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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

महिला सुरक्षा और पुलिसिया रवैया

                                                   दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक महिला से हुई छेड़छाड़ की घटना ने दिल्ली पुलिस के उस संवेदनशीलता से परे छिपे हुए एक अन्य चेहरे को सामने लाने का काम किया है जिससे यही पता चलता है कि सरकारें चाहे जिस स्तर पर काम करती रहें पर पुलिस की मानसिकता कहीं से भी बदलती हुई नहीं दिखाई देती है. मामले को पीड़ित महिला की सहेली ने फेसबुक पर उजागर किया तो आठ घंटों में ही पांच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इसे शेयर भी किया जिससे यही पता चलता है कि आम लोग भी इस तरह के संवेदनशील मामलों में पुलिस के रवैये से बहुत त्रस्त रहा करते हैं. जिस तरह की घटना को बताया जा रहा है वह देश के दूर दराज़ के इलाके में नहीं बल्कि दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में हुई है तो इससे यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि महिलाओं से सम्बंधित किसी भी मामले को पुलिस किस तरह से निपटाने का प्रयास ही करती रहती है. सरेआम महिला को चूमने की कोशिश करने वाले इस व्यक्ति से मिलने के बाद पुलिस पीड़िता से यह कहती है कि चूमना यौन उत्पीड़न में नहीं आता है तो उससे ही पता चल जाता है कि पुलिस की आरोपी से सेटिंग हो चुकी है और वह किसी भी तरह महिला को शिकायत करने से रोकना चाहती है.
                                महिलाओं से जुडी हुई इस तरह की किसी भी समस्या से निपटने के लिए वैसे कहने को तो दिल्ली और राज्यों में विशेष सेल भी बनाये गए हैं पर इस केस में कहीं से भी इस सेल का कोई काम नहीं दिखाई दिया है. यह सही था और आज भी है कि कोई भी सरकार पुलिस के हर सिपाही पर नज़र नहीं रख सकती है पर जिस तरह की संवेदनशीलता की बातें दिल्ली पुलिस के ज़िम्मेदार गृह मंत्री संसद में दिखाया करते हैं वैसी ज़मीन पर कहीं से भी नहीं दिखाई देती है. इस तरह के मामलों में कभी मनमोहन सरकार को घेरने वाली भाजपा इस मुद्दे पर चुप्पी लगाकर बैठी हुई है और उसकी तरफ से ऐसा कोई भी बयान नहीं आया है जिससे यह पता चलता हो कि सत्ता में पहुँचने के बाद उसकी तरफ से इस तरह के मामलों को गंभीरता से लिया जा रहा है ?  यह मामला राजनैतिक से कम सामाजिक अधिक है और यह देश का दुर्भाग्य है कि सामाजिक मुद्दों की चिंता करने का ठेका अघोषित रूप से विपक्ष के पास ही रहा करता है और सत्ता पक्ष किसी भी तरह से अपने चेहरे को बचाने की कोशिशें करता हुआ ही नज़र आता है. इस तरह के मामलों में स्वयं को दोषी न मानते हुए सरकार को दोषियों के विरुद्ध जाँच कर उनको सजा देने के बारे में सोचना चाहिए जबकि ऐसे प्रयास कम ही दिखाई देते हैं.
                                     बुरी तरह से अवरुद्ध चल रही संसद में गंभीर काम काज होने की संभावनाएं कम ही दिखाई दे रही हैं और दिल्ली से जुड़ा मामला होने के कारण इस बारे में विपक्ष सीधे राजनाथ सिंह के बयान की मांग भी कर सकता है और इस मुद्दे पर हंगामा भी संभव है. अच्छा हो कि शालीनता के साथ इस मुद्दे पर विचार किया जाये और महिला की शिकायत की पूरी जाँच होने तक दोषी पुलिस कर्मियों को सेवा से अलग किया जाये क्योंकि इस मामले में उसके सहयोगियों द्वारा महिला के साथ न्याय करने में बाधा भी खड़ी की जा सकती है. क्या हम आज भी के सभ्य समाज के रूप में जीने की कोशिशें नहीं कर सकते हैं जिसमें अपराधियों, नेताओं और पुलिस प्रशासन के सामने केवल कानून ही सर्वोच्च रहे ? संभवतः ऐसा भारतीय समाज में अभी भी संभव नहीं है क्योंकि भारतीय पुरुषों में सदियों से संस्कार के नाम पर महिलाओं को दबाकर रखने की जो प्रवृत्ति कूटकूट कर भरी गयी है उसके दूर होने में भी लम्बा समय लगने वाला है. दिल्ली देश की राजधानी है और इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर जिस तरह से पुलिस के खिलाफ माहौल बना है अब उससे निपटना दिल्ली पुलिस और सरकार की ज़िम्मेदारी तो है पर सोचने का विषय यह अधिक है कि क्या एक सभ्य समाज के रूप में क्या हम इतने परिपक्व हो पाये हैं कि आने वाले समय में महिलाओं को सुरक्षित रखने की कोशिशें दिल से कर सकें ?    
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