मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

दीनानगर के छिपे सन्देश

                                                   आतंकी घटना में पंजाब के तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह को आत्मघाती हमले में शहीद करने के बाद पंजाब में दो दशक बाद आतंक का इतना बड़ा स्वरुप गुरदासपुर जिले में देखने को मिला है जिसकी कल्पना ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ संभवतः राज्य और केंद्र सरकारों ने भी नहीं की थी क्योंकि पंजाब में आतंक के चेहरे को पूरी तरह से नष्ट करने के बाद से अब तक इस तरह की कोई घटना भी नहीं हुई थी. देश के नेताओं में इस तरह की परिस्थितयों में भी अपने को बचाने की जो प्रवृत्ति सदैव से ही हावी रहा करती है कल पूरे दिन चले ऑपरेशन में एक बार फिर से प्रभावी दिखी जब पंजाब पुलिस की तरफ से इस पूरे अभियान को अपने दम पर चलाने की बात कही गयी. निश्चित तौर पर पंजाब की कमांडो टीम ने बहुत अच्छा काम किया और उन्होंने अपनी ट्रेनिंग को भी सार्थक कर दिखाया है पर इस तरह के अभियानों में शामिल होने वाली पंजाब पुलिस की वो पीढ़ी अब पूरी तरह से परिदृश्य से गायब है संभवतः इस बात का ख्याल पंजाब ने नहीं रखा और कुछ चूकें ऐसी भी हुईं जिसके माध्यम से हमारे जवानों की बेशकीमती जानें भी चली गयीं जिन्हें अधिक कुशलता के साथ काम करके बचाया जा सकता था.
                            कुछ हद तक पंजाब पुलिस का अपने दम पर अभियान चलाने का निर्णय सही भी था क्योंकि वह अपनी इस नयी बनी यूनिट की कुशलता का परीक्षण भी करना चाहता था पर इस तरह के हमलावरों से निपटने के लिए एनएसजी और सेना को जितने बड़े पैमाने पर महारत हासिल है यदि उनके साथ पूरे समन्वय को बनाये रखते हुए अभियान चलाया जाता तो पंजाब पुलिस को इस हमले से बहुत कुछ और भी सीखने को मिल जाता. पर अब जब उस स्तर पर चूक हो चुकी है तो उस पर विचार करते हुए भविष्य में होने वाली ऐसी किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर एक नीति बनायीं जानी चाहिए जैसा कि खुद पंजाब के सीएम की तरफ से कल कहा भी गया है. राज्य चाहकर भी आतंक से उतनी मज़बूती से नहीं निपट सकते हैं जैसे केंद्रीय एजेंसियां कर सकती है क्योंकि उनके पास पूरे देश के अलग अलग हिस्सों में विभिन्न तरह के आतंकवादियों से निपटने के लिए अधिक अनुभव है जिसको पूरे देश की पुलिस और राज्यों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ साझा किया जाना आवश्यक भी है.
                        देश के किसी भी हिस्से में आतंकवादियों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति को बनाये जाने की आवश्यकता अब महसूस होने लगी है क्योंकि इस तरह की परिस्थिति में राज्यों द्वारा केंद्रीय एजेंसियों को किस हद तक किसी भी ऑपरेशन से मना किया जा सकता है यह सोचने का विषय है. राज्यों और केंद्र की एजेंसियों के बीच अब बेहतर समन्वय की भी आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरे देश में आतंक से लड़ने की स्पष्ट नीति नहीं होगी तब तक राज्यों की ज़िद के चलते इस तरह से जनहानि होने से हम नहीं बच सकते है. आतंकियों के हमला करने के पसंदीदा स्थलों में सुरक्षा बलों के ठिकाने ही रहा करते हैं यह जानते हुए भी पाक की ज्वलंत सीमा से केवल १५ किमी अंदर स्थित दीनानगर में पुलिस के पास आधुनिक हथियार ही नहीं थे और वे एके ४७ का मुक़ाबला पुरानी एसएलआर से करने को मजबूर थे. पुलिस के पास मनोबल की कमी नहीं थी पर जिस तरह से उसके पास योजना और संसाधन में कमी दिखी वह अवश्य ही चिंता की बात है. आतंकी इन स्थानों को अपने हमले में लेकर यह सन्देश देना चाहते हैं कि जनता की सुरक्षा करने वाले सुरक्षा बल भी उनकी आसान पहुंच में हैं और अब पूरे देश तथा विशेषकर सीमावर्ती राज्यों में पुलिस को एक राष्ट्रीय अभियान के तहत आधुनिकीकृत किया जाना चाहिए.     
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