मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 3 मई 2014

उत्तराखंड और चार धाम यात्रा

                                                 यमुनोत्री और गंगोत्री में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ इस वर्ष कपाट खुलने और पूजन शुरू होने के साथ ही चार धाम यात्रा की विधिवत शुरुवात हो गयी है. पिछले वर्ष जिस तरह से जलप्रलय के बाद चार धाम यात्रा पर ही संकट मंडराने लगा था उसके बाद समय पर ही यह यात्रा शुरू होने से जहाँ श्रद्धालुओं को दर्शन करने का सौभाग्य फिर से प्राप्त होगा वहीं स्थानीय निवासियों जिनकी आजीविका बहुत हद तक इन यात्राओं पर ही निर्भर रहा करती है उन्हें भी कुछ हद तक मदद मिल सकेगी. पिछले वर्ष की प्राकृतिक आपदा के कारण जहाँ पूरे राज्य में ही ऊंचाइयों वाली जगहों पर सड़क मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे वहीं दूसरी तरह आने जाने के कई बड़े और महत्वपूर्ण पल और पुलिया भी बाढ़ में बह ही गए थे. इस क्षेत्र में जिस तरह से सर्दियों के मौसम में बर्फ पड़ने के कारण कोई भी काम कर पाना असंभव हो जाता है उसके बीच भी सेना के नेतृत्व में उत्तराखंड सरकार ने पूरी तत्परता से काम भी किया है.
                                              हमारे देश में नागरिक प्रशासन आज भी किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के लिए कभी भी अपने को पूरी तरह से तैयार नहीं कह सकता है उस परिस्थति में किसी भी तरह से आने वाली किसी भी आपदा में लोगों के लिए काम कर पाना बहुत बड़ी समस्या हो जाती है. वैसे पिछले कुछ वर्षों में भारत ने आपदा प्रबंधन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति भी की है पर उत्तराखंड में जिस तरह से मौसम विभाग और राज्य सरकार में पिछले वर्ष तालमेल की कमी दिखी थी उससे भी बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी थी. बेहतर सूचना और उस पर तत्परता से कदम उठाकर पिछले वर्ष ही ओडिशा सरकार ने हज़ारों लोगों को समुद्री तूफ़ान से बचाने में सफलता पायी थी. आज यही बड़ा मुद्दा है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र में भीड़ और यात्रा का प्रबंधन उस तरह से नहीं किया जा सकता है जैसा कि मैदानों में संभव होता है तो इस बार चार धाम यात्रा के लिए जो पंजीकरण की व्यवस्था की गयी है वह भी किसी बुरे समय में बेहतर प्रबन्ध में मदद कर सकती है.
                                                 सरकार और चार धाम यात्रा समिति को अब बेहतर तरीके से आपस में तालमेल बिठाने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में किसी भी संकट से बेहतर तरीके से निपटा जा सके. पिछले वर्ष जिस तरह से सेना ने तत्परता दिखाई और उसके संचार से लेकर अन्य संसाधनों ने ही यात्रियों को सुरक्षित निकालने में बहुत बड़ी मदद की थी और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति का काम भी उन विपरीत परिस्थितियों में सराहनीय ही रहा था. सरकार को केवल पंजीकरण से आगे बढ़कर ऐसे स्थानों को भी चिन्हित करना चाहिए जिससे आने वाले समय में किसी आपदा के समय लोगों को सुरक्षित स्थानों में रोकने की व्यवस्था भी उपलब्ध हो सके और सभी को एक दम से मैदान में लाने की आवश्यकता ही न पड़े. आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष हेल्पलाइन भी उपलब्ध होनी चाहिए जिससे वे कहीं से भी किसी आपदा में सहायता मांग सकें साथ ही श्रद्धालुओं को भी यह समझना ही होगा कि व्यवस्था हर परिस्थिति में सुचारू रूप से चलती रहे इसमें उनका सहयोग भी बहुत ही आवश्यक है. 
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