मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

सेना और राजनीति

                                                    भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली इतिहास में कभी भी किसी राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए कोई कदम आज तक नहीं उठाये हैं और उसकी छवि सदैव देश और सरकार के लिए ही उत्तरदायी रही है. ऐसे में जब आज चुनावी माहौल में भाजपा द्वारा सेना के जवानों की शहादत को लेकर भी अपने हित साधे जा रहे हैं तो हिमाचल में कैप्टन बत्रा के गृह नगर में मोदी द्वारा दिए गए बयानों से राजनैतिक हलचल मच गयी है. ऐसा नहीं है कि मोदी ने जो कुछ भी कहा उस पर किसी को आपत्ति होनी चाहिए पर भाजपा का जिस तरह से यह मानना है कि उसके अतिरिक्त देश की सुरक्षा कोई और कर ही नहीं सकता है और यदि किसी अधिकारी, सैनिक या किसी भी क्षेत्र के व्यक्ति को राजनीति में आना है तो उसके लिए भाजपा ही एक मात्र विकल्प है वह किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता है.
                                                    अभी तक इस तरह के मुद्दों पर भाजपा और मोदी कांग्रेस को घेरते रहे हैं पर इस बार जिस तरह से उनको एक शहीद के परिवार की तरफ से जवाब दिया गया है वह अप्रत्याशित है क्योंकि सैनिकों को सर काटे जाने और पाकिस्तानी नेताओं को बिरयानी खिलाये जाने पर मोदी बहुत कुछ लगातार बोलते रहते हैं पर आज तक कभी भी वे इस मुद्दे पर नहीं बोल पाये कि आखिर किस मजबूरी के तहत अटल सरकार ने सूचनाएँ मिलने के बाद भी लाहौर यात्रा की और उनकी उस यात्रा ने ही देश का ध्यान सीमा पर होने वाली घुसपैठ की तरफ से हटाया और कारगिल का भाजपा की अनदेखी में होने वाला युद्ध लगा गया ? शहीदों के शवों पर राजनीति करने से अधिक घटिया बात क्या हो सकती है पर आज यदि उससे कुछ तालियां बटोरी जा सकती हैं तो उसमें भी इन देश भक्तों को कोई आपत्ति नहीं है.
                                          सबसे दुःख की बात यह भी है कि इनको जिस तरह से देखने और बोलने की आदत है उसमें ये सब यह भूल जाते हैं कि आज भी शहीद सौरव कालिया के पिता उसके सम्मान के लिए लड़ रहे हैं जबकि कारगिल युद्ध के बाद उपजी सहानुभूति से ही अटल ने दोबारा सरकार बनाने में सफलता पायी थी वर्ना उनका तेरह महीने का कार्यकाल क्या उपलब्धियां गिन सकता था ? भाजपा और अटल ने उसके बाद आखिर अपने पूरे एक कार्यकाल में शहीद कालिया के लिए क्या किया यह कोई क्यों नहीं बताना चाहता है आज जब मोदी को पासा उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है तो वे शहीद के अपमान पर राजनीति तक छोड़ देने की बात करते हैं और जिस तरह से अटल ने शहीदों का अपमान किया उसके बारे में कुछ भी बोलना नहीं चाहते हैं ? अच्छा हो कि मोदी अपने इस तरह के बयानों को आज और हमेशा के लिए ही बंद कर दें क्योंकि देश अधिक महत्वपूर्ण होता है न कि व्यक्ति पर अपने प्रति जनता के समर्थन को देख कर उन्हें यह लगने लगा है कि वे चाहे कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं तो उनका यह भ्रम भी टूटने में देर नहीं लगने वाली है. हमला करने के लिए राजनैतिक पार्टियां हैं तो उनका उपयोग या दुरूपयोग ही किया जाना चाहिए पर संवेदन शील मसलों पर घटिया राजनीति को किसी भी तरह से आगे बढ़ने का हक़ किसी को भी नहीं दिया जा सकता है.  
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