मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

आज के नेपाल और भारत

                                                                   लम्बे अरसे के बाद किसी भारतीय पीएम की नेपाल यात्रा की समाप्ति पर जिस तरह से कुछ लोगों को बहुत बड़ी उपलब्धियों की आशा थी संभवतः उनके सोचे के अनुसार कुछ भी नहीं हो पाया है पर पिछले दशक के बेहद अस्थिर राजनैतिक माहौल के बाद जिस तरह से नेपाल में अब कुछ अधिक स्थिरता दिखाई दे रही है मोदी की यह यात्रा उसी के अंतर्गत एक शुरुवाती कदम कही जा सकती है. अपने संयुक्त बयान में दोनों देशों ने १९५० की मैत्री संधि की समीक्षा किये जाने पर भी सहमति दिखाई है और उसके साथ ही सीमा विवाद दूर करने तथा दोनों देशों के हितों को पारस्परिक सहमति के साथ सुलझाने पर भी सहमति बनती नज़र आ रही है. नेपाल के साथ खुली सीमा भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए सदैव ही चिंता का विषय रही हैं क्योंकि नेपाल के माध्यम से आज भी माओवादियों और अन्य तरह की राष्ट्र विरोधी हरकतों में लगे हुए लोगों को इस संधि के साथ बहुत ही सुविधाजनक माहौल मिल जाता है और वे दोनों देशों के बीच आसानी से घूमते रहते हैं.
                                                        पिछले दशक में राजशाही के ख़त्म होने और प्रचंड के सत्ता में आने के बाद नेपाल में भारत विरोध कुछ इस हद तक बढ़ गया था कि दोनों देशों कि सम्बन्ध बेहद तनावपूर्ण हो गए थे तो उस समय भारत सरकार ने नेपाल को अपने आप ही रास्ता खोजने की नीति पर चलते हुए उसके किसी भी मामले में किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं किया. आज जब भारत में भी सरकार बदल चुकी है और वहां की सरकार की स्वीकार्यता और उसका भारत विरोध भी काफी हद तक कम हो चुका है. इस परिस्थिति का भारत और नेपाल दोनों को ही पूरा लाभ उठाना चाहिए पर साथ ही भारत को यह भी समझना ही होगा कि आज का नेपाल १९५० कि दशक का नेपाल नहीं रह गया है जिसमें उसे भारत से हर तरह की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए झुकना पड़ता था फिर भी भारत ने कभी इन संबंधों का अनुचित लाभ नहीं उठाया और नेपाल के साथ सम्बन्ध कैसे भी रहे हों आम भारतीय के मन में नेपाल का स्थान ठीक ठाक ही रहा है.
                                                       दोनों देशों के सीमा विवाद में लगभग ९८% काम पूरा किया जा चुका है और बाकी के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं पर जिस तरह से भारत सरकार ने पन बिजली के मामले में होने वाली संभावित संधियों में भारतीय औद्योगिक समूहों के हितों की अनावश्यक पैरवी की संभवतः उसके कारण ही अपनी इस बेहद महत्वपूर्ण यात्रा में मोदी को बिजली के क्षेत्र में वह समझौते करने का अवसर नहीं मिल पाया जिसकी उन्हें आशा थी जबकि इसे मूर्त रूप देने के लिए विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज भी नेपाल में तीन दिन तक रुक कर आई थीं ? जब भारत नेपाल के संभावित ८० हज़ार मेगावाट की पनबिजली का दोहन करना चाहता है तो उसमें १००% भारतीय निवेश को कोई भी सम्प्रभु राष्ट्र कैसे स्वीकार कर सकता है भले ही वह नेपाल क्यों न हो ? मोदी की टीम को संभवतः अपनी वाक्पटुता और प्रदर्शन करने की नीति के चलते इस ग़लतफ़हमी थी कि नेपाल आँखें बंद कर इस समझौते के लिए राज़ी हो जायेगा. बिजली आज नेपाल और भारत दोनों की आवश्यकता है और नेपाल ने मोदी के सफल कही जा रही यात्रा का स्वाद इस बिजली के मसले पर कसैला कर ही दिया है. अब भारत सरकार को अपनी नीति की समीक्षा करते हुए नेपाल के साथ बराबरी के आधार पर बिजली क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए.  
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