मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

भारतीय विदेश नीति

                                                देश की घटिया राजनीति का दबाव समझदार समझे जाने वाले राजनीतिज्ञों को भी किस तरह के बयान दिलवाने में अपना योगदान रखती है इसका ताज़ा उदाहरण भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिंह के बयान से लगाया जा है जिसमे उन्होंने भारतीय विदेश नीति की कड़ी आलोचना करते हुए अति उत्साह में यहाँ तक कह दिया कि ओबामा खुद चलकर मोदी को अमेरिका का वीसा देने आयेंगें और अगर ऐसा नहीं हुआ तो ओबामा का वीसा रद्द कर दिया जायेगा ? हज़ारों की भीड़ के सामने ऐसे बयान देकर तालियां बजवाना एक बात है पर जब सरकार चलानी पड़ती है और वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है तो ये बयान ज़मीन चाटते नज़र आते हैं विदेश नीति की बात यदि छोड़ भी जाये तो अटल सरकार की कंधार और कारगिल की दो विफलताओं ने भारत का जितना मान घटाया था सम्भवतः पूरे इतिहास में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कंधार कांड में तो खबर मिलने के ९० मिनट बाद तक सरकार बैठक ही नहीं कर पायी और अमृतसर तक में उस विमान को रोक नहीं पायी थी जब वह भारतीय धरती पर था और आज ये किस सम्मान की बातें की जा रही हैं ?
                                                यदि देश के पुराने और राजनीति के मंझे हुए खिलाडियों की आज की तरीख में यह सोच बन चुकी है तो उसका और क्या किया जा सकता है देश की अंदरूनी राजनीति में किसी संवैधानिक पर पर बैठे हुए व्यक्ति के मान मर्दन में भाजपा जितना तल्लीन रही है उतना आज तक कोई भी दल नहीं रहा है क्योंकि ये आलोचना करते समय सब कुछ भूलकर कुछ भी कह देने का कोई भी मौका कभी नहीं चूकते हैं. यदि नरेंद्र मोदी आने वाले समय में देश के पीएम बनते हैं तो यह सभी को पता है कि अमेरिका उनकी अनदेखी किसी भी हालत में नहीं कर पायेगा और तब जो भी परिस्थितियां बनेंगीं उसके अनुसार वह काम करेगा क्योंकि वहाँ पर राष्ट्रीय और आर्थिक मुद्दों पर देश के हितों को सबसे पहले देखा जाता है जब कि भारत में हम एक दूसरे की टांग खींचने में ही सुख की अनुभूति प्राप्त कर लिया करते हैं ? लम्बी कोशिशों के बाद जिस तरह से अमेरिका ने ईरान के साथ अपने सम्बन्धों को फिर से बहाल कर लिया है क्या वह उसकी आक्रामक विदेश नीति का हिस्सा नहीं  पर हम यहाँ सरकार कि किसी भी बड़ी नीति में परिवर्तन पर उसे कुछ भी करने से रोक कर ही खुद को बहादुर समझने लगते हैं ?
                                              यदि मनमोहन सरकार की विदेश नीति में कोई कमी है तो उसे सुधारने के लिए एक ज़िम्मेदार विपक्ष होने की भूमिका क्या भाजपा ने निभायी आज यशवंत श्रीलंका का उदाहरण भी देने लगे हैं तो पिछले महीने राष्ट्रमंडल बैठक के लिए उसने खुलेआम क्या सरकार से पीएम के वहाँ जाने की मांग की थी ? नहीं क्योंकि तब उसने अपनी सुविधा के चलते आदर्शों और मज़बूत विदेश नीति को ताख पर रखा हुआ था और तमिलनाडु की राजनीति का दबाव मनमोहन पर पड़ने देना था यदि उस समय भाजपा एक बात कह देती कि देश हित में मनमोहन का वहाँ जाना आवश्यक है तो सम्भवतः तमिलनाडु में भी यह संदेश चला जाता कि स्थानीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को नहीं बिगाड़ा जा सकता है पर तब भाजपा को यह साबित करना था कि मनमोहन सरकार की विदेश नीति ग़लत है ? आज लुक ईस्ट के तहत भारत ने कितना कुछ पाया है इसका कोई ज़िक्र क्यों नहीं चीन और पाक १९४७ से ही भारत के लिए सर दर्द रहे हैं तो आज भी हैं अपने छह साल के कार्यकाल में भाजपा ने पाक से दो बार बड़े धोखे खाये पर उन पर बोलने और कहने की हिम्मत तो इनकी आज तक नहीं हुई है ? चीन अगर आक्रामक हो रहा है तो उसके लिए बड़ी समस्या भारत द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी पहुँच को बेहतर करने में लगा होना है फिर भी जब यशवंत जैसे नेता इस तरह की खोखली बयानबाज़ी करते हैं तो उसका क्या अर्थ लगाया जा सकता है ?     
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