हुआ था तो सभी खेलों और भारतीय खेल के महानायकों को इसी अवसर पर भारत रत्न दे दिया जाता जिससे उन खेलों से जुड़ने वाले खिलाड़ियों को भी कुछ प्रोत्साहन ही मिल जाता ? क्रिकेट को तो बाज़ार से इतना प्रोत्साहन मिला हुआ है कि वहाँ पर अरबों रुपयों की कमाई की जा रही है और वह रोज़ ही बढ़ती जा रही है इसलिए आने वाले समय में अब यह तो सोचना ही होगा कि किसी बात की आलोचना या समर्थन करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर भी विचार किया जाए पर हमारे नेता जिस तेज़ी से लोगों की नब्ज़ पकड़कर आगे बढ़ने का गुर जानते हैं वह अपने आप में ही अनूठा है और क्रिकेट, शरद पवार और सचिन के साथ मराठी मानुष का यह खेल तो खेल ही जा चुका है ?       
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