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गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

सांसदों के आवास - खर्चे और बहाने

                                                                       देश में सरकारें और व्यवस्था परिवर्तन की बातों के बीच बहुत कुछ ऐसा भी चलता रहता है जिसके बारे में हम परिवर्तन के दौर में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. नीमच मध्य प्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता चन्द्र शेखर गौड़ ने वर्तमान संसद के कुछ सांसदों के बारे में यह जानकारी हासिल की है कि दिल्ली में उनके निवास के रूप में इस्तेमाल किये जा रहे आवास के रूप में प्रति एमपी सरकार लगभग ढाई लाख रूपये खर्च कर रही है जिसमें खाने पीने और लांड्री के खर्चे शामिल नहीं हैं. देश की राजनीति में प्रभावी पैठ रखने वाले नेता चाहे सांसद रहें या न रहें उनके पास दिल्ली में जुगाड़ के माध्यम से एक अदद सरकारी बंगले की ज़रुरत कभी भी ख़त्म नहीं होती है. लोकदल के अजीत सिंह के साथ जिस तरह का नाटक दिल्ली में हुआ वह सभी ने देखा पर आज भी बहुत से एमपी निर्धारित सरकारी आवासों के स्थान पर दिल्ली के पांच सितारा सरकारी होटलों में अपने अस्थायी निवास के साथ रह रहे हैं और देश को उन पर करोड़ों खर्च भी करने पड़ रहे हैं.
                                                            महत्वपूर्ण सत्ता परिवर्तन जिसमें अधिकांश एमपी अपने चुनाव हार चुके हों उस स्थिति में सरकारी विभाग के सामने भी समस्या ही रहा करती है और नियमों के अनुसार एक महीने तक का समय इन नेताओं को घरों को खाली करने के लिए दिया जाता है जिसके बाद उनको बलपूर्वक निकालने का अधिकार सरकार के पास होता है. सरकार को इस कार्य को करने में हर बार ही बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसके चलते रोज़ की किचकिच सुनाई देती रहती है. स्थानीय कारकों के चलते भी कई बार बहुत से महत्वपूर्ण सांसद अपने चुनाव हार जाते हैं पर राष्ट्रीय राजनीति में उनका दखल कम नहीं होता है. इस परिस्थिति के चलते उन्हें भी अपनी पार्टी और जनता के लिए दिल्ली में एक अदद आवास की आवश्यकता होती है जिसके माध्यम से वे दिल्ली में अपनी उपस्थिति को बनाये रख सकें क्योंकि लोकतंत्र में सभी को बराबरी का हक़ मिला हुआ है और किसी के एक चुनाव हार जाने मात्र से ही उसका यह हक़ छीना भी नहीं जा सकता है और अगले चुनावों में वे फिर से इन क्षेत्रों से जीतकर सदन तक पहुँच सकते हैं.
                                                            इस समस्या को सुलझाने के लिए सरकार को ही खुद कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा क्योंकि जब तक सरकार ही इसके लिए तैयार नहीं होगी तब तक हर आम चुनाव के बाद इस तरह की परिस्थितियां सामने आती ही रहने वाली हैं. इस परिस्थिति से निपटने के लिए सरकार को दिल्ली में इन पूर्व सांसदों और मंत्रियों के लिए बाज़ार के मूल्यों पर आधारित कुछ आवास रिज़र्व रखने चाहिए और जिस भी नेता द्वारा निर्धारित मूल्य का भुगतान किया जाये उसे इन नए आवासों में रहने के लिए जगह उपलब्ध करा दी जानी चाहिए. इसमें आवंटन का आधार पार्टी की सदन में अहमियत पर नहीं बल्कि उसके राज्य में उसकी उपस्थिति पर होनी चाहिए क्योंकि बहुत से क्षेत्रीय दल भी आज राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान करने में लगे हुए हैं. इससे जहाँ सरकार के मंत्रालयों के लिए इन नेताओं के पास एक विकल्प उपलब्ध कराने की सुविधा हो जाएगी वहीं इन जबरिया जमे हुए नेताओं को आधिकारिक आवासों से आसानी से हटाया भी जा सकेगा और नए सांसदों के लिए जगह उपलब्ध हो पायेगी.     
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