मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 1 मई 2015

मंदिर, धर्म-गुरु महिलाएं और समाज

                                                                    मुंबई के स्वामी नारायण मंदिर के एक कार्यक्रम में जिस तरह से एबीपी मांझा की रिपोर्टर रश्मि पुराणिक को पत्रकारों के लिए आरक्षित पहली पंक्ति से उठा कर चौथी पंक्ति में बैठने को कहा गया उसके बाद से एक बार फिर से यह बहस शुरू हो चुकी है कि क्या आज के समय में किसी भी महिला के साथ मुंबई जैसे आधुनिक शहर में इस तरह का व्यवहार किया जा सकता है ? सरसरी तौर पर देखा जाये तो इस कार्यक्रम का आयोजन महाराष्ट्र सरकार द्वारा गो हत्या पर लगाये गए कड़े प्रतिबंधों और प्रावधानों के लिए सीएम देवेन्द्र फडणवीस को सम्मानित करने के लिए किया गया था जिसको कवर करने के लिए रिपोर्टर्स को भी बुलाया गया था. आयोजकों के समाज के नियमों के अनुसार किसी भी महिला को धर्म गुरुओं के पास एक निश्चित सीमा से आगे नहीं आने दिया जाता है और इस मामले में भी आयोजकों ने इस बात का ही अनुपालन किया जब धर्म गरुओं की तरफ से महिला पत्रकरों को देखकर इस तरह की आपत्ति की गयी. इसके तुरंत बाद रश्मि पुराणिक को उस स्थान से हटकर चौथी पंक्ति में बैठने को कहा गया जिससे वे स्पष्ट रूप से आहत भी दिखीं.
                                     यदि इस तरह के प्रतिबंधों के साथ कोई भी कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है तो निश्चित तौर पर आयोजक इस बात को जानते ही होंगें तो उन्होंने पत्रकारों को आमंत्रित करते समय अपनी प्रेस विज्ञप्ति या निमंत्रण में इस बात का स्पष्ट उल्लेख भी करना चाहिए था कि नियमों के चलते यदि कोई महिला पत्रकार कवरेज करने आती हैं तो तो उन्हें पहली पंक्ति में बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती है इसलिए केवल पुरुष पत्रकारों को ही इस आयोजन के कवरेज के लिए भेजने का आग्रह भी किया जाना चाहिए था. धार्मिक आधार पर भारतीय संविधान सभी को अपनी मान्यताओं के अनुपालन की अनुमति देता है तो इसी तरह से वह हर व्यक्ति को कहीं भी आने जाने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी देता है पर इस मामले में दोनों तरह की बातें सामने आती हैं क्योंकि एक तरफ धर्म गुरुओं से जुडी हुई मान्यताएं हैं जिनके अनुपालन में महिला पत्रकार को अपने स्थान को छोड़कर जाना पड़ा वहीं दूसरी तरफ उस महिला पत्रकार की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन भी हुआ है. धर्म से जुड़े हुए मामले अपनी आस्थाओं के कारण अधिकांश समय इस तरह की समस्याएं खड़ी करते रहते हैं पर किसी की मान्यताओं पर कोई किसी भी तरह की रोक नहीं लगा सकता है.
                                  इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए देवेन्द्र फडणवीस को भी इस मामले की भनक लगी तो उन्होंने पत्रकरों को इस बात पर केवल इतना ही उत्तर दिया कि महिला और पुरुष होने के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना उचित नहीं है पर मामला धर्म गुरुओं से जुड़ा होने के कारण उन्होंने इस पर कोई अन्य बयान देने से परहेज़ भी किया जो कि आज की परिस्थितियों के अनुसार पूरी तरह से सही कहा जा सकता है. देश में धर्म और जाति के आधार पर पहले से ही इतनी राजनीति की जाती रहती है कि इस तरह के किसी भी धार्मिक आयोजन से जुड़े हुए लोगों को पूरी तरह से सचेत रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि आयोजन में जो भी लोग आमंत्रित किये जा रहे हैं यह आवश्यक नहीं कि उन्हें हर परंपरा का पहले से ज्ञान ही हो. देश के संविधान से मिली हुई पूरी छूट को देखते हुए अब ऐसे किसी भी आयोजनों में स्पष्ट दिशा निर्देशों के साथ काम करने और विवादों से बचने की गंभीर कोशिश की जानी चाहिए क्योंकि धार्मिक व्यवस्थाएं कानून से नहीं बल्कि आस्थाओं से चला करती हैं और देश जहाँ हमें हर काम करने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता देता है वहीं वह हर धर्म को अपनी मान्यताओं के अनुसार अपने कार्यक्रम आयोजित करने की खुली छूट भी देता है.   
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