मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

सेना और सोशल मीडिया

                                                                देश में बाह्य कारणों से काफी लम्बे समय से अशांत आंतरिक क्षेत्रों में जिस तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से सेना पर आरोप लगाने का एक नया क्रम शुरू हुआ है सेना भी उससे भलीभांति परिचित है और इसी सम्बन्ध में एक बार फिर से सेना की तरफ से सभी सैन्य कर्मियों को वे नियम भेजे गए हैं जिनके अंतर्गत वे सोशल मीडिया पर बने रह सकते हैं. आज जिस तरह से इंटरनेट का प्रचार प्रसार बढ़ा है और पूरी दुनिया में आतंकी संगठन भी इसका धड़ल्ले से उपयोग करने में लगे हुए हैं तो ऐसी किसी भी परिस्थिति में सेना के किसी भी जवान या अधिकारी की पहचान सोशल मीडिया पर सार्वजनिक होना उसके और सेना के हितों के खिलाफ भी जा सकता है.विश्व में सबसे अनुशासित सैन्य बल के रूप में जाने जानी वाली भारतीय सेना को यह गौरव उसके अधिकारियों और जवानों की नियमों और भारत की सैन्य परम्पराओं में निष्ठा से ही मिला है. देश के अंदर छिपे हुए दुश्मनों की के बारे में सटीक जानकारी न होने के कारण ही सेना को अपने लिए कठोर नियम बनाकर उनका अनुपालन करना अनुशासन में शामिल किया गया है.
                           अशांत क्षेत्र में लम्बे समय तक काम करने वाली हमारी सेना ने भी जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में अपने जवानों के बलिदानों के बाद भी सदैव संयम का परिचय ही दिया है उसके जैसी मिसाल कहीं और नहीं मिलती है. सेना के काम करते समय कई बार ऐसे अवसर भी आ जाते हैं जब उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचते हैं और जवानों द्वारा गलती भी हो जाती है फिर भी भारतीय सेना इस मामले में आज भी सबसे अच्छी मानी जाती है कि पहचान सम्बन्धी मानवीय भूल से होने वाली गलतियां भी उसके खाते में कम से कम ही रहा करती हैं. पिछले महीने दो युवकों के सेना द्वारा रोके जाने पर भागने के बाद हुई गोलीबारी में मारे जाने के बाद सेना ने इस मामले में अपनी गलती तो मान ली पर कोई उन लड़कों के बारे में कुछ भी नहीं कह रहा है जिन्होंने सेना की पिकेट पर रोके जाने के बाद भी भागने का प्रयास किया और सेना की कार्यवाही में मारे गए. घाटी में यह एक आम सीन है कि सामान्य जांच के लिए सेना और पुलिस गाड़ियों को रोकते हैं फिर उन लड़कों ने इस तरह का माहौल क्यों पैदा किया कि सेना को इस तरह से कार्यवाही करनी पड़ी ?
                        सेना के मनोबल को तोड़ने के इस तरह के किसी भी दुष्प्रचार से पूरी तरह से बचने की आवश्यकता है यहाँ तक खुद पीएम ने भी चुनावी लाभ के लिए इस मामले को चुनावी सभा में इस बात को गलत तरीके से उद्धृत किया. भारतीय सेना सदैव से ही अपने काम को पूरी कर्तव्य निष्ठा के साथ करती आई है तो इसमें पीएम को इस तरह से नहीं बोलना चाहिए था क्योंकि आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं के होने पर लोग उनसे फिर इसी तरह के बयान की आशा लगायेंगें जो कि चुनावी माहौल खत्म होने के बाद नहीं संभव है. सेना ने दिशा निर्देशों के माध्यम से जिस तरह अपने को इस मोर्चे पर भी सुरक्षित रखने का प्रयास शुरू किया है वह अपने आप में सही है और जल्दी ही इसका सही असर भी दिखाई देने वाला है. कश्मीर घाटी या देश के किसी अन्य अशांत भाग में जो लोग सेना पर आरोप लगाते हैं वे कहीं न कहीं से उन लोगों की ही मदद करते हैं जो देश में सेना के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं अब इस तरह के मामलों में सेना को किसी भी तरह की राजनीति से दूर रखने की आवश्यकता को हमारे नेताओं को भी समझना ही होगा.  
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