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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

आयुष चिकित्सकों पर यूपी सरकार का निर्णय

                                          देश की सबसे बड़ी आबादी को अपने में समेटे यूपी में जिस तरह से सरकार के गंभीर प्रयासों के बाद भी स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही थीं उनको देखते हुए अखिलेश सरकार ने प्रदेश के ग्रामीण अंचलों से लगाकर शहरों तक में अपनी सेवाएं दे रहे आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सकों को सीमित अधिकार के साथ एलोपैथिक दवाइयों के इस्तेमाल की अनुमति के बाद वास्तव में प्रदेश के स्वास्थ्य परिदृश्य पर कितना असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा पर इस मामले को लेकर एक बार फिर से आईएमए के विरोध स्वरुप कोर्ट तक जाने की संभावनाएं बन गयी हैं. ऐसा नहीं है कि यूपी में पहली बार ऐसा किया गया क्योंकि इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने इस तरह की छूट देकर अपने यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने की कोशिशें की थीं और उनका सकारात्मक परिणाम भी सामने आया है. यहाँ पर सवाल यह भी उठता है कि क्या इन आयुष चिकित्सकों को यह अधिकार दिया जाना चाहिए या नहीं और यूपी जैसे राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए आखिर किस तरह के मानकों का उपयोग किया जाये जिससे सरकार आम लोगों तक सरकारी या निजी क्षेत्र की चिकित्सा सुविधाएँ पहुँचाने में कुछ आगे बढ़ सके.
                          आज यूपी के अधिकांश सरकारी एलोपैथिक चिकित्सकों को किसी भी जुगाड़ या बहाने से बड़े शहरों के आस पास ही पोस्टिंग चाहिए होती है और उनमें से अधिकांश की अपनी ड्यूटी निभाने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है इसलिए उनका अपने तैनाती स्थलों तक पहुंचना ही संभव नहीं होता है. वे किस भी तरह से काम चलाऊ तरीके से अपने शुरुवाती सेवा वर्षों को काटना चाहते हैं जिसके बाद उन्हें तहसील और जिला स्तरीय चिकित्सालयों में पोस्टिंग मिलने लगती है पर इस सारी जुगाड़बाजी के बीच आम जनता के लिए सरकार इन पर जो भी खर्च करती है उसका लाभ इन तक नहीं पहुँच पाता है. आईएमए से जुड़े हुए चिकित्सकों को इस मामले में थोड़ी उदारता बरतनी चाहिए क्योंकि सरकार के इस प्रयास से प्रदेश के उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर वापस लायी जा सकती हैं जहाँ पर अभी यह सब पूरी तरह से चरमराई हुई हैं इसके साथ ही आयुष चिकित्सकों को भी अपनी सीमाओं का ध्यान रखना ही होगा क्योंकि किसी स्तर पर की जाने वाली चूक कभी भी उनके खिलाफ कोर्ट में जाने का बड़ा आधार बन सकती है. आज भी प्रदेश सरकार अपने स्वास्थ्य केन्द्रों पर आयुष चिकित्सकों की बड़ी संख्या के दम पर ही स्वास्थ्य सेवाओं को संभाले हुए हैं और इस तरह के क़दमों से इनमें और भी सुधार आने की पूरी संभावनाएं भी हैं.
                           आईएमए का इस मामले में विरोध इसलिए भी पूरी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आज भी प्रदेश में जनसँख्या के अनुपात में चिकित्सकों की भारी कमी है जिससे बचने के लिए किसी के पास कोई संसाधन भी नहीं है तथा प्रति वर्ष सरकार जितनी रिक्तियां निकालती हैं उनके लिए अभ्यर्थियों का हमेशा ही कमी रहा करती है इसके बाद भी आईएमए यदि पूरे मामले में कानूनी लड़ाई लड़ती है तो इसे उसका पूर्वाग्रह ही कहा जा सकता है. वैसे इस मामले में यदि अब वे कोर्ट जाना भी चाहें तो उन्हें लम्बी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी क्योंकि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट एक निर्णय पहले ही दे चुका है जिसमें परिस्थितियों के अनुसार इस तरह का निर्णय लेने का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है. आईएमए को इस बारे में अपनी सोच बदलनी चाहिए क्योंकि आज देश के आयुष चिकित्सकों को अपनी इस डिग्री के बूते अमेरिका तक में अन्य विशेषज्ञता वाले कोर्सेस में प्रवेश मिल जाता है पर देश की स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए इस तरह की किसी भी योजना पर आईएमए कानून का सहारा लेने की कोशिश करने लगता है. देश के स्वास्थ्य परिदृश्य को बदलने के लिए अब केंद्र और राज्य स्तर पर आयुष चिकित्सकों को भी विभिन्न तरह के कोर्स करने की छूट मिलनी चाहिए क्योंकि चिकित्सा विज्ञान के मूलभूत विषयों की पढाई सभी तरह की पद्धतियों में दी जाती है.        
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