मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 1 मार्च 2014

कानून, भारती और अनुपालन

                                              दिल्ली के खिड़की एक्स मामले में जिस तरह से न्यायिक आयोग ने आप के नेता और पूर्व मंत्री सोमनाथ भारती को दोषी पाया है और दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी हैं उससे यही लगता है कि आप और उसके सहयोगी परिवर्तन के नाम पर अराजकता को ही अधिक महत्व देकर ख़बरों में बने रहना चाहते हैं. इस पूरे मामले में जिस तरह से केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहने वाली दिल्ली पुलिस को रात में छापा मारने के लिए भारती द्वारा उकसाया गया और उसके बाद केजरीवाल ने हद दर्ज़े की नौटंकी भी की जिसका कोई औचित्य नहीं था तो क्या इससे आप की उस मानसिकता का पता नहीं चलता है जिसमें वो किसी भी कानून को अपने हिसाब से मनवाने की हर सम्भव कोशिश करती हुई दिखायी देती है ? कमी भारतीय कानूनों में नहीं है बल्कि उनके अनुपालन में सदैव ही सरकारी तंत्र की कमज़ोरी ही सामने आती रहती है तो इस स्थिति में आखिर किस कानून को सही और गलत और कौन और कैसे कर सकता है यही चिंता का बड़ा विषय है. यदि उस समय दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अंतर्गत होती तो आप, भारती और केजरीवाल ने रात में छापा ही डलवा दिया होता ?
                                               देश की पुलिस हर मामले में गलत ही हो यह भी पूरा सच नहीं है फिर भी आज आम भारतीय के मन में देश की पुलिस की यही छवि बनी हुई है कि अगर कोई विवाद हुआ है तो पुलिस की भूमिका उसमें संदिग्ध ही होगी इसीलिये आज देश में सामजिक और प्रशासनिक स्तर पर यह सोच बदलने की बहुत आवश्यकता है और कानून के बारे में लोगों और पुलिस के जवानों को और भी जागरूक किये जाने की ज़रुरत है. भारती खुद भी एक वकील हैं तो वे यह कहकर अपने को किसी भी तरह से बचा नहीं सकते हैं कि उन्हें कानून का पता नहीं था तो क्या कानून के जानकर द्वारा इस तरह की घटना के लिए लोगों को उकसाने के आरोप में कोई सजा नहीं मिलनी चाहिए ? क्या उन्हें सिर्फ इसलिए ही छोड़ देना चाहिए कि यह उनकी पहली गलती थी जबकि उनके आदेश पर यदि पुलिस ने कोई कार्यवाही की होती तो वे सभी कोर्ट के चक्कर में आ ही गए होते ? आखिर इस मामले में क्यों किसी नेता का स्पष्ट बयान सामने नहीं आ रहा है जिसमें पुलिस द्वारा कानून के अनुपालन पर उसकी पीठ ठोंकने जैसी कोई बात की जा रही हो ?
                                               देश में समस्या कानून या पुलिस से नहीं बल्कि सुविधा के अनुसार अपने कानून की व्याख्या करने से और नेताओं द्वारा पुलिस के माध्यम से उसका अनुपालन करने से अधिक जुडी हुई है क्योंकि पुलिस चाहे कितनी भी कानून से चलने वाली क्यों न हो पर उसके पास केवल एक ही रास्ता होता है और वह डंडे का और जब वह समझने में विफल रहती है तो बल प्रयोग के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य साधन भी नहीं बचता है. सैकड़ों अराजक होते लोगों को आखिर मुट्ठी भर पुलिस कर्मी किस तरह से काबू में रख सकते हैं यह भी सोचने का विषय ही है और जब तक इस बिंदु पर विचार नहीं किया जायेगा तब तक व्यवस्था में सही तरह से सुधार सम्भव नहीं हो पायेगा. पुलिस की विवेचना वाली श्रेणी को ही यदि राजनैतिक हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया जाये तो समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है पर हर दल और नेता केवल अपने हिसाब से पुलिस का दुरूपयोग करने में ही लगा हुआ है तो उससे परिस्थितियां कहाँ तक सुधर सकती हैं यह तो समय ही बतायेगा.         
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