मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 23 सितंबर 2015

भारत अमेरिका सम्बन्ध

                                                संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक सभा में भाग लेने जा रहे पीएम की सात दिनी विदेश यात्रा के शुरू होने के पहले अमेरिका के साथ १६२ अरब रुपयों के रक्षा सौदे को मजूरी प्रदान की गयी उससे भारत अमेरिका के बीच बढ़ते हुए रक्षा सहयोग और व्यापार के और मज़बूत होने के अवसर बढ़ सकते हैं. आम तौर पर इस तरह के बड़े सौदों को पीएम की यात्रा के दौरान ही अंतिम रूप दिया जाता है पर अपाचे और शिन्कू लड़ाकू / परिवहन हेलीकाप्टर की खरीद मूल्य और अन्य मुद्दों के चलते २००९ से ही अंतिम रूप नहीं ले पा रही थी जिसे भी अब पूरा कर दिया गया है. यह अपने आप में एक हाइब्रिड समझौता कहा जा रहा है जिसमें बोइंग और अमेरिकी सरकार दोनों के साथ ही इनके लिए हस्ताक्षर किये गए हैं ये दोनों ही लड़ाकू क्षमता के साथ बचाव व राहत कार्यों में अपनी दक्षता को बहुत पहले ही साबित कर चुके हैं. इन्हें खरीदने के प्रस्ताव और उस पर अमल किये जाने के बीच में इतना अंतर होने के कारण देश के रक्षा परिदृश्य पर भी असर पड़ा है पर अब जब यह दोनों भारतीय वायु सेना के बड़े में शामिल होने जा रहे हैं तो यह देश के लिए बहुत अच्छी बात है.
                                                रूस के अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में कमज़ोर होने के बाद जिस तरह से अमेरिका ने भारतीय आवश्यकताओं को पूरा करने की तरफ कदम बढ़ाये हैं वे अपने आप में बहुत ही प्रभावी हैं पर जिस तरह से आज हमारा झुकाव अमेरिका की तरफ होता जा रहा है वह पूरी तरह से सही भी नहीं कहा जा सकता है. रूस ने अपने बुरे दौर में भी भारत के साथ हुए समझौतों का पूरा सम्मान किया है पर यह बात अमेरिका के लिए मज़बूती के साथ नहीं कही जा सकती है क्योंकि रूस जहाँ भारत को हर मुद्दे पर अपना सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी मानता था वहीं अमेरिका इसे व्यापारिक महत्व से अधिक कुछ भी नहीं मानता है और आज के वैश्विक आतंक के दौर में जिस तरह से अमेरिका भारत को घेरने में लगे हुए पाकिस्तान आदि देशों के साथ हर समय खड़ा रहता है वह भी भारत के लिए चिंता का विषय है. मज़बूत सहयोगी और व्यापारिक सहयोगी में बहुत अंतर होता है क्योंकि रूस ने भारत विरोधी देशों को वह तकनीक और दर्ज़ा देने देने में हमेशा ही परहेज़ किया है जो हमारे पास होती है पर अमेरिका अपनी व्यापारिक सोच के चलते इस तरह के कदम कभी भी नहीं उठा सकता है.
                                   अन्तर्राष्ट्रीेय स्तर पर पिछले ढाई दशकों में भारत का जो प्रभाव बढ़ा है उसका लाभ उठाने के लिए आज सभी देश लालायित हैं तो उनमें अमेरिका भी शामिल है आतंक के मुद्दे पर अमेरिका भारत के साथ सहयोग के समझौते तो करता रहता है पर पाकिस्तान जैसे अपने पुराने सहयोगी को कुछ भी नहीं कह पाता है जबकि ओसामा जैसे अमेरिकी मोस्ट वांटेड को पाक ने लम्बे समय तक अपने यहाँ छिपा कर रखा रखने में सफलता भी पायी थी. आज भारत को अमेरिका की इस दोहरी नीति पर भी करारा प्रहार करने की अपनी नीति पर फिर से विचार करने की सोचने की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक भारत अपने बड़े बाज़ार का इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका पर इस तरह के दबाव वाले हथकंडे का उपयोग नहीं करेगा तब तक हमें कोई विशेष लाभ नहीं मिलने वाला है. आशा की जानी चाहिए की पीएम मोदी भारत की इस मंशा को सटीक शब्दों में अमेरिका तक पहुंचाने का प्रयास करेंगें जिससे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अमेरिका के साथ संबंधों को वास्तव में द्विपक्षीय बनाया जा सके.
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