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बुधवार, 11 जून 2014

राजग की नीति और संसद

                                                         राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा शुरू करते हुए जिस तरह से भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी ने शालीनता की सभी सीमाओं को लांघते हुए अपनी बात रखी क्या उसकी इस बार सदन की पहली महत्वपूर्ण चर्चा में आवश्यकता थी क्योंकि उन्होंने जिस तरह से धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को लेकर कई बार हमले किये जबकि वे अब सदन के सदस्य भी नहीं है तो उस पर मामला बिगड़ने पर खुद वेंकैया नायडू को हस्तक्षेप करना पड़ा और रूडी को अपनी टिप्पणी वापस लेनी पड़ी. संसदीय इतिहास में इतनी महत्वपूर्ण चर्चा में इस तरह की शुरुवात नरेंद्र मोदी के उस कदम के विरुद्ध ही जाती दिखती है जिसमें वे सबको साथ लेकर चलने की बात किया करते है. इतनी महत्वपूर्ण जीत के बाद जिस तरह से भाजपा के पास महत्वपूर्ण सांसदों के होने के बाद भी रूडी से चर्चा की शुरुवात करायी गयी वह भी सरकार की कोई नीति ही होगी वर्ना इस बार चर्चा तो सुषमा स्वराज जैसे नेताओं से करानी चाहिए थी पर संभवतः मोदी के पैमाने में वे उतनी खरी नहीं उतर पाती हैं जितनी अटल उन्हें मानते थे.
                                                        अब जब विपक्ष की तरफ से सरकार को कोई खतरा नहीं है तो सदन में कमज़ोर विपक्ष पर हमले करने के स्थान पर सरकार को अपने सदस्यों को महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर चर्चा के लिए आगे आने को कहना चाहिए पर समूहों में बनते और एक दूसरे के विपरीत जीतकर आये खंडित विपक्ष पर इस तरह के हमले करने से उसे अनावश्यक रूप से सदन की चर्चाओं में स्थान मिलने की संभावनाएं बढ़ जायेंगीं और सरकार के वाक्पटु सांसदों का ध्यान भी इसी तरह के दांव पेंचों में उलझना शुरू हो जायेगा. आज जब सदन में विपक्ष इस स्थिति में नहीं है तो फिर एक वरिष्ठ सदस्य द्वारा चर्चा में ऐसी बातें लाना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है जिसके लिए उसे अपनी टिप्पणी वापस लेने के साथ खेद भी व्यक्त करना पड़ जाये ? रूडी जैसे बहत सारे मंत्रियों और सांसदों को अब यह समझना होगा कि वे अब  सरकार में हैं और उनको अब विपक्षी दल की तरह व्यवहार करने की मानसिकता से से आगे बढ़ना चाहिए. 
                                                         देश की संसद में बहुत समय से गंभीर और महत्वपूर्ण बहस देखने को नहीं मिली है और अब जब विपक्ष की तरफ से बहस को अनावश्यक रूप से रोकने टोकने की सम्भावना नहीं है तो सत्ता पक्ष द्वारा बहस के स्तर को गिराने की क्या आवश्यकता या रणनीति है इस बात को आसानी से नहीं समझा जा सकता है. चर्चा में शिवसेना के सांसद रामप्रताप जाधव द्वारा लालकिले पर भगवा फहराये जाने की बात पर हुए हंगामे और उस पर अनंत गीते के स्पष्टीकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजग के सदस्य अभी भी विपक्ष में बैठने की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाये हैं. योगी आदित्यनाथ ने अपनी चर्चा में जिस तरह से राजद के एमपी पप्पू यादव पर व्यक्तिगत रूप से हमले किये उनका भी कोई मतलब नहीं बनता था पर अब सदन में गंभीर चर्चा के स्थान पर यदि वरिष्ठ सदस्य ही इस तरह की सतही बहस को महत्वपूर्ण मानने लगे हैं तो संभवतः इसी सत्र में मोदी की तरफ से कोई बयान भी आ सकता है कि इस तरह की राजनीति को सत्ता पक्ष की तरफ से सदन में न किया जाये.   
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