मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

रेलवे की खुली लूट

                                                                           कभी देश की शान और विकास की धड़कन रही रेलवे सुधारों की गाड़ी आगे बढ़ाने के नारे के साथ जिस तरह से यात्रियों के साथ मनमानी करने पर उतर आई है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में अब यात्रियों के कष्टों के बारे में सुनने वाला कोई नहीं है. सुविधाओं को उपलब्ध कराने और दलालों पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल रहने के बाद अब रेलवे ने वेटिंग टिकटों को निरस्त करने के जो नियम बनाये हैं उनके चलते हज़ारों लोगों को अपनी कमाई रेलवे के हाथों गंवानी पड़ रही है पर १२ नवम्बर से लागू हुए नए नियमों के चलते टिकट काउंटर्स पर यात्रियों के साथ क्या बीत रही है यह जानने का समय रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय के साथ खुद रेलमंत्री को भी नहीं है जिसके चलते बुकिंग विंडोज पर रोज़ ही समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं तथा आम जनता रेलवे की इस खुली लूट का शिकार बन रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि नए नियमों के चलते आम यात्रियों के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसको देखते हुए क्या सरकार को चेतने की आवश्यकता नहीं है और क्या जनता से जुड़े हुए इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को सरकार के इस कदम का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है ?
                                      यदि रेलवे दलालों को रोकने के लिए वास्तव में गंभीर होती तो देश के मुख्य मार्गों पर रेल विभाग के अधिकारियों की सांठगांठ से चलने वाले दलालों के रैकेट को पकड़ने और उन पर अंकुश लगाने के बहाने आम यात्रियों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करती पर वर्तमान सरकार में उसे तो हर रेल यात्री ही दलाल दिखाई देने लगा है जिसके चलते इतनी बड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं. जिन यात्रियों के पास कन्फर्म टिकट हैं समय के बाद निरस्त किये जाने पर उनकी पूरी धनराशि को ज़ब्त करने को भी किसी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है पर जिस तरह से हर तरह से रेलवे ने अपनी आमदनी दलालों को रोकने के नाम पर बढ़ाने के जन विरोधी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं उनसे भी बात नहीं बनने वाली है. एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया का गुणगान करने में नहीं चूक रही है और जब उसे धरातल पर उतारने का समय आता है तो वह परंपरागत तरीकों से ही काम करना चाहती है. इस परिस्थिति में क्या एक अभियान चलाकर आईआरसीटीसी से टिकट बुक करने वाले सभी यात्रियों के खातों का वैरिफिकेशन नहीं करना चाहिए जिससे सही यात्रियों और दलालों की पहचान करने में आसानी हो जाये ?
                                टिकट बुक करते समय लोगों से उनकी आधार संख्या को भी माँगा या भरवाया जा सकता है और टिकट कन्फर्म न होने की दशा में आधार से जुड़े हुए बैंक खाते में सीधे वापसी की धनराशि भेजी जा सकती है इससे जहाँ दलालों के लिए काम करना मुश्किल हो जायेगा वहीं रेलवे को भी कोई नुकसान नहीं होगा. जो यात्री आईआरसीटीसी की सुविधा लेते हुए टिकट बनवा रहे हैं उनको सीधे तौर पर अपनी आधार संख्या को खाते से जोड़ने के बारे में कहना चाहिए जिससे जिन खातों से अधिक मात्रा में टिकट बनाये जा रहे हैं उन पर भी नज़र रखकर उन्हें बंद किया जा सकता है या बिना आधार संख्या के उनके टिकटों को कन्फर्म नहीं किये जाने का विकल्प भी अपनाया जा सकता है. अच्छे दिनों के नारे के साथ आई मोदी सरकार ने जिस तरह से रेलवे में आमूल चूल परिवर्तन का दवा किया था अभी वह तो बहुत दूर की कौड़ी है पर उच्च शिक्षित रेलमंत्री के निर्देश पर संभवतः यात्रियों से हर तरह से पैसे वसूलने की नीति को आगे बढ़ाया जा चुका है. देश काल और परिस्थिति के अनुसार काम करने के स्थान पर रेलवे ने केवल अपने लाभ को किसी भी तरह से बढ़ाने की जो नीति अपनायी है उसमें उसे अपने यात्री ही खोने पड़ेंगें क्योंकि त्यौहार स्पेशल ट्रेनों का नाम सुविधा करके जिस तरह से अतिरिक्त शुल्क भी वसूला जाना शुरू किया गया है उससे तो यही लगता है सरकार किसी भी त्यौहार के मौसम में यात्रियों की मजबूरी का लाभ उठाने के बारे में सोचे बैठी है.        
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