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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

पॉलिसी पैरालिसिस या राजनीति ?

                                              वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा सीबीआई को आगाह किये जाने किये की ख़बरों के बीच एक बार फिर से मामला संप्रग सरकार की तरफ मुड़ता हुआ नज़र आ रहा है जिसमें तत्कालीन सरकार पर नीतिगत निर्णयों के मुद्दे पर भी भाजपा सदैव ही हमलावर रहा करती थी जबकि कुछ मामलों में भ्रष्टाचार किये जाने के अलावा अन्य मामलों में ऐसा कुछ भी नहीं पाया जा सका है क्योंकि निश्चित तौर पर पूरे स्तर पर भ्रष्टाचार के स्थान पर कुछ लोगों ने अवश्य नीतियों की कमज़ोरियों का लाभ उठाते हुए अपने करीबियों या खुद के लिए आर्थिक और अन्य तरह के लाभ भरे सौदे करने की कोशिशें की थीं. जेटली का यह कहना आज बहुत महत्वपूर्ण हो गया है कि सरकारी कमर्चारियों के खिलाफ जांच करते समय सीबीआई को यह देखना चाहिए कि वास्तव में गलती हुई भी है या नहीं ? जब मीडिया ही इस तरह के मामलों में खुद ही ट्रायल करने लगता है और भाजपा जैसे दल उनकखुला समर्थन करने लगते हैं तो गलती किसी दिखाई देने वाली है यह बात संभवतः अब जेटली को समझ में आयी है. इस खबर के बाद तत्कालीन संप्रग सरकार के पीएम मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इन बयानों के बाद नीतिगत मामलों में लिए गए निर्णयों पर जिस तरह से भाजपा ने सरकार पर भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए सीबीआई पर दबाव डालने का आरोप लगाया था आज क्या उसकी नज़रों से यह भी उसी श्रेणी में नहीं आता है ?
                                          अब जब केंद्र में भाजपा को सत्ता संभाले एक वर्ष पूरा होने वाला है और उद्योग जगत समेत कई जगहों से इस तरह की बातें उठनी लगी हैं कि सरकार उस तरह से विभिन्न सेक्टर्स में काम कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो पायी है तो इस नीतिगत जड़ता से निकलने के लिए संभव है कि आने वाले दिनों में खुद पीएम के साथ अन्य मंत्रालयों की तरफ से भी इसी तरह के बयान सामने आएं क्योंकि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने जिस तरह से नीतिगत मुद्दों पर लिए गए निर्णयों को भी अदालतों तक घसीटने में कोई कसर नहीं रखी थी आज वही सब उसके खुद की सरकार चलाने में बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहा है. मोदी कितने भी मज़बूत पीएम क्यों न हों और राजग की सरकार अपने को कितना भी कठोर निर्णय लेने वाली बताती रहे पर निर्णय लेने में पिछले कुछ वर्षों में भाजपा के कारण जो माहौल बन चुका है अभी देश को उससे निकलने में कई वर्ष लगने वाले हैं जो कि स्पष्ट रूप से देश कि प्रगति को रोकने के साथ भाजपा की उस मंशा पर भी पानी फेरने का काम करने वाली है जिसका माहौल उसने चुनावों के समय बना दिया था कि उसके आते ही सारी समस्याएं खुद ही ख़त्म हो जाएँगी.
                     आज जो भय सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के मन में खुद भाजपा ने ही विपक्ष में रहते हुए बैठाया था उन्हें उससे निकाल पाने में वह खुद को पूरी तरह से असफल ही पा रही है क्योंकि जिस तरह से उसने संप्रग सरकार को हर मामले में भ्रष्ट साबित करने का दुष्प्रचार चलाया था आज वह उसके खुद के लिए ही गले की हड्डी बनता जा रहा है. अच्छा है कि अभी तक इस मुद्दे पर कांग्रेस या अन्य विपक्षियों द्वारा कोई राजनीति शुरू नहीं की गयी है क्योंकि यह सब दलीय राजनीति से अलग रखने वाली बातें ही है और भाजपा द्वारा किसी भी स्तर पर अब इसका समर्थन सिर्फ इसलिए किया जा सकता है क्योंकि आज वह उन मुद्दों की आंच को सरकार में आने के एक साल बाद भी स्पष्ट रूप से महसूस कर रही है तथा उसके पास इस परिस्थिति से निकलने और सरकारी कर्मचारियों को तेज़ी से निर्णय लेने से रोकने का काम कर रही है और आज पिछली सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को नीतिगत आधार पर लिए गए बहुत सारे निर्णयों के लिए आज अदालतों के चक्कर काटने को मज़बूर होना पड़ रहा है. इस मामले पर अब सरकार को देशहित में संसद में एक स्पष्ट कानून के साथ आना ही होगा जिसमें नीतिगत निर्णयों को इस तरह से लेने से रोकने की किसी भी प्रक्रिया पर अधिकारियों / कर्मचारियों को अनावश्यक रूप से भ्रष्ट साबित करने की कोशिशों से बचने के स्पष्ट उपाय भी हों तभी सरकार की मंशा पूरी हो पायेगी वर्ना अधिकारी / कर्मचारी अपने को बचाते हुए सुस्त गति से ही निर्णय लेने में ही लगे रहने वाले हैं.                  
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