मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 18 मार्च 2015

अब डीके रवि

                                         देश में ईमानदारी के पाठ पढ़ाने वाले नेताओं की भीड़ के बीच जिस तरह से आज भी ईमानदार अधिकारियों के लिए अपने कर्तव्य के निर्वहन में अड़चने आती रहती हैं वे किसी से भी छिपी नहीं हैं पर इस कड़ी में जब किसी ईमानदार अधिकारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है तो उसे क्या कहा जाये ? इस मामले में सभी राजनैतिक दलों का काम लगभग एक जैसा ही रहा करता है संसद और विधान मंडलों में भ्रष्टाचार पर होने वाली बहसों में लम्बी चौड़ी बातें करने वाले लोगों की किस तरह से कलई रोज़ ही खुलती रहती है अब यह सभी जानते हैं पर इस समस्या से अखिल भारतीय स्तर पर किस तरह से निपटा जाए इसके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बन पायी है. आज सुप्रीम कोर्ट के कठोर प्रयासों के बाद भी जिस तरह से अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का राजनीति में आना लगातार जारी है उस परिस्थिति में विधायिका द्वारा अपराधियों को राजनीति में आने से रोकने के लिए किये जाने वाले सभी प्रयास बहुत कमज़ोर से ही लगते हैं क्योंकि आज राजनीति में नैतिकता पाठ्यक्रम में तो है पर आचरण से पूरी तरह गायब होती दिखाई देती है.
                 इस समस्या के लिए अब देश के राजनैतिक तंत्र को एकजुट होकर कोई ठोस समाधान खोजना ही होगा क्योंकि आज कोई भी दल अपने को ऐसा नहीं कह सकता है कि वह इस तरह की प्रवृत्ति वाले नेताओं से पूरी तरह मुक्त है तो इसका समाधान भी सभी दलों को मिलकर ही निकालने के बारे में सोचना होगा. आज भी देश के हर राज्य में कहीं न कहीं राजनैतिक कारणों या अन्य जातीय, क्षेत्रीय प्रभावों के चलते हर दल में ऐसे लोग टिकट पा जाते हैं जिन पर कोर्ट कि कार्यवाही की तलवार लटक रही होती है तो इस तरह की परिस्थिति में आखिर कोई भी दल क्यों अपने सांसदों और विधायकों के लिए किसी भी तरह की समस्या पैदा करना चाहेगा जो सदन में उसकी संख्या बल को सँभालने का काम करने में लगे हुए हैं. राजनीति में नेताओं द्वारा अपने प्रभाव और ठोस कामों को न कर पाने के कारण जिस तरह से स्थानीय अपराधिक प्रवृत्तियों के लोगों को अपने साथ जोड़ा गया उससे उन्हें कुछ चुनाव जीतने में मदद तो मिली पर जल्दी ही इन अपराधियों की समझ में यह बात भी आ गयी कि जब वे किसी को जिता सकते हैं तो खुद भी क्यों नहीं जीत सकते हैं बस वहीं से राजनीति के घोर पतन का युग शुरू हो गया.
                        जो भी व्यक्ति ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा है उसके बारे में नेताओं और सरकारों को भी जनता के रुख का ध्यान रखना चाहिए केंद्र या राज्य में किसी की दल भी सरकारें क्यों न हों पर ईमानदार अधिकारियों के लिए काम करने का माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी केंद्र पर अधिक आनी चाहिए क्योंकि किसी भी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी को केंद्र कभी भी अपनी सेवा में ले सकता है. केंद्र की तरफ से कुछ कठोर नियमों का अनुपालन भी सुनिश्चित करने के बारे में राज्यों को स्पष्ट दिशा निर्देश देने का अधिकार भी मिलना चाहिए क्योंकि जब तक राज्यों के ईमानदार अधिकारियों के साथ केंद्र का मज़बूत रुख नहीं होगा तब तक राज्यों की सरकारें किसी न किसी दबाव में आकर इस तरह की गतिविधियों को रोक पाने की इच्छुक ही नहीं होंगीं. जिला स्तर के अधिकारियों के तबादले के लिए स्पष्ट नीति होना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि आज जिस तरह से पूरे वर्ष भर राज्यों में अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जाता रहता है उससे कहीं न कहीं प्रशासन के काम काज पर भी बुरा असर पडता है. इस तरह के मामलों में सबसे दुखद बात यह रहती है कि कभी कोई सत्येन्द्र दुबे कभी मंजूनाथ षणमुगम और कभी डीके रवि जैसे अधिकारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. इनके सम्मान और अधूरे काम को पूरा करने के लिए एक नीति बना दी जानी चाहिए कि यदि किसी गैर कानूनी काम को रोकने का प्रयास करते समय किसी अधिकारी की संदिग्ध मृत्यु होती है तो प्रशासन अपने दम पर उस कार्य को पूरी तरह रुकवाने तक चैन से नहीं बैठेगा.     
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