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मंगलवार, 3 नवंबर 2015

यूपी पंचायत चुनाव के परिणाम

                                                                               ज़्यादा आबादी के चलते देश की राजनीति में सबसे अहम स्थान रखने वाले यूपी में हुए पंचायती चुनावों के पहले स्तर में जिस तरह से बसपा को छोड़कर सभी दलों का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा है उससे भले ही किसी भी तरह का संकेत माना जाये पर एक बात तो तय ही है कि आने वाले समय में सत्तारूढ़ सपा और २०१७ में यूपी में मोदी के दम पर सरकार बनाने की सोच के साथ आगे बढ़ रही भाजपा के लिए मायावती ने खतरे की घंटी बजा ही दी है और इससे संभवतः प्रदेश की सबसे मज़बूत कैडर आधारित पार्टी होने के कारण उसके लिए विधान सभा चुनावों में बहुत कुछ हासिल करने का भी अवसर खुल जायेगा. आज भाजपा पर इस बात का अधिक दबाव बन चुका है कि वह २०१४ के लोकसभा चुनावों में किये गए अपने प्रदर्शन के अनुरूप कुछ पा कर दिखाए और प्रदेश में सत्ता संभाले तो वहीं अखिलेश यादव पर इस बात की दारोमदारी है कि वे भी अपने अस्तित्व को बचाये रखने का काम कर सकें. सपा का भविष्य चौपट करने में जिस तरह से बड़े सपाई नेता ही लगे हुए हैं उसके चलते भी सरकार की छवि बहुत प्रभावित हो रही है.
                 इस चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू जो सामने आया है उस पर संभवतः अभी तक किसी की भी नज़र नहीं पड़ी है क्योंकि इस बार प्रदेश के ग्रामीण इलाकों ने भी जातिगत मुद्दों से कुछ हद तक आगे बढ़ते हुए युवाओं पर जितना भरोसा जताया है वह प्रदेश के इतिहास में पहली बार ही हुआ है और अब बुजुर्गों को जिस तरह से जनता ने स्पष्ट रूप से आराम करने की सलाह सी ही दे दी है कि अब उनको सक्रिय राजनीति से हटकर युवाओं के लिए स्थान खाली करना होगा तो यह विधान सभा चुनावों के लिए भी एक स्पष्ट सन्देश के रूप में भी देखा जा रहा है. ४५ वर्ष तक के युवाओं ने जिस तरह से प्रदेश की ६५% सीटों को कब्ज़े में लिया है वह देखने योग्य है और इनमें भी यदि ३५ वर्ष की सीमा देखी जाये तो वह ५०% से भी अधिक हो जाती है इसे जनता और युवा होते प्रदेश की मंशा ही समझा जाना चाहिए जिससे वे अपनी राजनैतिक पारी को शुरू करने के लिए पूरी तरह से तैयार भी हो सकें. आज देश युवाओं के हाथों में जाने को तैयार है पर संभवतः स्थापित नेता लोग इस मामले में कुछ भी सीखने के लिए तत्पर दिखाई नहीं दे रहे हैं.
                राजनीति में उम्र दराज़ लोगों के सदैव ही सक्रिय रहने से जहाँ युवाओं के अवसर कम हो जाते हैं वहीं नयी प्रतिभाओं को बाहर निकाल पाना भी मुश्किल हो जाता है इसलिए इसे प्रदेश का मूड समझते हुए अगले चुनावों में जो भी लोग इस पर ध्यान दे पायेंगें उनके लिए ही आगे बढ़ना और जीत हासिल करना आसान रहने वाला है. राजनीति के इस स्थायी होते युवा मंच की अनदेखी कर पाना अब किसी के बस की बात नहीं है. यूपी के सीएम अखिलेश को यदि आज भी मुलायम सिंह सरकार चलने की खुली छूट दे सकें तो वह निश्चित तौर पर सपा की गिरती हुई छवि को सँभालने में कारगर साबित हो सकते हैं पर अपनी पुरानी कमज़ोरियों को अपनी सियासती विरासत के रूप में अखिलेश को सौंपने का मन बनाये मुलायम उन्हें सपा की वह कार्यशैली अपनाने के लिए बाध्य करते हुए नज़र आते हैं जो आम जनता में सपा की छवि को करारा धक्का देने का काम करती रहती है. अखिलेश के प्रयास बेहतर और आज के समय के अनुरूप हैं पर पार्टी के विशेष तरीके से काम करने के कारण आज उनके पास भी परिणाम देने की अच्छी स्थिति नहीं दिखाई देती है.    
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