लगता है कि देश की विधायिका महत्वपूर्ण मामलों में अपने स्तर से निर्णय लेने में पूरी तरह से पंगु हो चुकी है तभी सामान्य प्रशासन से जुड़े हुए मसलों पर लगातार सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ रहा है ? ताज़ा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर बहुत सख्ती के साथ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को इस बात के स्पष्ट निर्देश जारी किये हैं जिसमें उनसे लाल बत्ती के दुरूपयोग को रोकने के लिए कानून में अपेक्षित सुधार करने की बात कही है और जिस तरह से इस बार कोर्ट के निर्देश सख्ती के साथ आये हैं उससे विशेष रूप से राज्य सरकारों के लिए मुसीबतें और भी बढ़ने वाली हैं क्योंकि इस मामले में वही अधिक दुरूपयोग किया करती हैं और केंद्र की तरफ से केवल दिशा निर्देश ही जारी किये जा सकते हैं क्योंकि यह राज्यों स एजडा हुआ मसला होता है और इस बात को गम्भीरता से समझने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि सभी राज्य सरकारें केंद्र के निर्देशों के तहत ही लाल बत्ती के उपयोग की अनुमति प्रदान करें.
कोर्ट ने जिस तरह से अपनी बात को कहा और सभी राज्यों से इस बाबत कानून बनाकर सूचित करने की बात कही है उससे राज्य सरकारों के लिए अब रेवड़ियों की तरह लाल बत्ती पकड़ाकर अपने समर्थक छुटभैय्ये नेताओं को देने में बहुत बड़ी समस्या ही आने वाली है क्योंकि राज्यों में किसी क्षेत्र या जाति विशेष के नेताओं को अपने राजनैतिक संतुलन बनाये रखने के लिए ही इसका सबसे अधिक दुरूपयोग किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार पहले ही इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश जारी कर चुकी है इसलिए अब गेंद राज्यों के पाले में ही है. इस मामले में राजनीति से इतर सोच रखने वाले केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सदैव की तरह अपनी बात को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अतिरिक्त देश में किसी को भी लाल बत्ती का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए जो कि वास्तव में स्वागत योग्य बात है पर आज के समय में जयराम को सुनने वाले लोग ही कहाँ बचे हैं ?
केवल राजनैतिक कारणों से ही बांटी जाने वाली इन लाल बत्तियों के बारे में अब देश को कुछ सोचना ही होगा क्योंकि चुनाव के दौरान लाल बत्ती की चेकिंग करते समय जबलपुर में एक महिला थाना प्रभारी को जिल्लत झेलनी पड़ी और उससे क्षुब्ध होकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र भी दे दिया है जिसे सरकार ने अभी तक मंज़ूर नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बात और भी कही कि पुलिस पर इन अवैध बत्ती धारियों पर लगाम कसने की ज़िम्मेदारी है पर वह भी राजनैतिक कारणों से इन्हें चेक भी नहीं कर पाती है और कई बार इन बत्तियों के पीछे छिपकर बड़े अपराध भी कर दिए जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट कहाँ तक निगरानी कर पायेगी अच्छा हो कि अब इस मामले को देश के जनपदों के ज़िला न्यायाधीशों की निगरानी में कर दिया जाये और पुलिस कप्तान के लिए यह स्पष्ट निर्देश भी जारी रहें कि वे हर माह ज़िले में लाल बत्ती लेकर घूमने वाले अधिकृत लोगों की सूची उनके न्यायालय में और सार्वजानिक रूप से अनिवार्यतः जमा करे और साथ ही जनता को इस बारे में कोर्ट में ही किसी एक जगह पर शिकायत करने की सुविधा भी होनी चाहिए क्योंकि जनता के सहयोग से इन पूरी कवायद को और भी प्रभावी बनाकर कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जा सकेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोर्ट ने जिस तरह से अपनी बात को कहा और सभी राज्यों से इस बाबत कानून बनाकर सूचित करने की बात कही है उससे राज्य सरकारों के लिए अब रेवड़ियों की तरह लाल बत्ती पकड़ाकर अपने समर्थक छुटभैय्ये नेताओं को देने में बहुत बड़ी समस्या ही आने वाली है क्योंकि राज्यों में किसी क्षेत्र या जाति विशेष के नेताओं को अपने राजनैतिक संतुलन बनाये रखने के लिए ही इसका सबसे अधिक दुरूपयोग किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार पहले ही इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश जारी कर चुकी है इसलिए अब गेंद राज्यों के पाले में ही है. इस मामले में राजनीति से इतर सोच रखने वाले केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सदैव की तरह अपनी बात को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अतिरिक्त देश में किसी को भी लाल बत्ती का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए जो कि वास्तव में स्वागत योग्य बात है पर आज के समय में जयराम को सुनने वाले लोग ही कहाँ बचे हैं ?
केवल राजनैतिक कारणों से ही बांटी जाने वाली इन लाल बत्तियों के बारे में अब देश को कुछ सोचना ही होगा क्योंकि चुनाव के दौरान लाल बत्ती की चेकिंग करते समय जबलपुर में एक महिला थाना प्रभारी को जिल्लत झेलनी पड़ी और उससे क्षुब्ध होकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र भी दे दिया है जिसे सरकार ने अभी तक मंज़ूर नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बात और भी कही कि पुलिस पर इन अवैध बत्ती धारियों पर लगाम कसने की ज़िम्मेदारी है पर वह भी राजनैतिक कारणों से इन्हें चेक भी नहीं कर पाती है और कई बार इन बत्तियों के पीछे छिपकर बड़े अपराध भी कर दिए जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट कहाँ तक निगरानी कर पायेगी अच्छा हो कि अब इस मामले को देश के जनपदों के ज़िला न्यायाधीशों की निगरानी में कर दिया जाये और पुलिस कप्तान के लिए यह स्पष्ट निर्देश भी जारी रहें कि वे हर माह ज़िले में लाल बत्ती लेकर घूमने वाले अधिकृत लोगों की सूची उनके न्यायालय में और सार्वजानिक रूप से अनिवार्यतः जमा करे और साथ ही जनता को इस बारे में कोर्ट में ही किसी एक जगह पर शिकायत करने की सुविधा भी होनी चाहिए क्योंकि जनता के सहयोग से इन पूरी कवायद को और भी प्रभावी बनाकर कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जा सकेगा.
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