मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

भारत-पाकिस्तान धार्मिक,सांस्कृतिक बंधन और कटासराज

                                     पाकिस्तान के चकवाल में स्थित प्राचीन कटासराज मंदिर में पहली बार बहुत बड़े स्तर पर महाशिवरात्रि का आयोजन किया गया जिसके लिए इस बार १५८ भारतीय तीर्थ यात्रियों को भी इस आयोजन में शामिल होने की अनुमति दी गयी थी. पाकिस्तान सरकार ने अपने स्तर पर देश में फैले हुए हिन्दू, बौद्ध और सिख तीर्थ स्थलों के पुनर्निर्माण के लिए जिस तरह से प्रयास करने शुरू किये थे उसके बाद यह आयोजन पहली बार संपन्न किया जा रहा था. आज़ादी से पहले कटासराज हिंदुओं के एक प्रमुख शिव तीर्थ स्थलों में हुआ करता था पर बंटवारे के बाद जिस तरह से निरन्तर बढ़ती हुई धार्मिक कट्टरता ने पाकिस्तान को अपन चपेट में लिया उसके बाद किसी भी गैर इस्लामिक तीर्थ स्थल की तरफ सरकार के स्तर से कोई भी प्रयास बंद ही कर दिए गए थे जिससे पाकिस्तानी हिंदुओं और भारत समेत अन्य देशों से आने वाले हिंदुओं की संख्या भी निरंतर कम ही होती चली गयी और कालांतर में उपेक्षा के शिकार बने ये ऐतिहासिक तीर्थ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गए थे.
                                        भारत भर में फैले हुए विभिन्न मुस्लिम स्मारकों और धार्मिक महत्व के स्थलों का जिस तरह से आज़ादी के बाद से पूरे मनोयोग से भारत सरकार ने संरक्षण कर अपने इतिहास को संरक्षित करने का पूरा प्रयास किया था वैसी मिसाल धार्मिक आधार पर बंटे हुए दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिल सकती है यही कारण है कि प्राचीन भारत के हर उस निशान को आज सही सलामत देखा जा सकता है जो इतिहास का साक्षी रहा है जबकि पाकिस्तान में कट्टर सोच के कारण आज़ादी के बाद से बड़े पैमाने पर इनको नुकसान पहुँचाया गया है आज के समय में इनका केवल ऐतिहासिक महत्व ही कहा जा सकता है. पाकिस्तान सरकार ने जिस तरह से अब देर से ही सही इन स्थलों के बारे में सोचना शुरू किया है और आज भारतीयों को वहाँ जाने की सुविधा भी दी हैं तो इससे केवल एक बात ही सिद्ध हो सकती है कि नफरत की खाई को पाटने का काम हमारे ये धार्मिक और सामाजिक विरासत वाले क्षेत्र बड़ी आसानी से कर सकते हैं और अब इस दिशा में दोनों देशों को आगे बढ़ने की ज़रुरत है.
                                       हर पाकिस्तानी के मन में जिस तरह से एक बार अजमेर शरीफ आकर ज़ियारत करने की इच्छा बसी रहती है और भारत सरकार इन लोगों को पूरे वर्ष भर आने और ज़ियारत करने का अवसर देती रहती है यदि पाकिस्तान भी अपने यहाँ स्थित हिन्दू, सिख तीर्थ स्थलों के मामले में ऐसी ही नीति अपनाये तो आने वाले समय में दोनों देशों के बीच क्रिकेट को छोड़कर सांस्कृतिक स्तर पर भी मज़बूत सम्बन्ध बनाये रखे जा सकते हैं. इस तरह के यात्रियों के लिए कम समय में ही विशेष तीर्थ यात्री वीसा देने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए जिससे आने वाले समय में आम भारतीयों के मन में पाकिस्तान को लेकर जो शंकाएं हैं वे खुद ही उन्हें देखकर दूर कर सकें. भारत की यात्रा करने के बाद किसी भी पाकिस्तानी ने भारत के बारे में कभी भी बुरी राय नहीं बनाई है तो आखिर पाकिस्तान इस स्तर पर कोई प्रयास क्यों नहीं करना चाहता है ? सिखों के लिए तो साल में समय समय पर सीमित सुविधाएँ पाकिस्तान द्वारा दी जाती रही हैं पर देश के हिंदुओं के लिए भी यदि पाकिस्तान आगे बढ़कर माहौल को सुधारने का प्रयास करे तो यह दोनों ही देशों के लिए हितकारी होगा.   
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