मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 7 मई 2015

कच्चे तेल की कीमतें

                                                        देश में हमेशा ही राजनीति का मुद्दा बनने वाले कच्चे तेल की कीमतों में एक बार फिर से तेज़ी आने के बाद इस पर फिर से वही सब देखने को मिलने वाला है जैसा पिछली सरकार के समय तब विपक्षियों द्वारा किया जाता था. पिछले वर्ष मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के चलते कच्चे तेल की क़ीमतों में अप्रत्याशित रूप से कमी आई थी और उसने सरकार को अपना बजट घाटा नियंत्रित करने में बहुत मदद की थी पर एक कुशल राजनेता के स्थान पर खुद पीएम भी केवल सतही बयानबाज़ी में उलझ गए और पूरे देश में राजग सरकार भाजपा द्वारा कुछ इस तरह से प्रदर्शित किया जाने लगा जैसे कि इसमें उनका ही हाथ हो और खुद पीएम ने भी इसको अपने नसीब तक से जोड़ डाला था पर आज जब अंतर्राष्ट्रीय स्थितियां फिर से तेज़ी के संकेत कर रही हैं तो मोदी पर उनके नसीब को लेकर हमले होने से कोई रोक नहीं सकता है जबकि सभी जानते हैं कि इस तरह की परिस्थिति से कोई भी सरकार या पीएम नहीं निपट सकता है क्योंकि यह सब अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से नियंत्रित होने वाली बाते हैं.
                                    निश्चित तौर पर पिछले वित्तीय वर्ष में इस तरह की स्थिति से सरकार को अपने राजस्व में बहुत बढ़ोत्तरी करने का मौका भी मिला और जिस तरह की कमी उपभोक्ताओं तक पहुंचनी चाहिए थी सरकार ने उसे टैक्स बढाकर आम जनता तक पहुँचने से रोक कर अपने को कुशल वित्तीय प्रबंधक की श्रेणी में खड़ा करने का श्रेय लेने की तरफ बढ़ा दिया. देश को तब इस कमी का भरपूर लाभ तो नहीं मिल पाया पर अब यदि एक बार फिर से इन कीमतों के बढ़ने का सिलसिला जारी रहता है तो निश्चित तौर पर मोदी और जेटली की परेशानियों में बढ़ोत्तरी होने वाली है. आज एक वर्ष पूरा करने की तरफ बढ़ रही सरकार के पास तेल विपणन से सम्बंधित कोई नयी नीति नहीं आ पायी है क्योंकि आज भी वह उसी नीति का अनुसरण कर रही है जिस पर संप्रग सरकार चला करती थी. वैसे देखा जाये तो राजनैतिक कारणों के अतिरिक्त देश के पास इस तरह के मसलों पर करने के लिए कुछ भी नहीं है पर जब एक पक्ष द्वारा इन मुद्दों पर राजनीति की जाती है तो दूसरा पक्ष अपने को इस सब तमाशे से कैसे रोक सकता है जबकि ये सब देश में नेताओं द्वारा अनावश्यक रूप से बड़े मुद्दे बनाये जा चुके है.
                                   यदि देश की वर्तमान तेल विपणन नीति में कोई खामी है तो केवल सरकार ही नहीं पूरी संसद को इस मसले पर कुछ नयी व्यवस्था बनाने के बारे में सोचना चाहिए जिससे क्योंकि देश की आर्थिक नीतियों से जुड़े मसलों पर किसी भी तरह की घटिया राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पास कच्चे तेल के नगण्य भंडार ही हैं जिन पर निर्भर रह कर हम अपने को ऊर्जा के संकट से नहीं बचा सकते हैं ऐसी परिस्थिति में देश में वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की कोशिशें एक बार फिर से शुरू की जानी चाहिए. इस मुद्दे पर लम्बी चौड़ी बातें और दावे करने वाली मोदी सरकार भी एक साल में कोई स्पष्ट नीति नहीं बना पायी है जिससे सौर ऊर्जा के उपयोग को देश में बढ़ाया जा सके तथा देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे एक बड़े स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सके. भारतीय परिदृश्य में अब किसी भी नेता के पास इतना समय नहीं है कि वो देश की आवश्यकता के अनुरूप ऊर्जा के प्रबंधन पर विचार करने के बारे में सोचना शुरू कर सके अब बिजली संकट दूर करने और तेल की कीमतों के दुष्प्रभाव को भारतीय अर्थव्यवस्था पर अधिक दबाव बनाने से रोकने के लिए पूरे देश के लिए मज़बूत ऊर्जा नीति की आवश्यकता भी है.  
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