मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

२६ जनवरी और आतंकी खतरे

                                                     दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड को लेकर केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों के लिए दिन पर दिन चुनौतियाँ बढ़ती ही जा रही हैं क्योंकि बदले हुए राजनैतिक माहौल में जिस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति इस बार मुख्य अतिथि के रूप में भारत आ रहे हैं तो मामला और भी कठिन हो जाता है. हालाँकि भारतीय सुरक्ष बलों ने इस तरह की चुनौतियों को हमेशा ही अच्छे ढंग से पूरा किया है और सुरक्षा सम्बन्धी चिताओं से सदैव ही समुचित तरीके से निपटने में सफलता पायी है पर इस बार जिस तरह से दिल्ली में ओबामा की उपस्थिति में आतंकी भारत के किसी अन्य हिस्से के साथ दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाने की कोशिशें करने में लगे होंगें उसका ख़ुफ़िया एजेंसियों समेत देश की सरकार को भी पूरा अंदाज़ा है. इस परिस्थिति में सरकार को जिस तरह की सूचनाएं मिल रही हैं उनसे यही लगता है कि आतंकी भारत पर किसी भी तरह से कोई छोटा या बड़ा हमला करने की फ़िराक़ में लगे हुए हैं पर इस बार ओबामा की यात्रा के चलते अमेरिकी एजेंसियों से भी तालमेल के चलते सभी गतिविधियों पर पूरी तरह से नज़र रखी जा रही है.
                                       नेपाल के रास्ते फरीदाबाद होते हुए दिल्ली एनसीआर में १० आतंकियों के पहुँचने की सूचना के बाद जिस तरह से सुरक्षा बलों ने इन इलाकों में पूरी तरह से सघन जांच किये जाने की तरफ कार्यवाही करना शुरू कर दिया है उससे यही लगता है कि मामला उतना साधारण नहीं है जितना इसे पहले समझा जा रहा था क्योंकि इस तरह के इनपुट्स कई बार आते ही रहते हैं और उनके अनुसार कार्यवाही भी करने की कोशिशें भी की जाती रही हैं. किसी भी क्षेत्र में आतंकियों के पनाह लेने और हमला करने के सभी मामलों में जिस तरह से आतंकियों के लोकल मॉड्यूल हमेशा ही उनके काम को पूरा किया करते हैं उससे यही लगता है कि हमारे समाज में खुद अपने आसपास नज़र रखने की प्रवृत्ति अभी भी विकसित नहीं हो पायी है. आतंकियों को किसी क्षेत्र विशेष में पनाह मिलने के बारे में वैसे तो आम लोगों को कुछ भी पता नहीं होता है पर कई अप्रत्याशित सी घटनाएँ जो किसी हमले के बाद सामने आती हैं उनको यदि एक सिरे से जोड़ना शुरू किया जाये तो परिस्थितियों को बहुत हद तक संभाला जा सकता है.
                                       देश के सुरक्षा बल और ख़ुफ़िया एजेंसियां तो अपने स्तर से काम करती ही रहती हैं पर जब तक हम नागरिक ही अपनी पूरी सुरक्षा के लिए जागरूक नहीं होंगें तब तक कुछ एजेंसियों के दम पर हम सदैव ही इस तरह के हमलों के लिए पूरी तरह से खुले ही रहने वाले हैं. हमारी इस तरह की लापरवाही ही समाज विरोधी तत्वों तथा आतंकी संगठनों के लिए उनके काम को आसानी से करने के लिए प्रेरित किया करती है आखिर एक नागरिक के रूप में हम अपनी ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझना चाहते हैं और हर तरह के सुरक्षा सम्बन्धी मसले केवल सरकार और पुलिस पर छोड़ने से आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं ? देश में हर चौराहे और नुक्कड़ पर पुलिस नहीं तैनात की जा सकती है इसलिए हमें भी चौकन्ने रहने की ज़रुरत है. हमारी इस तरह की थोड़ी सी सतर्कता ही हमारे आसपास के माहौल को पूरी तरह से बदलने की तरफ ले जाने में सफल हो सकती है इसके साथ ही पुलिस को भी इस तरह के स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना मिलने पर वह सूचना देने वाले के नाम को गुप्त रखते हुए अपने काम को मुस्तैदी से अंजाम देना भी अपनी प्राथमिकता में लाना शुरू करे. देश हमारे प्रयासों से ही सुरक्षित होने वाला है और हम देश के नागरिक खुद को सुरक्षित रखने के लिए कब तत्पर होते हैं यह समय ही बताएगा.         
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