मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

संसद की सुरक्षा


                                         १३ दिसंबर २००१ को संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद वहां की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद किये जाने के बारे में कई सारे उपाय किये गए थे जो संभवतः समय के साथ अब कुछ पुराने और कमज़ोर से हो गए हैं. इस बात की जानकारी संसदीय सुरक्षा की समीक्षा करने के बाद बनायीं गयी संसदीय कमिटी ने इसी तरह की बातों के साथ सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है जिसे गृह मंत्रालय के स्तर पर बहुत ही गंभीरता से लिया गया है. भारत विरोधी तत्व जिस तरह से सदैव ही देश के महत्वपूर्ण स्थानों पर हमला कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने की कोशिशें करते ही रहते हैं उस परिस्थिति में संसद जैसे महत्वपूर्ण स्थल की सुरक्षा के बारे में पूरी तरह से इससे जुडी हुई हर एजेंसी को सचेत ही रहने की आवश्यकता है क्योंकि वहां पर हमला करके आतंकी केवल अपने कैडर का मनोबल ऊंचा रखने की कोशिशें ही करते रहते हैं कि भारत की सबसे सुरक्षित जगह पर भी हमला किया जा सकता है जबकि वे जानते भी हैं कि इस हमले में जाना पूरी तरह से आत्मघाती ही साबित होने वाला है क्योंकि वहां की मज़बूत सुरक्षा से जीवित बचकर लौटना भी बहुत मुश्किल है.
                                                      इस समिति में जिस तरह से पूर्व गृह सचिव आर के सिंह की अध्यक्षता में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह और राजस्थान के पूर्व डीजीपी हरिश्चंद्र मीणा शामिल हैं तो इसकी सिफारिशों को पूरी तरह से सटीक और तकनीकी भी माना जाना चाहिए क्योंकि ये सभी लम्बे समय तक देश और राज्यों की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े रहने वाले नाम हैं तथा इसके आंकलन को किसी भी तरह से कमज़ोर नहीं माना जा सकता है. संसद के सत्र के दौरान वहां की सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी रहा करती है क्योंकि उस समय संसद तक आने जाने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ जाती है जिसके साथ ही सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं भी इसी समय अधिक होती हैं और आतंकी भी भीड़ भाड़ में अपने को सुरक्षित रखते हुए हमला करने की नीति पर ही काम किया करते हैं. संसद की सुरक्षा व्यवस्था में वैसे तो कोई कमी नहीं है पर जिस तरह से मौजूदा उपकरणों और शस्त्रों के पुराने होने की बात भी सामने आई है तो उस पर अविलम्ब निर्णय लेने की सरकारी सोच बिलकुल सही है क्योंकि इस स्तर की चूक किसी भी बड़े हमले के लिए संसद को कमज़ोर कर सकती है.
                                   सरकार ने किस नीति के तहत इस तरह की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है यह तो वही जान सकती है पर जब इस मामले में पूरी तरह से सुरक्षा व्यवस्था को ठीक कर लिया जाता तो इस समिति की सिफारिशों और उन पर किये जाने वाले कामों के बारे में बताना सम्भवतः अधिक सुरक्षित रहता क्योंकि इस तरह की ख़बरें जहाँ सरकार की चिंताओं को दर्शाती हैं वहीं इन कमज़ोरियों के सार्वजनिक हो जाने से आतंकियों को यहाँ पर वर्तमान में मौजूद कमियों के बारे में भी पता चल जाता है जो कि उनके लिए एक बार फिर से हमला करने की किसी नीति पर विचार करने के लिए उपयुक्त समय भी हो सकता है. वैसे त्वरित निर्णय लेने के लिए जाने जाने वाले राजनाथ सिंह के गृह मंत्री रहते देश को इस बात का भरोसा है कि आतंकी किसी भी तरह का दुस्साहस नहीं कर पायेंगें फिर भी संसद के बारे में अंतिम निर्णय लेने की प्रक्रिया लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से ही पूरी की जाती हैं तो इसमें कुछ समय भी लग सकता है. सरकार के पास निश्चित तौर पर इसके लिए कोई योजना भी रही होगी तभी उसने इस तरह की जानकारी को प्रेस तक जाने दिया है फिर भी महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी मामलों पर इस तरह की कमियों के बारे में तब ही बताया जाना चाहिए जब उनको पूरी तरह से निरापद बना लिया जाये जिससे देश सुरक्षित रह सके.   मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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