मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 10 जून 2014

करांची एयरपोर्ट हमला और भारत

                                                       भारत में नयी सरकार बनने के बाद से ही जिस तरह से पाक के चरमपंथी गुट पाक सरकार पर इस तरह की किसी भी वार्ता से दूर रहने की सलाह देने में लगे हुए थे उसके बाद करांची एयरपोर्ट पर होने वाला यह हमला अपने आप में आतंकियों के मंसूबे दिखाने के लिए काफी है. इस हमले के शुरुवाती समय जिस तरह से हथियारों के भारत निर्मित होने और पाकिस्तानी चरमपंथी हाफिज सईद द्वारा सीधे भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी का नाम लेने से जहाँ उसके भारत विरोध को हवा मिलती दिख रही है वहीं दूसरी तरफ स्थानीय तालिबानी गुट ने इसकी ज़िम्मेदारी लेकर पाक सरकार पर और अधिक दबाव बना दिया है. इस पूरे हमले और इसकी टाइमिंग को देखते हुए अब भारत को और भी सचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि पाक में भारत का विरोध करना हर समस्या का हल माना जाता है. किसी भी तरह की वार्ता को पटरी से उतारने के लिए भारत पर कुछ आतंकी हमले ही काफी रहने वाले हैं यह बात आतंकियों को भी पता ही है.
                                                 इस हमले में जिस तरह से मुख्य मार्ग को छोड़कर आतंकियों ने कार्गों और पुराने टर्मिनल पर धावा बोला उससे उनकी मंशा का पता चलता है कि वे हमला करने से पूर्व पूरी तरह से करांची हवाई अड्डे पर तैनात सुरक्षा घेरे के बारे में जानकारी हासिल करके ही आये थे. पाक के लिए यह उसकी अपनी समस्या हो सकती है पर इस खबर के आने के बाद जिस तरह से भारत सरकार ने हवाई अड्डों पर विशेष चौकसी बरतने के निर्देश जारी किये हैं उससे आतंकियों के हौसले को पस्त करने में सहायता ही मिलने वाली है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने लम्बे समय से हवाई सुरक्षा में उच्च मानकों को बनाये रखा है और अब जब एक बार फिर से पाक के साथ भारत सरकार बातचीत को आगे बढ़ाना चाहती है तो वार्ता विरोधी सभी गुटों से निपटने के लिए भारत को और भी अधिक चौकन्ना रहने की आवश्यकता भी है.
                                      पाक की सेना और जेहादियों को भारत के साथ सामान्य रिश्तों से अपनी दुकाने बंद होने का खतरा दिखाई देने लगता हैं जिससे भी शांति की किसी भी कोशिश को हर तरह से रोकने के मंसूबों को वे रोकने का प्रयास करने ही वाले हैं. इस मसले पर भारत में किसी भी तरह की राजनीति से दूर रहते हुए आगे के कार्यक्रमों को तय किया जाना चाहिए और साथ ही पाक को यह भी दर्शा दिया जाना चाहिए कि वार्ता का काम तभी आएगे बढ़ सकता है जब पाक अपने यहाँ इन तत्वों पर पूरी तरह से रोक लगाने में सक्षम हो सके. पाक सेना भी यदि आने वाले समय में यह तय कर ले कि उसे एक संघर्षशील सेना के स्थान पर शांति के साथ रहने वाला माहौल पसंद है तो आने वाले समय में पूरे दक्षिण एशिया ही क्या पूरे एशिया में इस्लामी चरमपंथियों के मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है. यह बात देखने और कहने में जितनी सरल लगती है वास्तव में उतनी ही कठिन है क्योंकि आज पाक दुनिया में आतंकियों का सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है और आने वाले समय में इसकी स्थिति में कोई परिवर्तन होने की सम्भावना भी नहीं है.     
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