पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने एनर्जी कॉन्क्लेव में अपनी तरफ से सरकारी रुख को स्पष्ट करते हुए यह कहा है कि सरकार का अगले छह महीनों में डीज़ल को भी नियंत्रण मुक्त कर देने का इरादा है जिसके बाद पेट्रोल की तरह इसके मूल्य का निर्धारण सरकार नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के हवाले ही हो जायेगा. अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं और रूपये में मज़बूती और कच्चे तेल की की कीमतों में गिरावट आयी तो देश में यह लक्ष्य जल्दी ही हासिल कर लिया जायेगा क्योंकि जिस तरह से सरकार ने डीज़ल मूल्य को प्रति माह ५० पैसे बढ़ाने की अनुमति तेल कम्पनियों को दे रखी है उसके तहत वर्त्तमान मूल्यों पर यह लक्ष्य पूरा करने में १९ महीने लग सकते हैं पर यदि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां रूपये और कच्चे तेल में भारत के पक्ष में आयीं तो इसे जल्दी ही मुक्त भी किया जा सकता है.
देश में डीज़ल, घरेलू गैस और केरोसीन को अभी तक जिस तरह से सस्ती और लोकप्रिय राजनीति से जोड़ा जाता रहा है अब बदलते आर्थिक परिदृश्य में उससे भी पीछा छुड़ाने की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह से विकासशील अर्थ व्यवस्थाओं में यदि इस तरह के अनावश्यक वित्तीय बोझ भी सरकारों पर पड़ते रहेंगे तो उसके पास अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए धन की कमी अवश्य ही हो जायेगी. देश को अब केरोसीन की राजनीति के साथ घरेलू गैस के बारे में भी अलग तरीके से सोचना ही होगा क्योंकि दूसरे देशों आयातित होने वाले इन पदार्थों पर किसी भी तरह की राजनीति अब लोगों पर भारी ही पड़ने वाली है. सरकार जिन गरीबों के लिए सस्ते केरोसीन को उपलब्ध कराने का दावा करती है उन लोगों को पीडीएस से यह तेल कभी मिल ही नहीं पाता है और स्थानीय कालाबाज़ारियों और नेताओं के गठजोड़ के चलते इसे डीज़ल में मिलकर पर्यावरण को भी बहुत बड़ा नुक्सान पहुँचाया जा रहा है ?
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने भी जिस तरह से घरेलू कोयले के दामों में बढ़ोत्तरी की सिफारिश की वह भी समयानुकूल और स्वागत योग्य है क्योंकि आज देश के कोयले की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से काफी कम है पर इसे एक दम से बढ़ाने के स्थान पर एक सुगम नीति बनाकर ही बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि जब तक देश में इस तरह से उपलब्ध संसाधनों का दुरूपयोग किया जाता है उस स्थिति में अब आगे हमें कोयले की कमी से भी जूझना पड़ सकता है. हमारे आज के संसाधन लुट रहे हैं और आने वाले समय में हमें इनके आयात के बारे में सोचना पड़ सकता है ? इस स्थिति में पूरी पेट्रोलियम नीति को राष्ट्रीय सहमति के बाद पुनर्निर्धारित किये जाने की आज बहुत आवश्यकता है क्योंकि यदि इसे समय रहते सुधारा नहीं गया तो आने वाले समय में नेता लोकप्रिय क़दमों के चक्कर में देश के संसाधनों का इसी तरह से दुरूपयोग करते रहेंगें और जब हमें कोयले की आवश्यकता होगी तो हमें वो दूसरों से आयात करना पड़ेगा. देश को सही और पारदर्शी आम सहमति के साथ बनायीं गयी पेट्रोलियम नीति की अब बहुत आवश्यकता है जिसे नेताओं के स्थान पर देश के हितों को ध्यान में रखकर बनाया जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में डीज़ल, घरेलू गैस और केरोसीन को अभी तक जिस तरह से सस्ती और लोकप्रिय राजनीति से जोड़ा जाता रहा है अब बदलते आर्थिक परिदृश्य में उससे भी पीछा छुड़ाने की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह से विकासशील अर्थ व्यवस्थाओं में यदि इस तरह के अनावश्यक वित्तीय बोझ भी सरकारों पर पड़ते रहेंगे तो उसके पास अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए धन की कमी अवश्य ही हो जायेगी. देश को अब केरोसीन की राजनीति के साथ घरेलू गैस के बारे में भी अलग तरीके से सोचना ही होगा क्योंकि दूसरे देशों आयातित होने वाले इन पदार्थों पर किसी भी तरह की राजनीति अब लोगों पर भारी ही पड़ने वाली है. सरकार जिन गरीबों के लिए सस्ते केरोसीन को उपलब्ध कराने का दावा करती है उन लोगों को पीडीएस से यह तेल कभी मिल ही नहीं पाता है और स्थानीय कालाबाज़ारियों और नेताओं के गठजोड़ के चलते इसे डीज़ल में मिलकर पर्यावरण को भी बहुत बड़ा नुक्सान पहुँचाया जा रहा है ?
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने भी जिस तरह से घरेलू कोयले के दामों में बढ़ोत्तरी की सिफारिश की वह भी समयानुकूल और स्वागत योग्य है क्योंकि आज देश के कोयले की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से काफी कम है पर इसे एक दम से बढ़ाने के स्थान पर एक सुगम नीति बनाकर ही बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि जब तक देश में इस तरह से उपलब्ध संसाधनों का दुरूपयोग किया जाता है उस स्थिति में अब आगे हमें कोयले की कमी से भी जूझना पड़ सकता है. हमारे आज के संसाधन लुट रहे हैं और आने वाले समय में हमें इनके आयात के बारे में सोचना पड़ सकता है ? इस स्थिति में पूरी पेट्रोलियम नीति को राष्ट्रीय सहमति के बाद पुनर्निर्धारित किये जाने की आज बहुत आवश्यकता है क्योंकि यदि इसे समय रहते सुधारा नहीं गया तो आने वाले समय में नेता लोकप्रिय क़दमों के चक्कर में देश के संसाधनों का इसी तरह से दुरूपयोग करते रहेंगें और जब हमें कोयले की आवश्यकता होगी तो हमें वो दूसरों से आयात करना पड़ेगा. देश को सही और पारदर्शी आम सहमति के साथ बनायीं गयी पेट्रोलियम नीति की अब बहुत आवश्यकता है जिसे नेताओं के स्थान पर देश के हितों को ध्यान में रखकर बनाया जाये.
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