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गुरुवार, 19 मार्च 2015

सुकन्या समृद्धि योजना और सरकारी कार्यशैली

                                                             २२ जनवरी १५ को देश भर के लिए "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान की शुरुवात करते समय पीएम मोदी ने अपने जिस ड्रीम प्रोजेक्ट को देश के सामने पेश किया था आज वह सरकारी चंगुल में फंसकर इस वित्तीय वर्ष में आम नागरिकों को लाभ देने की स्थिति में पहुंच पायेगा इसमें संदेह दिखाई देने लगा है. अपने आप में बेहतर योजना को सरकारी लापरवाही के कारण किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह इससे एक बार फिर स्पष्ट हो गया है. इस योजना के तहत ७ से१४ वर्ष की किसी भी बच्ची का खाता डाकघर या बैंकों में खोला जा सकता है वैसे तो यह योजना पीपीएफ की तरह ही लगती है पर लड़कियों के लिए विशेष करने के लिए इसे टैक्स फ्री किया गया है जिससे बचत की दृष्टि से यह योजना बहुत ही लाभकारी हो गयी है. पीपीएफ की तरह इसमें टैक्स नहीं लगने से यह योजना आज ९.१ % रिटर्न के साथ देश की सबसे अच्छी बचत योजना हो गयी है पर इसके बारे में जनवरी में घोषणा होने के बाद भी जिस तरह से पिछले हफ्ते बैंकों के लिए सर्कुलर्स जारी किये गए और उसके बाद भी अभी तक वे बैंकों तक सही तरह से पहुँच ही नहीं पाये हैं उससे महत्वपूर्ण सरकारी काम काज निपटाने की कार्यशैली पर एक बार फिर से प्रश्नचिन्ह लग गया है.
                                       काम करने में तेज़ी से निर्णय लेने का दम भरने वाली मोदी सरकार और उस पर भी खुद पीएम द्वारा घोषित की जाने वाली महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए भी यदि सरकारी तंत्र का यह रवैया है तो विकास और प्रगति की बात किस तरह से की जा सकती है ? क्या वित्त मंत्रालय इस बारे में गंभीर भी है कि पीएम के सपने को पूरा करने के लिए जिन क़दमों को उठाये जाने की आवश्यकता है उनमे कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए आज जिस तरह से मोदी सरकार ने नागरिकों द्वारा व्यक्तिगत बचत को फिर से ऊंचे स्तर तक ले जाने के लिए जो भी प्रयास करने शुरू किये हैं क्या इस तरह की लापरवाही उन सब पर भारी नहीं पड़ने वाली है ? आज यदि सरकार की तरफ से इस योजना का सही तरह से अनुपालन किया गया होता तो डाकघरों के साथ ही यह योजना बैंकों में भी शुरू हो चुकी होती और एक अच्छा खासा धन संग्रह भी इसमें हो चुका होता पर अब जब चालू वित्तीय वर्ष में बहुत कम समय ही रह गया है तो सरकार के लाख प्रयास करने के बाद भी यह योजना उतने धन का संग्रह नहीं कर पायेगी जितने की उम्मीद लगायी जा चुकी थी.
                                 सरकार को अपनी बिलकुल नयी तरह की योजनाओं को हड़बड़ी में लागू करने के स्थान पर कुछ ऐसा भी करना चाहिए जिससे आम लोगों तक उसका सही लाभ भी पहुंच सके तथा जिस मंशा के साथ कोई योजना लागू की जा रही है उसे भी पूरी सफलता के साथ लागू किया जा सके. इस तरह की नीतिगत त्रुटियाँ पहले भी जनधन योजना में सामने आ चुकी हैं जिससे आम लोगों और बैंकों का काम अनावश्यक रूप से बहुत बढ़ गया था जबकि योजना में पुराने खातों को भी  शामिल किया जा सकता है यह जानकारी बैंकों से लगाकर उपभोक्ताओं तक को नहीं थी. अभी भी समय है और यदि सरकार इस योजना में सही धन संग्रह करना चाहती है तो उसे एक आदेश के तहत बैंकों को इस योजना के नाम पर धनराशि वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले ही जमा करवाने को कहना चाहिए और भीड़ तथा समस्या से निपटने के लिए इनकी कागज़ी कार्यवाही पूरी करने के लिए ३० अप्रैल १५ तक की छूट दे देनी चाहिए इससे जहाँ सरकार की धन संग्रह की योजना भी सफल हो सकेगी वहीं आम लोगों को इसी वर्ष इसका लाभ मिलने लगेगा. केंद्र सरकार के लिए यह काम मुश्किल नहीं है क्योंकि उसकी तरफ से यह एक स्पष्ट प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के बाद संचार के विभिन्न माध्यमों से यह काम किया जा सकता है और डाकघरों में अनावश्यक भीड़ से भी बचा जा सकता है.    
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