मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 3 मई 2015

यातायात और एम्बुलेंस

                          दिल्ली और पूरे देश में रोज़ ही शहर के मुख्य मार्गों पर जाम में फंसने वाली एंबुलेंसों के चलते मरीज़ों के परिजनों को उन्हें अस्पताल तक पहुँचाने में कितनी समस्या होती है इससे सभी वाकिफ हैं पर यह एक ऐसी समस्या है जिससे कोई भी सरकार नहीं निपट सकती है पर हम नागरिक अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए सड़क पर चलते समय यदि यातायात के नियमों का पूरी तरह से अनुपालन करना सीख लें तो काफी हद तक इस तरह की स्थिति से बचा भी जा सकता है. एक आम नागरिक नवल ने राजेन्द्र पैलेस और तिलक नगर के बीच सड़क पर जाम में फँसी हुई एम्बुलेंस को प्राथमिकता के आधार पर निकालने के प्रयास जैसे ही शुरू किये तो उनके साथ कई और लोगों ने हाथ बंटाना शुरू कर दिया जिससे हार्ट अटैक के शिकार ४५ वर्षीय राजकिशोर को समय रहते अस्पताल पहुँचाने में मदद मिली और उनकी जान भी बचायी जा सकी. यहाँ पर सोचने की बात यह भी है कि आखिर हम आवश्यक सेवाओं के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझते हैं और इस तरह की समस्या से किस तरह के प्रयासों के माध्यम से कुशलता से निपटा जा सकता है ?
                       यह सही है कि देश में तेज़ी से बढ़ते हुए वाहनों की संख्या को देखते हुए आज सरकार के पास सड़कों के सुधार के लिए सीमित विकल्प शेष बचते हैं क्योंकि देश भर में  जिस तरह से मुख्य मार्गों का अतिक्रमण किया जाता है उसके बाद इन सड़कों की चौड़ाई कम हो जाती है जिससे सड़क पर यातायात का अधिक दबाव बन जाता है. इस परिस्थिति से निपटने के लिए सबसे पहले दिल्ली या देश के किसी भी अन्य शहर के अंदर इस तरह की हर सड़क को चिन्हित किया जाना चाहिए और उस पर किसी भी तरह के अतिक्रमण को एक राष्ट्रीय नीति बनाकर हटाया जाना चाहिए क्योंकि कुछ राज्यों ने अपन स्तर से इस दिशा में कुछ पहल कर भी रखी है पर अधिकांश राज्यों में अभी भी इस पर काम किये जाने की आवश्यकता भी है. इस मामले में केंद्र सरकार केवल दिशा निर्देश जारी करने का काम ही कर सकती है तथा सड़क कानून में कड़े संशोधनों के माध्यम से मुख्य मार्गों पर किसी भी तरह के स्थायी या अस्थायी अतिक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश की हर सरकार को उनका अनुपालन करने को कह सकती है क्योंकि यह राज्य के कार्य क्षेत्र में आने वाला विषय है और इस तरह के मुद्दों पर अन्य दलों द्वारा चलायी जा रही राज्य सरकारें अपनी राजनीति करने से बाज़ नहीं आती हैं.
                        देश की सरकारों के कानून बनाने से स्थिति में पूरी तरह से सुधार आ ही जायेगा ऐसा भी नहीं है क्योंकि हम अधिकांश भारतीय नागरिक केवल पुलिस या कानून के डर से ही सही रास्ते पर चलने में विश्वास करते हैं और जहाँ भी कोई तैनात नहीं दिखता है वहां हम किस तरह की मनमानी करने लगते हैं यह किसी से भी छिपा नहीं है और इस तरह से ही अधिकांश बार अनावश्यक रूप से जाम लग जाया करता है. एम्बुलेंस जैसी अति आवश्यक सेवा को हर तरह की प्राथमिकता देने के बारे में हर नागरिक को आज जागरूक होने की ज़रुरत है क्योंकि आखिर उसमें भी तो कोई किसी का अपना ही जा रहा होता है और इस तरह की सामजिक उद्दंडता के चलते यदि किसी की जान चली जाती है तो यह पूरी तरह से असहनीय ही है. हमें एक एम्बुलेंस को रास्ता देने में कितना समय लगने वाला है फिर भी हम यह मान लेते हैं कि हम लेट हो रहे हैं पर एक रोगी को यदि समय से चिकित्सकीय सहायता न मिल पाये तो उसका सब कुछ समाप्त हो सकता है अब हमें इस बात को ही समझने की आवश्यकता है. यह सुधार स्व-अनुशासन से ही आ सकता है जब हम यह तय कर लें कि कितना भी जाम क्यों न हो हम इस तरह की आपात परिस्थितियों के लिए सदैव अपने अच्छे से अच्छे प्रयास करने से नहीं चूकेंगें.       
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