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मंगलवार, 5 मई 2015

रेलवे में स्वतंत्र नियंत्रक

                                                     कई महीनों से रेलवे की ज़िम्मेदारी संभाल रहे रेल मंत्री सुरेश प्रभु की तरफ से एक नियंत्रक बनाये जाने वाला सुझाव निश्चित तौर पर पूरे विभाग की सूरत बदलने का काम कर सकता है यदि उसे पूरी तरह से ट्राई की तरह स्वतंत्र बनाया जाये. रेलवे में आमूल-चूल बदलाव के लिए जिस तरह से पिछली संप्रग सरकार ने कुछ दीर्घावधि सुधारों को लागू करने के बारे में काम करना शुरू किया था जिसके तहत रेल किराया प्राधिकरण बनाया गया था उसी तर्ज़ पर रेलवे की आवश्यकता और यात्रियों की सुविधाओं के बारे में मंत्रालय से अलग स्वतंत्र रूप से विचार करने के लिए यदि कोई नियंत्रक संस्था बनायीं जाती है और उसे काम करने के लिए पूरी स्वतंत्रता दी जाती है तो निश्चित तौर पर रेलवे बोर्ड और मंडलीय अधिकारियों की मनमानी पर अच्छी तरह से अंकुश लगाया जा सकता है. आज जिस तरह से सरकार ने मनमानी तरह से रेलवे के यात्री सेगमेंट से छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी है आने वाले समय में वह रेलवे की आमदनी को घटाने के काम ही करने वाली है क्योंकि किसी विशेष सुविधा को जब तत्काल और प्रीमियम जैसी विशेष सुविधा को हर आम गाड़ी में लागू किया जायेगा तो मंहगे किराये के साथ कितने लोग इस तरह से सफर करने में सक्षम हो सकेंगें ?
                                                        आज रेलवे जो भी चाहे निर्णय करने को स्वतंत्र है जैसे २०१३ में सबसे पहले प्रीमियम ट्रेन की अवधारणा सामने आई थी और भीड़ भाड़ वाले मार्गों पर उसने रेलवे की कमाई के नए अवसर भी खोल दिए थे पर पिछले वर्ष से अब तक राजग सरकार की तरफ से जो भी निर्णय लिए जा रहे हैं वे कहीं से भी यात्रियों के हित में नहीं दिखाई दे रहे हैं और उनमें किसी भी तरह से आमदनी को बढ़ाने की बातें ही की जा रही हैं जिससे ऐसा लगता है कि यह सरकार रेलवे की सामाजिक ज़िम्मेदारी को किनारे कर इसे केवल व्यावसायिक प्रतिष्ठान बनाने के बारे में ही सोच रही है. जिस तरह से प्रीमियम सुविधा को पहले से चल रही ट्रेनों के तत्काल कोटे में लागू किया जा रहा है उससे तत्काल का मतलब ही समाप्त होता दिखता है और कई बार ऐसी भी सूचनाएँ आई हैं कि इन गाड़ियों में निचले दर्ज़े का किराया उससे ऊपरी दर्ज़े से भी अधिक हो जा रहा है. इस समस्या के बारे में सोचने की आवश्यकता है और इस तरह से सभी ट्रेनों में इस व्यवस्था को आम लोगों के हितों में किसी भी तरह से साबित नहीं किया जा सकता है. खुद रेलमंत्री भी यह स्वीकार करते हैं कि छोटी दूरी की ट्रेनों में यात्रियों की संख्या तेज़ी से घट रही है और संभवतः आने वलए दिनों में इस सेगमेंट से रेलवे को सबसे अधिक घाटा होने वाला है जो कि यात्रियों और रेलवे दोनों के लिए ही गंभीर समस्या लेकर आने वाला है.
                 आज देश रेलमंत्री से यह अपेक्षा तो कर ही सकता है कि वे अपनी नयी सोच में रेलवे की उस सामाजिक ज़िम्मेदारी को पूरी तरह से बनाये रखने के लिए कोशिश करते नज़र आयेंगें क्योंकि इतने बड़े विभाग में कई तरह की समस्याएं भी हैं आज भी यदि मंत्रालय अपने संसाधनों को आम जनता से जुडी हुई बातों में लगाने का काम करे तो उसे भी लाभ हो सकता है. रेल यात्रियों के लिए एक और बुरी खबर आने वाली है जिसमें सभी विशेष रेलगाड़ियों जिनमें समर स्पेशल और त्योहारों पर चलायी जाने वाली लम्बी दूरी की गाड़ियां भी शामिल हैं उनको प्रीमियम सेवा के अंतर्गत ही चलाया जायेगा जिससे इन ट्रेनों को चलाये जाने का मतलब ही समाप्त होने वाला है. भीड़ को कम करने के लिए लोगों को विशेष अवसरों पर घर आने जाने के लिए जो सुविधा आसानी से मिल जाया करती थी अब वह भी विशेष श्रेणी में जाने वाली है ? मोदी सरकार को आम लोगों ने अच्छे दिनों के लिए चुना था सरकार के कुछ प्रयास सराहनीय भी हैं पर इस तरह से आम लोगों से जुड़े हुए मुद्दों पर इस तरह की सोच से जन सामान्य को ही बहुत समस्याएं होने वाली हैं. रेलमंत्री की नियति पर शक नहीं किया जा सकता है पर उन्हें रेलवे को सुधारते समय देश के उस वर्ग के बारे में भी अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी वाली सोच को बनाये रखना होगा तभी सरकार और जनता दोनों का भला हो सकेगा.  
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