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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

गिरिराज का अनावश्यक बयान और उसका असर

                                  देश की राजनीति में जिस तरह से नेताओं द्वारा कुछ भी कह देने और बाद में बेशर्मी के साथ माफ़ी मांगने के काम को लगातार ही किया जाता रहता है उससे भारतीय सहिष्णुता और श्रेष्ट संस्कृति के दावों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार खिल्ली ही उड़ती है. इस मामले को दलगत राजनीति से आगे बढ़कर देखने की आवश्यकता है क्योंकि लगभग हर दल में इस तरह की मानसिकता के लोग मौजूद हैं जिनकी हरकतों से कहीं न कहीं देश को ही नीचा देखना पड़ता है. बेहतर हो कि इस मामले को दलों के दायरे में बांधकर देखने के स्थान पर भारतीय पुरुषों की उस मानसिकता से जोड़कर देखा जाये जो उन्हें महिलाओं से बेहतर होने के झूठे दम्भ में जीने के अवसर हमारे समाज से स्वतः ही मिलते रहते रहते हैं. हमारे घरों में लड़कियों को वैसा स्थान नहीं मिल पाता है जो लड़कों को बिना मांगे ही दे दिया जाता है जिससे पूरे समाज की इस मानसिकता का असर बाद में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के मष्तिष्क पर दिखाई देता है. भारतीय पुरुषों क्या पूरे समाज में ही महिलाओं के रंग को लेकर जो ग्रंथि है उसे एक दो दिनों में खोला नहीं जा सकता है पर सबसे अधिक चिंता की बात तो यह है कि समाज के ऊँँचे स्तर पर पहुँचने वाले लोग भी अपनी उसी घटिया मानसिकता के साथ जीना पसंद करते हैं जबकि सम्मानजनक पदों पर होने के कारण इन लोगों की ज़िम्मेदारी बहुत अधिक बन जाती है कि वे देश के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा कोई भी काम न करने जो विवाद पैदा करने के साथ संबंधों में दरार डालने का काम करे. 
                                  वैसे तो किसी भी महिला के खिलाफ किसी भी तरह की व्यक्तिगत टिप्पणी करने का कोई मतलब नहीं होता है फिर सार्वजनिक क्षेत्रों में घरों से बाहर निकल कर काम करने वाली महिलाओं के बारे में किसी भी तरह के व्यक्तिगत बयानों की कोई आावश्यकता नहीं होती है. ये वो महिलाएं होती हैं जो आत्म निर्भर होकर पुरुषों से मुकाबला करने की स्थिति में आ चुकी होती हैं पर संभवतः इन अम्हिलाओं के इस स्वाभिमान से ही कुछ झूठे दम्भी पुरुषों के अहम को चोट लग जाय करती है और वे उनके खिलाफ अनर्गल बातें करना शुरू कर देते हैं. एक तरफ हम "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" का उद्घोष करने से नहीं चूकते हैं वहीं दूसरी तरफ इन्हीं महिलाओं को हर स्तर पर नीचा दिखाने की किसी भी कोशिश से पीछे भी नहीं हटना चाहते हैं ? महिलाओं के सम्मान की खोखली बातें बातें करना और दिल में महिलाओं के लिए वास्तविक सम्मान होना दोनों बहुत अलग अलग बातें हैं जिनका हमारे देश के बहुत सारे नेताओं से तो दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है. क्या इस तरह के बयान देने वाले लोग अपने घरों की महिलाओं के बारे में भी इसी तरह से विचार रखते हैं यदि यह सवाल उनसे कोई पूछ भर ले तो उनकी त्योरियां चढ़ जाया करती हैं क्योंकि परदे के पीछे भले ही वे कितने घिनौने क्यों न हों पर समाज के सामने अपने को महिलाओं का हितैषी साबित करने से कभी भी नहीं चूका करते हैं. समाज की इस कमज़ोरी या बदतमीज़ी के लिए आखिर हमारे यहाँ किसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि जब गलतियां हैं तो किसी पर उत्तरदायित्व भी तो आना चाहिए पर कोई भी इस मामले पर कुछ भी नहीं बोलने वाला है सभी को अपनी सुविधानुसार कुछ भी बोलने की छूट पार्टियों द्वारा दी जाती रही है जिसका यह परिणाम सामने है.
                               गिरिराज प्रकरण में जिस तरह से बयान के कुछ घंटों के भीतर ही नाइजीरिया ने अपने यहाँ की महिलाओं के प्रति ऐसी असभ्य टिप्पणी के लिए विदेश मंत्रालय में मंत्री की शिकायत करने तक सोचना शुरू कर दिया है वह मामले की गंभीरता को ही दिखाता है फिर भी पीएम की तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया है. दूसरी तरफ बेशर्म गिरिराज ने जिस तरह से केवल सोनिया गांधी और राहुल गांधी से खेद जताया उसके साथ क्या नाइजीरिया की महिलाओं से माफ़ी मांगी गयी या किसी तरह का खेद जताया गया ? गिरिराज जैसों को संभवतः इतनी तमीज ही नहीं है कि उनके इस तरह के बकवास करने का असर कहाँ तक पड़ सकता है, क्या इस मसले के लम्बे समय में कूटनीतिक असर नहीं पड़ने वाले हैं और यह सब अगर राजग सरकार और उसके मुखिया को नहीं दिखाई दे रहा है तो विदेशों में बसे भारतीयों पर भी इसी तरह के जातीय या रंगभेद से जुड़े हमले होने से कैसे इंकार किया जा सकता है ? इसी वर्ष के अंत तक भारत और अफ्रीका के सभी ५४ देशों के नेताओं को भारत में भारत-अफ्रीका संबंधों को मज़बूत करने के लिए एक सम्मलेन में भारत सरकार बुलाना चाह रही है तो क्या इन देशों की सरकारों पर इस तरह के मंत्री के मोदी सरकार में रहते हुए अपने देशों में विरोध नहीं झेलना पड़ सकता है ? मामला अधिक संवेदनशील होने के कारण इस सम्मलेन पर भी आशंकाएं उमड़ सकती हैं तो क्या इस परिस्थिति में खुद पीएम को आगे आकर स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए जिससे पूरे मामले को सही तरह से निपटाया जा सके. पीएम के इस तरह के कई मामलों में चुप्पी लगाये जाने के कारण ही आज उनके मंत्रियों और पार्टी नेताओं की जबानें लम्बी होती जा रही हैं और जब तक इस पर कुछ ठोस नहीं किया जाता है तब तक ये मंत्री लोग इसी तरह से सरकार के सामने धर्म संकट खड़े करते रहेंगें. ऐसी किसी भी परिस्थिति में क्या पीएम को कडे कदम उठाते हुए लोगों को पार्टी के महत्वपूर्ण पदों और सरकार के मंत्रिपद से हटाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि आज पूरे विश्व में भारत में व्यापार करने के लिए दुनिया भर को आमंत्रित करने में दौड़ रहे पीएम की इस तरह के मामलों छवि किस तरह की बन सकती है संभवतः वे इस पर विचार ही नहीं कर रहे हैं.      

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