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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

आईएसआई और यूपी

                               यूपी में मुस्लिम समाज में घुसपैठ बना रही पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की उपस्थिति को लेकर सदैव ही राजनीति की जाती रही है फिर भी किसी न किसी रूप में यह एजेंसी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए मुस्लिम समाज में विभिन्न तरीकों से घुसपैठ बढ़ाने की जुगत में लगी ही रहती है. यूपी के संसदीय कार्य मंत्री मो० आज़म खान ने सरकारी रूप से विधानसभा में यह स्वीकार भी किया है प्रदेश के ३४ ज़िले आईएसआई की दृष्टि से संवेदनशील माने गए हैं और इन जगहों पर सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों की पैनी नज़र भी रहती है. आज़म के इस जवाब के बाद एक बार फिर से पिछले वर्ष मुज़फ्फरनगर के दंगों के बाद राहुल गांधी के उस बयान के महत्व को समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने राहत शिविरों में इस एजेंसी द्वारा मुस्लिम युवाओं को अपने जाल में फंसाने की कोशिशों का ज़िक्र किया गया था और उस पर बहुत ही राजनैतिक हल्ला भी मचा था.
                           अभी तक जिस तरह से पूरे देश में आईएसआई की पकड़ की बात सामने आई है उससे यही लगता है कि इस मुद्दे पर भी जमकर राजनीति की जाती है क्योंकि राहुल के जिस बयान पर तब खुद आज़म और सपा ने उनसे सबूत मांगे थे आज वाही खुद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि प्रदेश के आधे ज़िले इस ख़ुफ़िया एजेंसी के चलते सुरक्षा बलों की निगरानी में हैं. आखिर वे कौन से कारण हैं कि जिनके चलते सरकार मुस्लिम युवाओं को भटकने और आईएसआई के चंगुल में जाने से नहीं रोक सकती है ? कहीं न कहीं इसमें वे तत्व भी शामिल ही हैं जो खुद को मुस्लिम समाज के पुरोधा और रक्षक के रूप साबित करने की कोशिशों में लगे रहते हैं जबकि धरातल पर मुसलमानों की स्थितियों में कोई व्यापक सुधार नहीं दिखाई देता है. अब इस तरह की स्थिति में यदि अभावग्रस्त मुस्लिम युवाओं को जिहाद के सपने दिखाने में आईएसआई कामयाब हो जाती है तो यह सरकार की विफलता ही है.
                          आतंकियों के मामले में जिस तरह से प्राथमिकी लिखने और मुक़दमा चलाने की सुस्त प्रक्रिया ही आगे रहा करती है उससे भी पार पाने की आवश्यकता है. स्लीपिंग मॉड्यूल के साथ काम करने की आईएसआई की स्थापित नीति के चलते कई बार वे निर्दोष भी इसमें फँस जाते हैं जिन्हें धर्म के नाम पर ऐसा करने के लिए उकसाया जाता है. अब पूरे देश में एक कानून बनाया जाना चाहिए जिसके माध्यम से आतंकी या अन्य विध्वंसक गतिविधियों में हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति का केस सामान्य अदालतों के स्थान पर विशेष अदालतों में ही चलाया जाए जिससे यदि कोई निर्दोष पकड़ लिया गया है तो उसे सम्मान के साथ रिहा भी किया जाये. अभी तक के कानून के अनुसार निर्दोष कई कई साल तक जेल में पड़े रहते हैं और उन पर किसी भी तरह का मुक़दमा शुरू ही नहीं हो पाता है. अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम दोषियों को सजा देने के प्रयास में निर्दोषों के साथ त्वरित न्याय करना भी शुरू कर सकें जिससे किसी विदेश एजेंसी के पास मुस्लिम युवाओं को बरगलाने की वजहें ही न बचें. 
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