देश में लगता है कि कथित तरक्की के बाद भी आज पुरुष मानसिकता के वर्चस्व और प्रभुत्व वादी सोच को कम नहीं किया जा सका है क्योंकि आज जिस तरह से दो मामलों में दो तरह की बातें की जा रही हैं उससे यही स्पष्ट होता है. पहला मामला किसी साहब द्वारा एक महिला की जासूसी करवाने का है और दूसरा मामला देश के बेहद प्रभावशाली संपादक से जुड़ा हुआ है जहाँ पहले मामले में महिला द्वारा चुप रहना ठीक समझा जा रहा है वहीं दूसरे मामले लड़की की शिकायत पर आज तेजपाल अपने सबसे बुरे समय को देख रहे हैं ? एक मामले में जहाँ शक़ की सुइयां सीधे एक राज्य के मुखिया की तरफ उठ रही हैं वहीं दूसरे में अपने पुराने द्रोही संपादक को निपटाने की तड़प साफ़ तौर पर देखी जा सकती है ? सवाल यह उठता है कि महिलाओं के खिलाफ इस तरह से कुछ भी होने पर इसके राजनैतिक निहितार्थ आखिर क्यों निकाले जाते हैं जबकि सारे मामलों में सबसे पहले महिलाओं की बातों पर भरोसा कर एक निष्पक्ष जांच कर दोषियों को सजा दिलवाने का प्रयास किया जाना चाहिए ?
संपादक हो या साहब देश का संविधान किसी भी व्यक्ति को किसी भी अन्य व्यक्ति या महिला के सम्मान को ठेस पहुँचाने का मौका नहीं देता है और जब इस तरह की कोई भी शिकायत सामने आती है तो उस पर संवेदनशील होकर काम किये जाने की आवश्यकता होती है पर भारतीय नेताओं की मानसिकता कुछ ऐसी होती जा रही है कि वे हर मामले को अपने राजनैतिक हितों को साधने का लिए ही इस्तेमाल करना चाहते हैं जिससे न्याय कहीं पीछे छूट जाया करता है और राजनीति हावी हो जाया करती है. जब कानून अपना काम कर रहा है तो कम से कम नेताओं को अपनी ज़बान बंद ही रखनी चाहिए और यदि किसी के पास कुछ ठोस सबूत हो तो उसे जांच अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए. तरुण को यह बात पता थी कि मामला खुलने के बाद क्या हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने को तहलका से अलग कर लिया वर्ना उन्हें उनके पद से हटाये जाने का डर भी था पर दूसरों से नैतिकता की उम्मीद रखने वाले नेता किस तरह से कुर्सी से चिपके रहकर जांचों का ढोंग किया करते हैं यह दूसरों से अलग कहने वाले लोगों कि कार्यशैली में दिखायी भी दे रहा है ?
राजनीति में आज तक महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिला है किसी को कोई महिला सौ टंच दिखती है तो कोई मंत्री किसी डीएम की तारीफ करते हुए बहक जाता है ? कोई साहब किसी महिला की जासूसी करवाते हैं तो कोई नेता कहता है कि अब महिला पीए रखने में नेता डरने लगे हैं ? क्या नेताओं की पूरी जमात ही ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो महिलाओं के सम्मान के नाम पर लम्बी चौड़ी बातें तो हांक लेते हैं पर जब वास्तव में सम्मान करने की बात आती है तो उनकी मानसिकता वहाँ पर प्रभावी होने लगती है ? अच्छा हो कि महिलाओं को हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ शिकायत करने की हिम्मत मिले और इस तरह से महिलाओं के आत्म सम्मान और उनकी निजता का हनन करने वाले हर व्यक्ति को सीख भी मिले कि अब वह महिलाओं को केवल अपने हित और उसकी मजबूरी के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है और ऐसा करने पर उसे देश के कानून द्वारा दण्डित किया जायेगा. आज महिलाओं द्वारा किसी भी तरह की शिकायत किये जाने के बाद जिस तरह से भारतीय मानसिकता उस पर ही उंगली उठाने से नहीं चूकती है उससे भी दूर हटने की आवश्यकता है क्योंकि कोई लड़की या महिला बिना बात के लिए इस तरह का आरोप तो नहीं लगा सकती है. फिलहाल नेता अपने काम में लगे हुए हैं और देश में महिलाओं के सम्मान को पल पल ठेस लगायी जा रही है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
संपादक हो या साहब देश का संविधान किसी भी व्यक्ति को किसी भी अन्य व्यक्ति या महिला के सम्मान को ठेस पहुँचाने का मौका नहीं देता है और जब इस तरह की कोई भी शिकायत सामने आती है तो उस पर संवेदनशील होकर काम किये जाने की आवश्यकता होती है पर भारतीय नेताओं की मानसिकता कुछ ऐसी होती जा रही है कि वे हर मामले को अपने राजनैतिक हितों को साधने का लिए ही इस्तेमाल करना चाहते हैं जिससे न्याय कहीं पीछे छूट जाया करता है और राजनीति हावी हो जाया करती है. जब कानून अपना काम कर रहा है तो कम से कम नेताओं को अपनी ज़बान बंद ही रखनी चाहिए और यदि किसी के पास कुछ ठोस सबूत हो तो उसे जांच अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए. तरुण को यह बात पता थी कि मामला खुलने के बाद क्या हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने को तहलका से अलग कर लिया वर्ना उन्हें उनके पद से हटाये जाने का डर भी था पर दूसरों से नैतिकता की उम्मीद रखने वाले नेता किस तरह से कुर्सी से चिपके रहकर जांचों का ढोंग किया करते हैं यह दूसरों से अलग कहने वाले लोगों कि कार्यशैली में दिखायी भी दे रहा है ?
राजनीति में आज तक महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिला है किसी को कोई महिला सौ टंच दिखती है तो कोई मंत्री किसी डीएम की तारीफ करते हुए बहक जाता है ? कोई साहब किसी महिला की जासूसी करवाते हैं तो कोई नेता कहता है कि अब महिला पीए रखने में नेता डरने लगे हैं ? क्या नेताओं की पूरी जमात ही ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो महिलाओं के सम्मान के नाम पर लम्बी चौड़ी बातें तो हांक लेते हैं पर जब वास्तव में सम्मान करने की बात आती है तो उनकी मानसिकता वहाँ पर प्रभावी होने लगती है ? अच्छा हो कि महिलाओं को हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ शिकायत करने की हिम्मत मिले और इस तरह से महिलाओं के आत्म सम्मान और उनकी निजता का हनन करने वाले हर व्यक्ति को सीख भी मिले कि अब वह महिलाओं को केवल अपने हित और उसकी मजबूरी के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है और ऐसा करने पर उसे देश के कानून द्वारा दण्डित किया जायेगा. आज महिलाओं द्वारा किसी भी तरह की शिकायत किये जाने के बाद जिस तरह से भारतीय मानसिकता उस पर ही उंगली उठाने से नहीं चूकती है उससे भी दूर हटने की आवश्यकता है क्योंकि कोई लड़की या महिला बिना बात के लिए इस तरह का आरोप तो नहीं लगा सकती है. फिलहाल नेता अपने काम में लगे हुए हैं और देश में महिलाओं के सम्मान को पल पल ठेस लगायी जा रही है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 29-11-2013 चर्चा मंच-स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1445) पर ।। सादर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (29-11-2013) को स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1446) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'