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बुधवार, 1 जनवरी 2014

यूपी पुलिस, सरकार और कार्यशैली

                                                 यूपी पुलिस के मुखिया देवराज नागर के रिटायर होने पर जिस तरह से सरकार ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और डीजी रेलवे रिज़वान अहमद को सूबे की कमान सौंपी है वह अपने आप में कुछ वैसी ही लगती है कि सरकार भी सही ढंग से काम करने के मूड में नहीं है क्योंकि जब रिज़वान अहमद का कार्यकाल केवल दो माह के लिए ही शेष है तो उनको इस पद पर भेजने के पीछे तब तक कोई तर्क काम नहीं कर सकता है जब तक उन्हें सेवा विस्तार न दिया जाये. यूपी में पुलिस की हालत जहाँ तक पहुंची हुई है उससे कोई भी अनजान नहीं है और फिर यदि इस तरह से इसके पास एक मज़बूत और लम्बे समय तक काम करने वाला मुखिया न हो तो काम चलाऊ तरीके से आखिर कब तक सरकार व्यवस्था को संभाल सकती है. यह सही है कि एक बैच के कई अधिकारियों के होने के कारण उनमें से किसी एक को ही इस पद पर तैनात किया जा सकता है पर अभी तक जिस तरह से राजनैतिक जोड़ तोड़ और जुगाड़ संस्कृति के चलते महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती होती है वह प्रदेश के घातक ही है. नेताओं के सामने नतमस्तक अधिकारी अपने विवेक से काम करना तभी भूल जाते हैं जब वे किसी नेता के चहेते अधिकारियों में शामिल हो जाते हैं.
                                                 यूपी में कानून व्यवस्था की जितनी बड़ी समस्या सदैव ही रहा करती है उस स्थिति में पुलिसिंग में इस तरह से जुगाड़बाजी और दबाव की राजनैतिक व्यवस्था के चलते आखिर क्या सुधार लाये जा सकते हैं यह तो नेता और जुगाड़ में लगे रहने वाले अधिकारी ही जाने पर इस पूरी कवायद में एक ही जगह से ट्रैनिंग लेकर आये इन अधिकारियों की सोच में आने वाले बदलाव को आसानी से समझा जा सकता है क्योंकि एक ही जगह से आने वाले अधिकांश अधिकारी भी यूपी में आने के बाद किस तरह से यहाँ की राजनैतिक गंदगी में रम जाते हैं यह सभी देख ही रहे हैं. अन्य प्रदेशों में भी हालात यदि बहुत अच्छे नहीं हैं तो यूपी जैसे ख़राब भी नहीं हैं जिस प्रदेश में अभी मुज़फ्फरनगर की आंच ठंडी नहीं पड़ी है वहाँ पर इस तरह से दो महीने के बचे हुए कार्यकाल के साथ काम करने वाले अधिकारी और उसके मातहतों की मनोदशा को आसानी से समझा जा सकता है क्योंकि अब जब पुलिस और प्रशासन की धमक दिखायी देनी चाहिए तो सरकार इस तरह से काम चलाऊ व्यवस्था में ही लगे रहना चाहती है ?
                                                राजनेताओं की इस तरह की सोच देखकर कई बार यह महसूस होने लगता है कि सम्भवतः उनके दिलों में यह भावना होती ही नहीं है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था वास्तव में पटरी पर दिखायी भी दे ? कई बार राजनैतिक दलों को इस बिगड़ी हुई व्यवस्था से भी राजनैतिक लाभ होते रहते हैं और जनता अकारण ही पिसती रहती है. पुलिस को इस राजनीति में शामिल करने की क्या आवश्यकता है क्योंकि जब तक पुलिस बिना दबाव के काम करना नहीं सीख पायेगी तब तक किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में वह अपनी दक्षता को भी सिद्ध कर पाने में विफल ही रहेगी. अब जिस तरह से जनता इन सब बातों पर नेताओं को दण्डित करने का मन बना चुकी है तो उस स्थिति में भी नेताओं की ऐसी क्रिया हैरान करने वाली ही है. अब यूपी सरकार को भी अभी से यह सोच कर रखना होगा कि आने वाले समय में या तो नवनियुक्त रिज़वान अहमद को सेवा विस्तार दे या फिर आने वाले समय में इस बात भी अवश्य ही ध्यान रखे कि पुलिस व्यवस्था को काम चलाऊ तरीके से चलाने का खामियाज़ा पूरे प्रदेश को झेलना पड़ता है और जनता परेशान हुआ करती है.
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