मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

चुनाव पूर्व सर्वेक्षण का सच ?

                                                              वैसे तो देश में अभी तक ऐसी कोई पक्की व्यवस्था नहीं की जा सकी है जिसके माध्यम से यह पता किया जा सके कि किसी भी चुनाव में किस दल के लिए अच्छी सम्भावनाएं हैं और किन दलों के लिए मुश्किल होने वाली है जिससे कई बार कई एजेंसियों द्वारा किये गए विभिन्न प्रकार के चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में भी काफी अंतर पाया जाता है. जिस तरह से इन सर्वेक्षणों को सही ठहराते हुए राजनैतिक दल अपने पक्ष में हवा होने का ज़िक्र किया करते है कई बार वास्तविकता उससे बहुत दूर होती है. एक टीवी चैनल द्वारा इन सर्वेक्षणों का जिस तरह से स्टिंग ऑपरेशन किया और उसमें यह बात खुले तौर पर सामने आयी है कि पैसे के दम पर इन सब के परिणामों को भी प्रभावित किया जाता है. भ्रष्टाचार के हर जगह बोलबाला होने की एक तरह से पुष्टि ही हो गयी है भले ही कोई भी क्षेत्र अपने को इससे बचा हुआ साबित करने की कोशिशें करने में लगा रहे. देश के रुझान को बताने के चक्कर में ये सभी अपने पैसे की तरफ के रुझान में इतना आगे निकल गए हैं कि देश कहीं पीछे ही रहा गया है.
                                                            इस तरह एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में चुनाव आयोग को कुछ संदिग्ध तो शुरू से ही लगता रहा है इसलिए ही उसने विभिन्न चरणों के बाद टीवी पर दिखाए जाने वाले हर तरह के रुझानों पर पहले ही रोक लगा रखी है और इस तरह के सच के सामने आने पर यह भी सम्भव है कि हर तरह के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और एग्जिट पोल पर भी आने वाले समय में कोई कड़ा कदम उठा ही लिया जाये क्योंकि २००४ में अटल सरकार और अब मनमोहन सरकार भी इस तरह से किये जाने वाले किसी आधे अधूरे काम के खिलाफ ही रही है पर अभी तक इस मसले पर कोई कानूनी स्थिति स्पष्ट न होने के काऱण ही कोई बड़ा कदम राजनेताओं द्वारा अभी तक उठाया नहीं जा सका है. भारत में जिस तरह से बहुत अधिक विविधता के कारण किसी भी एजेंसी का देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों तक पहुंचना लगभग नामुमकिन ही है तो उस परिस्थिति में आखिर किसी तरह से ये सर्वेक्षण सटीक हो सकते हैं यह अभी भी अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है ?
                                                             इस स्टिंग ऑपरेशन से और कोई बात चाहे भले ही स्पष्ट न हो पायी हो पर एक बात तो जनता के सामने आ ही गयी है कि देखने में साफ़ सुथरे लगने वाले इस काम में भी कितनी गंदगी फैलायी जा सकती है और आज तक इसके दम पर कितने रुपयों का खेल खेल जा रहा है यह भी किसी की नज़र में नहीं आ पा रहा था. सभी सर्वेक्षण ऐसे ही किये जा रहे हों ऐसा भी नहीं है क्योंकि देश में जिस स्तर पर भ्रष्टाचार ने अपने पैर जमा रखे हैं तो कुछ भ्रष्टाचारी इस क्षेत्र में भी अवश्य ही होंगें और स्टिंग ने इनमें से उन्हीं के होने की तरफ बहुत अच्छे से चुनाव आयोग, राजनैतिक दलों और जनता का ध्यान आकृष्ट कराने में सफलता तो पा ही ली है. देश में जिस तरह से वर्ग, जाति, समूह, भाषा और क्षेत्र के आधार पर राजनीति की जाती है यह सभी को पता है और किसी भी सर्वेक्षण में शामिल लोग आखिर किस पार्टी के वोटर थे यह जान पाना भी सभी के बस में नहीं है क्योंकि कई बार कोई भ्रमित करने के लिए अपने मत से अलग विचार भी व्यक्त कर सकता है ? देश को अब इस तरह के पाखंडों से पीछा छुड़ाने की आवश्यकता है और आने वाली लोकसभा से यह आशा की जा सकती है कि वह इस दिशा में स्पष्ट रूप से निर्देश और कानून तक मामले को पहुँचाने का काम करेगी.                                                
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