चुनावी वर्ष में जहाँ कोई भी सरकार अपने दम पर ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती है जिसका उसके वोटों पर बुरा प्रभाव पड़े वहीं दूसरी तरफ उसकी नीतियां और मसले को टालने का रवैया भी बड़ी समस्याओं को जन्म देने से नहीं चूकता है. यूपी में इस बार गन्ना किसानों के लिए जिस तरह से मुश्किल हालत बनते जा रहे हैं उसके बाद उनके लिए गन्ने की खेती कर पाना बहुत मुश्किल ही होने वाला है. किसान राजनीति के चलते जहाँ कोई भी दल अपने को किसानों का हितैषी बताने से नहीं चूकता है वहीं दूसरी चीनी उद्योग में जिस स्तर पर सुधार की आवश्यकता है उस पर कोई भी सरकार ध्यान देना ही नहीं चाहती है और किसानों के लिए अब सबसे बड़ी मुसीबत यह आ गयी है कि चीनी उद्योग से जुडी लगभग ९९ चीनी मिलों ने क्रम वार सरकार को मिल न चलाने का नोटिस भेजना शुरू कर दिया है और जिन मिलों का पंजीकरण बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में भी है उन्होंने उसे भी यह सूचना भेज दी है कि इस वर्ष वे पेराई सत्र में मिलों को चालू नहीं कर रही हैं.
देश की राजनीति में इससे बुरा समय और कोई हो भी नहीं सकता है कि सरकार इस तरह से अपनी बातों को केवल नोटिस के माध्यम से ही आगे करती रहे भले ही उससे प्रदेश में कुछ भी अराजकता पनपती रहे ? पूर्वी और मध्य यूपी में तो सम्भवतः यह कानून व्यवस्था का मामला नहीं बने पर पश्चिमी यूपी जहाँ कवाल कांड के बाद से ही सरकार को हर मामले पर उसे घेरने की रणनीति चल रही है उस स्थिति में अब सपा के लिए वहाँ पर पहले से ही उबलती हुई परिस्थितियों को सम्भालना और भी मुश्किल ही होने वाला है. सपा सरकार अखिलेश के नेतृत्व में जिस तरह से आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर जिस तरह से रोज़ ही पिछड़ती सी नज़र आ रही है उसमें कहीं सपा की अंदरूनी राजनीति का ही योगदान तो नहीं है क्योंकि यह भी सम्भव है कि लोकसभा चुनावों तक किसी भी तरह से अखिलेश के माध्यम से ही सरकार को धकेला जाये और अपेक्षित परिणाम न मिलने पर अपनी राजनीति को बचाये रखने के लिए खुद मुलायम एक बार फिर से सीएम बन जाएँ ?
पार्टियों को हर तरह की राजनीति करने का पूरा अधिकार संविधान ने एक दायरे में रहते हुए दे ही रखा है पर आज जिस तरह से केवल राजनीति करने के लिए जन साधारण से जुड़े हुए मुद्दों पर सरकार सो रही है उसका बहुत ही बुरा असर सरकार पर पड़ना ही है फिर भी जिस निश्चिंतता के साथ अखिलेश केवल आईटी और शहरी विकास की बातें करने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि उनको सम्भवतः इस बात का आभास भी नहीं है कि गन्ना किसान आंदोलित होकर पूरे प्रदेश को पलक झपकते ही ठप कर सकते हैं ? राज्य कर्मचारियों की हड़ताल से निपटने के लिए हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा है और सम्भवतः गन्ना किसानों के मामले में भी चीनी मिलों को कोई अंतरिम आदेश कोर्ट से मिलेगा तो फिर इन नौटंकी भरी सरकारों की आवश्यकता ही क्या है ? गन्ने की राजनीति ने पूरे देश में सदैव से ही एक संकट जैसी स्थिति बनाये रखी है और अभी तक केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा भी इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया गया है जिससे भी पूरे मसले में उलझाव अधिक बढ़ गया है. मिल मालिकों को पहले पिछले वर्ष का बकाया किसानों को चुकाना चाहिए और उसके बाद सरकार को किसी कारगर नीति के बारे में सोचना चाहिए जिससे देश में चीनी उत्पादन पर बुरा असर न पड़ने पाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश की राजनीति में इससे बुरा समय और कोई हो भी नहीं सकता है कि सरकार इस तरह से अपनी बातों को केवल नोटिस के माध्यम से ही आगे करती रहे भले ही उससे प्रदेश में कुछ भी अराजकता पनपती रहे ? पूर्वी और मध्य यूपी में तो सम्भवतः यह कानून व्यवस्था का मामला नहीं बने पर पश्चिमी यूपी जहाँ कवाल कांड के बाद से ही सरकार को हर मामले पर उसे घेरने की रणनीति चल रही है उस स्थिति में अब सपा के लिए वहाँ पर पहले से ही उबलती हुई परिस्थितियों को सम्भालना और भी मुश्किल ही होने वाला है. सपा सरकार अखिलेश के नेतृत्व में जिस तरह से आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर जिस तरह से रोज़ ही पिछड़ती सी नज़र आ रही है उसमें कहीं सपा की अंदरूनी राजनीति का ही योगदान तो नहीं है क्योंकि यह भी सम्भव है कि लोकसभा चुनावों तक किसी भी तरह से अखिलेश के माध्यम से ही सरकार को धकेला जाये और अपेक्षित परिणाम न मिलने पर अपनी राजनीति को बचाये रखने के लिए खुद मुलायम एक बार फिर से सीएम बन जाएँ ?
पार्टियों को हर तरह की राजनीति करने का पूरा अधिकार संविधान ने एक दायरे में रहते हुए दे ही रखा है पर आज जिस तरह से केवल राजनीति करने के लिए जन साधारण से जुड़े हुए मुद्दों पर सरकार सो रही है उसका बहुत ही बुरा असर सरकार पर पड़ना ही है फिर भी जिस निश्चिंतता के साथ अखिलेश केवल आईटी और शहरी विकास की बातें करने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि उनको सम्भवतः इस बात का आभास भी नहीं है कि गन्ना किसान आंदोलित होकर पूरे प्रदेश को पलक झपकते ही ठप कर सकते हैं ? राज्य कर्मचारियों की हड़ताल से निपटने के लिए हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा है और सम्भवतः गन्ना किसानों के मामले में भी चीनी मिलों को कोई अंतरिम आदेश कोर्ट से मिलेगा तो फिर इन नौटंकी भरी सरकारों की आवश्यकता ही क्या है ? गन्ने की राजनीति ने पूरे देश में सदैव से ही एक संकट जैसी स्थिति बनाये रखी है और अभी तक केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा भी इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया गया है जिससे भी पूरे मसले में उलझाव अधिक बढ़ गया है. मिल मालिकों को पहले पिछले वर्ष का बकाया किसानों को चुकाना चाहिए और उसके बाद सरकार को किसी कारगर नीति के बारे में सोचना चाहिए जिससे देश में चीनी उत्पादन पर बुरा असर न पड़ने पाये.
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