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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

लखनऊ और विकास

                                                               अपनी सरकार के दो वर्ष पूरे होने से पहले जहाँ चुनावी बाध्यताओं के चलते सीएम अखिलेश को अपनी भावी घोषणाओं को समय से पहले ही जनता के सामने लाना पड़ा है उससे एक बात तो समझ में आती ही है कि अखिलेश जैसे नेता को भी राजनीति किस तरह से बंधक बना सकती है. यह सही है कि केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश को इस तरह के बड़े स्तर पर पर विकास के कार्यक्रमों में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है जिसका कई दशकों से प्रदेश की जनता इंतज़ार ही कर रही है फिर भी किसी सरकार को यह समझ में नहीं आता है कि आखिर ऐसा क्या है कि जनता को वह विकास नहीं मिल पा रहा है ? २२०० करोड़ रुपयों की प्रस्तावित परियोजना में जिस तरह से वास्तविक प्लान दिखने में बहुत ही अच्छा लग रहा है यदि उस पर राजनैतिक दबाव के स्थान पर व्यावसायिक सोच के साथ आगे बढ़ने की कोशिशें की जाएँ तो यह पूरे देश में एक संदेश जैसा भी हो सकता है कि अब यूपी में भी विकास का वो खुमार आ गया है जो कहीं से भी नहीं दिखायी देता था.
                                                                राजधानी क्षेत्र होने के साथ ही इससे जिस तरह से यूपी के भावी विकास को इससे जोड़ा जाना ही है तो उस स्थिति में आखिर सरकारें केवल मॉडल के तौर पर ही सही पर लखनऊ से शुरुवात क्यों नहीं करना चाहती थीं यह बात समझ से परे है. पिछली बसपा सरकार ने चाहे जितने भी पार्क बनाये हों पर उसके नगर विकास मंत्री नकुल दुबे की इस बात के तारीफ करनी ही होगी कि उन्होंने लखनऊ में बड़े स्तर पर विकास की अन्य गतिविधियों को तेज़ किया जिसके परिणाम स्वरुप आज कई जगह पर यातायात सुगम हुआ है और आने जाने वालों को बहुत आसानी हुई है पर तेज़ी बढ़ते हुए शहर के लिए जिस तरह के निरंतर विकास की आवश्यकता होती है वह कभी भी एक बार में पूरी नहीं हो सकती है इसलिए हर सरकार को इस गति को बनाये रखने की कोशिशि करते ही रहना पड़ेगा जिससे विकास के सही आयाम पाये जा सकें और उत्तर प्रदेश भी देश के साथ आगे बढ़ने की सोचना शुरू कर सके.
                                                                 लखनऊ में मेट्रो और आवासीय सुविधा विकसित करने के साथ जिस तरह से कैंसर अस्पताल, ट्रिपल आईआईटी, दुग्ध विकास परियोजना, खेल परिसर जैसे महत्वपूर्ण विकास परक मॉडल पर भी गम्भीरता से विचार किया गया है यह आज की आवश्यकता भी थी. इसके साथ ही सरकार को एक प्रादेशिक राजधानी क्षेत्र के विकास के प्रारूप पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि जिस तरह से आज लखनऊ की आबादी बेहतर सुविधाएँ चाहने वालों के कारण बढ़ती ही जा रही है यदि उससे भी निपटने के बारे में सही ढंग से नहीं सोचा गया तो आने वाले समय में किसी भी तरह का विकास लखनऊ को आगे नहीं बढ़ा पायेगा. सरकार अपने अनुमान के अनुसार पडोसी जनपदों को भी इस क्षेत्र में लाकर ग्रेटर नॉएडा की तर्ज़ पर लखनऊ के बाहरी क्षेत्रों में विकास की गति को बढ़ा सकती है इससे जहाँ रोजगार के अवसर विकसित होने में समय नहीं लगेगा वहीँ पूरे क्षेत्र में विकास की धारा प्रवाहित होने में भी देर नहीं लगेगी. अब जब विकास की बातें हो तो उसमें हर तरह की राजनीति को पीछे छोड़ दिया जाना चाहिए और केवल क्षेत्र विशेष पर ही राज्य सरकार को ध्यान लगाना चाहिए और यदि यही एक बड़ी परियोजना सही समय पर पूरी हो गयी तो यूपी भी अपने को राष्ट्रीय विकास के पैमाने पर फिट करने में पीछे नहीं रहेगा.           
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