मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

नेपाल - भूकम्प और सबक

                                                         नेपाल में आये विनाशकारी भूकम्प के बाद जहां पूरे विश्व से वहां पहुँचने वाली राहत सामग्री का आना जारी है वहीं इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद भी नेपाल अपने को भारत और चीन के जटिल रिश्तों के बीच में उलझा हुआ पा रहा है. भारत सरकार द्वारा जिस तरह से पूरी ताकत के साथ नेपाल की हर संभव मदद की कोशिश की जा रही है वहीं नेपाल सेना के अधीन काम करने के निर्देशों के चलते वह अभी भी पूरे नेपाल में अपनी सेवाएं दे पाने में सक्षम नहीं है. यह ऐसी त्रासदी है जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय राजनैतिक असंतुलन को किनारे रखते हुए काम करने की आवश्यकता है पर नेपाल सरकार इस समय दो पाटों के बीच में उलझी हुई लग रही है. भले ही भारत नेपाल के बीच सीमा पर आवाजाही आसान हो पर दूसरा देश होने के कारण भारतीय सेना उस तरह से काम नहीं कर सकती है जैसे वो भारत के किसी भी क्षेत्र में कर पाने में सक्षम है क्योंकि अब चीन नेपाल से इस बात की शिकायत भी करने लगा है कि भारतीय सेना सहायता के बहाने उसके इलाकों में झाँकने की कोशिश कर रही है और अब इतनी विषम परिस्थिति में नेपाल के लिए यह एक बिल्कुल नयी तरह की समस्या बनकर सामने आई है.
                                                   पूरी दुनिया में बहुत सारे ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ पर पड़ोसियों के बीच अच्छे सम्बन्ध नहीं है और समय आने पर भी उनकी यह दुश्मनी कई बार मानवता पर भारी पड़ जाया करती है तो क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर कोई त्वरित व्यवस्था किये जाने का काम नहीं किया जाना चाहिए जिससे समय रहते इस तरह की कटुता को किनारे कर संकट में फंसे हुए लोगों की सही तरह से मदद की जा सके ? यदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस बात का प्रयास किया जाए कि आने वाले समय में ऐसी किसी भी आपदा के समय संयुक्त राष्ट्र के क्षेत्रीय कार्यालयों को इस तरह के निर्णय करने की पूरी छूट हो और निकटवर्ती देशों की सेनाओं को मिलाकर त्वरित बल को आपदाग्रस्त क्षेत्रों में उतार दिया जाये जिससे पूरी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सके. भारतीय सेना शुरू से ही संयुक्त राष्ट्र के हर अभियान में बढ़चढ़ कर भाग लेती रही है और उसके पास विविधता भरे देश में लगभग हर भौगोलिक परिस्थिति में काम करने का व्यापक अनुभव भी है तो उसका सदुपयोग संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से किया जा सकता है हमारे स्वयं के आपदा प्रबंधन विभाग की टीमों को और भी अधिक मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है जिससे वह आने वाले समय में देश के साथ पोरे विश्व में ऐसे किसी भी कार्य को अंजाम देने की तरफ बढ़ सके.
                                   आज की स्थिति में जिस तरह से काठमांडू पहुंची सहायता से हवाई अड्डा पटा पड़ा है और नेपाल सरकार के पास इतने लोग और संसाधन ही उपलब्ध नहीं हैं जो इसे सही लोगों तक पहुंचा सकें साथ ही जिन जमाखोरों ने अपने सामान को ऊंची दरों पर बेचना शुरू कर दिया है उन पर भी नियंत्रण लगा सकें. भूकम्प जैसी आपदा से निपटने के लिए अब विश्व स्तरीय प्रयास की आवश्यकता है और जो भी देश भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे हैं उन्हें विशेष ट्रेनिंग दिए जाने की आवश्यकता है जिससे बाहरी सहायता मिलने तक वे स्वयं को किसी भी तरह आपदा से बचाते हुए और लोगों की मदद भी कर सकें. इन क्षेत्रों तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप करते हुए कुछ हेलीपैड और उनके साथ पडोसी देशों से यदि दुर्गम स्थानों तक पहुँचने का सुगम मार्ग खोजा जा सके तो उसे भी सही रखरखाव के साथ बनाये रखने की कोशिशें की जानी चाहिए क्योंकि यदि एक क्षेत्र में भूकम्प के कारण सड़क मार्ग से आने जाना संभव न रह गया हो तो इन वैकल्पिक मार्गों का उपयोग कर सहायता को समय रहते पहुँचाने का प्रबंध भी युद्ध स्तर पर किया जा सके. भारत चीन वैसे तो मैत्री के लिए बहुत कुछ करने में लगे हुए हैं पर क्या इस संकट में दोनों देश के नेताओं को एक साथ कुछ समय के लिए अपने हितों को किनारे रखकर संयुक्त रूप से नेपाल में राहत और बचाव कार्य में शामिल नहीं होना चाहिए ? इससे जहाँ आपदा में पहने हुए लोगों को समय रहते मदद मिल सकेगी वहीं दूसरी तरफ दोनों देशों की वे चिंताएं भी किनारे हो जाएँगी कि वे एक दूसरे पर नज़र रखने की कोशिशें कर रहे हैं.
                                      निसंदेह नेपाल की इस त्रासदी में भारत ही ऐसा देश जो सबसे पहले सहायता पहुँचाने की स्थिति में है पर इस बार जिस तरह से नेट पर अधिक सक्रिय मोदी सरकार ने काम के लगातार अपडेट्स देने शुरू कर दिए उसके बाद चीन को यह सब अखरने लगा. यदि यह काम इतनी ही तेज़ी से किया जाता और इसका प्रचार करने पर ध्यान न दिया जाता तो संभवतः चीन नेपाल से इस तरह की आपत्ति न दर्ज़ करवाता और भारतीय मिशन पूरी तेज़ी के साथ चल पा रहा होता. संभवतः मोदी को इस बात का अंदाज़ा ही न रहा हो कि पीड़ितों तक सहायता पहुँचाने की इस कोशिश को मीडिया/ सोशल मीडिया पर अधिक महत्व दिए जाने से चीन इस तरह के चिढ़ने वाले कदम उठा सकता है जो कि पीड़ितों के लिए और भी अधिक समस्याएं लेकर सामने आने वाले साबित हो सकते हैं. अब भी समय है यदि मोदी चाहें तो चीन के साथ मिलकर नेपाल के हर क्षेत्र में भारतीय सेना के आने जाने से जुडी आपत्तियों को ख़त्म करने के लिए संयुक्त अभियान चलाने के प्रस्ताव के साथ चीनी राष्ट्रपति से बात कर सकते हैं जिससे राहत में जासूसी वाले आरोपों को किनारे करते हुए नेपाली सेना की अगुवाई में दोनों देशों के सैनिक तेज़ी से काम करना शुरू कर सकें. यदि भारत चीन सेना या संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में ऐसे संयुक्त दल बनाये जा सकें तो नेपाल और मानवता के लिए यह बहुत उपयोगी और राहत भरा कदम होगा. 
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