केंद्र सरकार की देश के नागरिकों को एक पुष्ट और वैधानिक पहचान देने की अति प्रचारित और महत्वाकांक्षी परियोजना यूआईडी (आधार कार्ड) एक बार फिर से कानूनी विवादों में घिरी हुई है क्योंकि जिस तरह से इसके द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के निजी क्षेत्र के साथ साझा किये जाने के मसले को भारत में संविधान द्वारा प्रदत्त निजता का उल्लंघन माना गया है और मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है उस परिस्थिति में यही लगता है कि देश में अच्छी परियोजनाओं का भी किस तरह से बाज़ा बजाया जाता है ? अभी तक देश के किसी भी नागरिक के पास ऐसा कोई भी एक जैसा प्रमाण नहीं होता है जिससे यह कहा जा सके कि वह देश का नागरिक है और उसकी पहचान उस प्रपत्र या संख्या के द्वारा की जा सकती है ? देश में बढ़ते सुरक्षा संकटों के बीच सरकार ने एक ऐसी योजना के बार में सोचा था जिसके माध्यम से नागरिकों की पूरी जानकारी तो जुटाई ही जा सकती है और साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उस सूचना का उपयोग देश में भविष्य के लिए योजनाएं बनाने के काम भी आ सकता है.
इस महत्वपूर्ण योजना में जिस तरह से सरकार की तरफ से इसे प्रारम्भ में ही कानूनी स्वरुप नहीं प्र्रदान किया गया और इसे केवल अधिसूचना के सहारे ही चलाने की जुगत इतने दिनों से चलती रही वह सरकारी मशीनरी के काम काज की तरफ तो इशारा करती ही है साथ ही नेताओं की उस कमी को भी सामने लाती है जिसमें वे महत्वपूर्ण कामों को करने के लिए भी आवश्यक कानूनी कदम भी नहीं उठाते हैं क्योंकि ऐसा ही अभी हाल ही में सीबीआई के मामले में देखा जा चुका है ? देश में किसी भी अधिसूचना या आदेश के जारी होने के बाद उसके समर्थन में कानूनी कार्यवाही पूरी कर उसे कानून का रूप देना संविधान में आवश्यक है पर कई बार इस तरह की चूक सरकारों के काम करने की परिस्थितियों को भी दर्शाती है कि देश में किस तरह से काम किया जाता है ? सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों से जवाब माँगा है जिन्होंने अपने यहाँ की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया हुआ है क्योंकि आज की तारीख़ में इसे कोई भी कानूनी स्वरुप प्राप्त नहीं है.
इस समस्या से निपटने के लिए अब सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नया कानून पेश करने का मन बना लिया है और इसकी उपयोगिता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में कोई भी राजनैतिक दल इसका विरोध संसद में नहीं करेगा जिससे इसे तुरंत ही कानूनी स्वरुप दिया जा सकेगा. इसके कानूनी रूप से वैध हो जाने के साथ ही यह भी अनिवार्य किया जाना चाहिए कि आने वाले एक वर्ष में पूरी तरह से अभियान चलाकर हर नागरिक को यह संख्या अवश्य ही उपलब्ध कर दी जाये क्योंकि आने वाले समय में इसकी विलक्षण पहचान के कारण इसका उपयोग चुनाव में वोट डालने में भी किया जा सकता है क्योंकि इसकी विशिष्टता ही इसे हर नागरिक को अलग पहचान कर उसकी स्थिति को प्रदर्शित करने की है जिसका सबसे अधिक उपयोग चुनावों में ही होता है क्योंकि किसी अन्य के द्वारा वोट डाले जाने की घटनाएं तो पहले से काफी कम हो चुकी हैं और आने वाले समय में यह और भी प्रभावी रूप से सामने आने वाली है. इस आधार को अब कानूनी आधार की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अब देश को अपनी भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए नागरिकों की पहचान मज़बूत और स्पष्ट करने की आवश्यकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस महत्वपूर्ण योजना में जिस तरह से सरकार की तरफ से इसे प्रारम्भ में ही कानूनी स्वरुप नहीं प्र्रदान किया गया और इसे केवल अधिसूचना के सहारे ही चलाने की जुगत इतने दिनों से चलती रही वह सरकारी मशीनरी के काम काज की तरफ तो इशारा करती ही है साथ ही नेताओं की उस कमी को भी सामने लाती है जिसमें वे महत्वपूर्ण कामों को करने के लिए भी आवश्यक कानूनी कदम भी नहीं उठाते हैं क्योंकि ऐसा ही अभी हाल ही में सीबीआई के मामले में देखा जा चुका है ? देश में किसी भी अधिसूचना या आदेश के जारी होने के बाद उसके समर्थन में कानूनी कार्यवाही पूरी कर उसे कानून का रूप देना संविधान में आवश्यक है पर कई बार इस तरह की चूक सरकारों के काम करने की परिस्थितियों को भी दर्शाती है कि देश में किस तरह से काम किया जाता है ? सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों से जवाब माँगा है जिन्होंने अपने यहाँ की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया हुआ है क्योंकि आज की तारीख़ में इसे कोई भी कानूनी स्वरुप प्राप्त नहीं है.
इस समस्या से निपटने के लिए अब सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नया कानून पेश करने का मन बना लिया है और इसकी उपयोगिता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में कोई भी राजनैतिक दल इसका विरोध संसद में नहीं करेगा जिससे इसे तुरंत ही कानूनी स्वरुप दिया जा सकेगा. इसके कानूनी रूप से वैध हो जाने के साथ ही यह भी अनिवार्य किया जाना चाहिए कि आने वाले एक वर्ष में पूरी तरह से अभियान चलाकर हर नागरिक को यह संख्या अवश्य ही उपलब्ध कर दी जाये क्योंकि आने वाले समय में इसकी विलक्षण पहचान के कारण इसका उपयोग चुनाव में वोट डालने में भी किया जा सकता है क्योंकि इसकी विशिष्टता ही इसे हर नागरिक को अलग पहचान कर उसकी स्थिति को प्रदर्शित करने की है जिसका सबसे अधिक उपयोग चुनावों में ही होता है क्योंकि किसी अन्य के द्वारा वोट डाले जाने की घटनाएं तो पहले से काफी कम हो चुकी हैं और आने वाले समय में यह और भी प्रभावी रूप से सामने आने वाली है. इस आधार को अब कानूनी आधार की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अब देश को अपनी भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए नागरिकों की पहचान मज़बूत और स्पष्ट करने की आवश्यकता है.
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