मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 7 मई 2014

तत्काल-२५, एक नया प्रयोग

                                                रेलवे के तत्काल टिकटों में चल रही धांधली को रोकने के लिए एक बार फिर से पश्चिम रेलवे द्वारा प्रायोगिक तौर पर सही यात्रियों को टिकट उपलब्ध कराने के उदेश्य से ही तत्काल-२५ नामक योजना का आरम्भ किया गया है. अभी तक जितनी बड़ी संख्या में यात्रियों को टिकट चाहिए होते हैं तत्काल व्यवस्था से वे बन ही नहीं पाते हैं और आम यात्रियों को किसी भी सूरत में दलालों से संपर्क करना पड़ता है जिससे रेलवे को तो कोई अतिरिक्त आमदनी नहीं होती पर बुकिंग विंडो पर बैठे हुए कर्मचारियों की मिलीभगत के कारण आम लोगों को टिकट मिलने में बहुत दिक्कत होती रहती है. हालाँकि रेलवे ने अपने आरक्षण से जुड़े पूरे तंत्र को नए सिरे से उच्चीकृत करने के लिए लिए जो प्रयास शुरू किये थे वे अब अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं और वर्णमाला के क्रम से नए सिस्टम में उपभोक्ताओं को शिफ्ट करने के साथ ही टिकट केन्द्रों कर टिकट बनने की रफ़्तार में काफी हद तक सुधार भी हुआ है.
                                              इस नई व्यवस्था में अब तत्काल टिकट बुक कराने वाले पहले २५ यात्रियों को उनकी पहचान की स्व प्रमाणित प्रति के साथ एक दिन पहले १२ बजे आकर स्टेशन मास्टर के यहाँ अपना पंजीकरण कराना होगा जिसके बाद अगले दिन सुबह उनके टिकट बना दिए जायेंगें. इस पूरी कवायद से जहाँ यात्रियों को खुद आकर इस सुविधा का लाभ उठाना होगा वहीं दलालों के माध्यम से चलाये जा रहे अवैध कारोबार को भी रोका जा सकेगा. देश में इस समय जिस तरह से ग्रीष्म कालीन यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी होती है वहीं उनसे निपटने के लिए रेलवे अपने स्तर से प्रयासरत भी रहा करता है फिर भी सीमित संसाधनों के कारण कई बार सारा कुछ काम ही लगा करता है. आज भी जिस तरह से तत्काल टिकट प्राप्त करना अपने आप में एक बड़े युद्ध से काम नहीं है तो उस परिस्थिति में रेलवे के हर प्रयास को सही तरह से लागू करने से ही समस्या को कुछ हद तक काम किया जा सकता है.
                                                आने वाले समय में रेलवे इस तरह की सुविधा कुछ चुने हुए लोगों को एसएमएस के माध्यम से भी दे सकती है क्योंकि हर व्यक्ति के लिए अपने समय में से १२ बजे स्टेशन जाकर पंजीकरण कारण आसान नहीं रहने वाला है. वे लोग जो अपने पैन नंबर की जानकारी भी एसएमएस के साथ भेजें उनको भी प्रायोगिक तौर पर पांच सीटें दी जा सकती हैं जिससे आज के तकनीकी युग में कुछ लोगों को बिना स्टेशन आये ही यह सुविधा मिल सके और किसी भी परिस्थिति में यात्रियों को कुछ सुविधा हो सके. आज भी जिस तरह से रेलवे केवल शयनयान की विभिन्न श्रेणियों में ही अपने प्रयास जारी रखता है यदि उनके स्थान पर हर महत्वपूर्ण ट्रेन में एक एक सामान्य और वातानुकूलित कुर्सी यान लगाया जाए तो काम संसाधनों में अधिक लोगों को कन्फर्म सीट दी जा सकती है. जिन लोगों को अमानवीय परिस्थितियों में मजबूरी में यात्रा करनी पड़ती है यदि उनके लिए इस तरह से कुछ डिब्बे लगाये जा सकें तो मामला सुधर भी सकता है पर इसके लिए रेलवे को अपने कुर्सी यानों पर अधिक ध्यान देना होगा क्योंकि बिना उनकी उपलब्धता के कोई भी प्रयास सफल नहीं होने वाला है.
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