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सोमवार, 4 मई 2015

पुत्र जीवक बीज और विवाद

                                         दो तीन माह पहले आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ भाव प्रकाश निघन्टु में वर्णित पुत्रजीवक बीज को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह का अभियान शुरू हुआ था वह अब संसद तक पहुँच गया है क्योंकि इस औषधि के माध्यम से नेताओं को स्वामी रामदेव पर प्रत्यक्ष हमला करने का अवसर मिला है और इस हमले को नेता लोग अपरोक्ष रूप से मोदी तक ले जाना चाहते हैं. मोदी पर राजनैतिक कारणों से हमले करने के राजनीति में बहुत सरे अन्य अवसर भी आने वाले हैं तो इस तरह से आयुर्वेद को घटिया राजनीति में मोहरा बनाने की किसी भी कोशिश का पूरी तरह से विरोध किया जाना चाहिए. यह सही है कि इसके नाम को भारतीय संविधान की धारा १४/१५ का आज के अनुसार स्पष्ट उल्लंघन भी कहा जा सकता है जिसमें धर्म, जाति, समूह, भाषा लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. आज जिस तरह से इस मामले को लेकर राजनीति शुरू हो गयी है वह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही है क्योंकि केवल इसके नाम को लेकर ही जिस तरह का हल्ला मचाया जा रहा है वह इस बात को स्पष्ट कर देता है कि इस मुद्दे को राजनैतिक कारणों से हवा दी जा रही है जो कि स्पष्ट रूप से संविधान की ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना का भी उल्लंघन ही है. देश में बहुत सारे अन्य ज्वलंत मुद्दे हैं जिन पर संसद में बहस होनी चाहिए न कि इस तरह के मुद्दों पर जिनको बेवजह मुद्दा बनाने की कोशिशें हो रही हैं.
                              भाव प्रकाश निघन्टु अपने आप में आयुर्वेद का बहुत मानक ग्रन्थ है और इसमें ही पुत्रजीवक बीज का वर्णन किया गया है जहाँ पर इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है कि इसके सेवन से केवल पुत्र ही पैदा होते हैं. वहां पर इसका उल्लेख स्त्री रोगों और बन्ध्यत्व को लेकर किया गया है जो कि आज भी संतान प्राप्ति में बहुत सारे लोगों के लिए लाभकारी साबित होता है. आयुर्वेद में सदैव से ही इस बात का चलन है कि जो भी योग किसी भी ग्रन्थ में वर्णित है उसे उसके नाम से ही बनाया जाता है और साथ ही यह भी लिखा जाता है कि यह औषधि किस प्रामाणिक ग्रन्थ के आधार पर तैयार की गयी है और आज बाजार में बहुत सारी आयुर्वेदिक कंपनियां आज भी इसी मानक का पालन करते हुए औषधियों का निर्माण कर ग्रंथों के नाम भी लिखती हैं. वैज्ञानिक आधार पर यदि देखा जाये तो गुणसूत्रों के आधार महिला की तरफ से लिंग निर्धारण में एक जैसे ही गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष की तरफ से आने वाले गुणसूत्र ही बच्चे के लिंग निर्धारण का निर्णय करते हैं तो किसी भी महिला को यह औषधि खिलाने से केवल पुत्र ही कैसे पैदा हो सकते हैं इस बात को आज के वैज्ञानिक युग में समझने की बहुत आवश्यकता है. यदि आज के आधुनिक विज्ञान को माना जाये तो इस तरह की औषधि से पुत्र की प्राप्ति केवल संयोग ही हो सकती है पर इस नाम का दुरूपयोग कर किसी को ठगने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती है.
                            अब इस बात पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है कि आखिर प्राचीन समय में इसका नामकरण इस तरह से क्यों किया गया तो भारतीय समाज की सदैव ही पुत्र प्राप्ति की इच्छा के साथ इसे जोड़कर देखा जाना चाहिए क्योंकि भले ही हम कितने भी आधुनिक होने का ढंग क्यों न कर लें पर कितने लोग ऐसे हैं जो घर में पुत्री के जन्म पर भी उसी तरह से दिल से प्रसन्न होते हैं जितना पुत्र के जन्म पर ? यह सवाल बहुत कड़वा और चुभने वाला है क्योंकि पुत्र से कुल चलने की बातें सोचकर बैठे हुए लोग आखिर किस तरह से एक ऐसी औषधि को आसानी से स्वीकार करते जो उनके झूठे अहम को संतुष्ट ही नहीं कर सकती हो ? आयुर्वेद अधिकांश समय राज्याश्रित भी रहा है क्योंकि किसी भी आयुर्वेद से जुड़े हुए व्यक्ति के लिए शोध करना उस समय भी इतना ही कठिन काम था जितना यह आज भी है इसलिए मात्र पुत्रजीवक नाम होने से इस बात को कटघरे में किसी को खड़ा करने से पहले हमें खुद अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए कि कैसे आम भारतीय के मन में पुत्र प्राप्ति की उत्कंठा आज भी रहा करती है ? सामाजिक दबाव में यदि हज़ारों वर्ष पहले भी समाज ने इस तरह के नाम को स्वीकार किया था तो आज किस आधार पर इससे पल्ला झाड़ा जा सकता है और एक बात और भी विचारणीय है कि क्या संसद और सरकार के पास इस बात के अधिकार हैं भी कि वे किसी आयुर्वेद के ग्रन्थ या संहिता में वर्णित किसी भी योग का नाम केवल राजनैतिक विरोध के चलते ही बदलने की कोशिश करने लगें ? पुत्रजीवक बीज तो हज़ारों वर्षों से अस्तित्व में है और बन्ध्यत्व में इसके प्रयोग से हज़ारों महिलाओं को बाँझ जैसे शब्दों से मुक्ति मिली है फिर भी इस पर हमला करने से क्या हसिल होने वाला है जबकि इस तरह से देखा जाये तो पूरे देश में ही लिंग अनुपात बिगड़ने का काम केवल अल्ट्रासाउंड सुविधा आने के बाद से ही व्यापक स्तर पर शुरू हुआ तो क्या कल कोई सांसद इस आधार पर ही पूरे देश में अल्ट्रासाउंड जांच पर लिंग निर्धारण में दोषी होने के कारण प्रतिबन्ध लगवाने की मांग कर सकता है ?   
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